रक्षा बंधन विशेष
डॉ हर्ष तिवारी
(प्रस्तुत है डॉ हर्ष तिवारी जी , डायनामिक संवाद टी वी .प्रमुख का e-abhivyakti में स्वागत है । आज प्रस्तुत है रक्षा बंधन के अवसर पर उनकी विशेष कविता रक्षा बंधन ।)
रक्षा बंधन
आदमी निकल गया है
इक्कीसवीं सदी के सफर में
बहुत आगे
अब उसके लिए
बेमानी है
सूट के धागे
रिश्ते रिसने लगे हैं
घाव की तरह
रक्षा सूत्र हो गए हैं
कागज की नाव की तरह
कागज की नाव आखिर
किस मुकाम तक जायेगी
वो तो खुद डूबेगी
और
हमें भी डुबायेगी।
© डॉ. हर्ष तिवारी
जबलपुर, मध्य प्रदेश
शानदार अभिव्यक्ति