हिन्दी साहित्य – राजभाषा दिवस विशेष ☆ व्यंग्य – हिंदी के फूफा ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

राजभाषा दिवस विशेष 

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(राजभाषा दिवस पर श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  प्रस्तुत है विशेष व्यंग्य  हिन्दी के फूफा 

 

हिन्दी के फूफा 

 

भादों के महीने में आफिस में जबरदस्ती राजभाषा मास मनवाया जाता है। 14 सितम्बर मतलब हिंदी दिवस। इस दिन हर सरकारी आफिस में किसी हिंदी विद्वान को येन-केन प्रकारेण पकड़ कर सम्मान कर देने के बॉस के निर्देश होते हैं। सो हम सलूजा के संग चल पड़े ढलान भरी सड़क पर डॉ सोमालिया को पकड़ने।  डॉ सोमालिया बहुत साल पहले विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष रहे फिर रिटायर होने पर कविता – अविता जैसा कुछ करने लगे। सलूजा बोला – सही जीव है इस बार इसी को पकड़ो। सो हम लोग ढलान भरी सड़क के किनारे स्थित उनके मकान के बाहर खड़े हो गए, जैसे ही मकान के बाहर का टूटा लोहे का गेट खोला, डॉ साहब का मरियल सा कुत्ता भौंका, एक दो बार भौंक कर शान्त हो गया। हम लोगों ने आवाज लगाई… डॉ साहब…… डॉ साहब…..?  डॉ सोमालिया डरे डरे सहमे से पट्टे की चड्डी पहने बाहर निकले….. हम लोगों ने कहा – डॉ साहब हम लोग फलां विभाग से आये हैं, हिन्दी दिवस पर आपका सम्मान करना है। सम्मान की बात सुनकर सोमालिया जी कुछ गदगद से जरूर हुए पीछे से उनकी पत्नी के बड़बड़ाने की आवाज सुनकर तुरंत अपने को संभालते हुए कहने लगे – अरे भाई, सम्मान – अम्मान की क्या जरूरत है। मैं तो आप सबका सेवक हूँ, वैसे आप लोगों की इच्छा… मेरा जैसा “यूज” करना चाहें….. वैसे जब मैं रिटायर नहीं हुआ था तो मुझे मुख्य अतिथि बनाने के लिए आपके बड़े साहबों की लाईन लगा करती थी, खैर छोड़ो उन दिनों को, पर ये अच्छी बात है कि आप लोग अभी भी हिंदी का समय समय पर ध्यान रखते हैं। वैसे आपके यहां भी हिंदी में थोड़ा बहुत काम तो तो होता होगा?

 

…….. हां सर, नाम मात्र का तभी तो हम लोग राजभाषा मास मना लेते हैं।

 

……. आपके यहां अधिकारियों का हिंदी के प्रति लगाव है कि नहीं ?

 

…….. हां सर,, हिन्दी दिवस के दिन ऐसा थोड़ा सा लगता तो है।

…….. दरअसल क्या है कि हिन्दी के साथ ये दिक्कत है कि हम उसे लाना चाहते हैं पर वो आने में किन्न – मिन्न करती है। है न ऐसा ?

…. बस सर…… यस सर… ठीक कहा वैसे आपने जीवन भर हिंदी की सेवा की है तो ये ये हिन्दी के बारे में आपको ज्यादा ज्ञान होगा पर समझ में नहीं आता कि ये चाहती क्या है…… कुछ इस तरह की बातें चलतीं रहीं, फीकी – फीकी बातों के साथ फीकी – फीकी बिना दूध की चाय भी मिली, काफी रात हो चली थी हम लोग उठ कर चल चल दिए। रास्ते में डॉ सोमालिया को लेकर हम लोगों ने काफी मजाक और हंसी – ठिठोली भी की टाईम पास के लिए।

दूसरे दिन हम लोग आफिस से डॉ सोमालिया के लिए स्मृति चिन्ह खरीदने के बहाने गोल हो गए, सलूजा कहने लगा, यार जितना पैसा स्वीकृत हुआ है उतने पूरे का सामान नहीं लेना, बिल पूरे पैसे का बनवा लेना बीच में अपने खर्चा – पानी के के लिए कुछ पैसा बचा लेना है, हमको सलूजा की बात माननी पड़ी न मानते तो नाटक करवा देता, नेता आदमी है। इस प्रकार डॉ सोमालिया के नाम से स्वीकृत हुए पैसे का कुछ हिस्सा सलूजा की जेब में चला गया हांलाकि उसने प्रामिस किया कि सम्मान समारोह के दिन की थकावट दूर करने के लिए इसी पैसे का इस्तेमाल किया जाएगा।

14 सितम्बर आया। लोगों को जोर जबरदस्ती कर अनमने मन से एक हाल में इकट्ठा किया गया। डॉ सोमालिया को लेने एक कार भेजी गई, कार के ड्रायवर को समझा दिया गया कि रास्ते में डॉ सोमालिया को अपने तरह से समझा देगा कि आफिस वालों के आगे ज्यादा देर तक फालतू बातें वे नहीं करेंगे तो अच्छा रहेगा क्योंकि आफिस वाले बड़े बॉस हिंदी से थोड़ा चिढ़ते हैं हिंदी आये चाहे न आये बॉस खुश रहना चाहिए। थोड़ी देर बाद सोमालिया जी आए, हाल में बैठा दिया गया, हिन्दी में लिखे बैनर देख देख वे टाइम पास करने लगे। इस बीच हाल से लोग उठ उठकर भाग रहे थे, किसी प्रकार लोगों को थामकर रखा गया। बेचारे डॉ सोमालिया जी अकेले बैठे थे, बिग बॉस, मीडियम बॉस और अन्य बॉस का पता नहीं था किसी प्रकार खींच तान कर सबको लाया गया। डॉ सोमालिया को एक के बाद एक माला पहनाने का जो क्रम चला तो रूकने का नाम नहीं ले रहा था, सोमालिया जी माला संस्कार से तंग आ गये इतने माले जीवन भर में कभी नहीं पहने थे। माला पहनते हुए उन्हें माल्या की याद आ गई। सलूजा ने अधकचरे ढंग से डॉ सोमालिया का परिचय दिया, डायस में बैठे सभी बॉस टाइप के लोगों ने हिंदी के बारे में झूठ मूठ की बातें की। डॉ सोमालिया ने भाषा के महत्व के बारे में विस्तार से बताया बोले – हिन्दी को आने में कुछ तकलीफ सी हो रही है कुछ अंग्रेज परस्त बड़े साहबों के कारण। सलूजा चौकन्ना हुआ बीच में भाषण रुकवा कर डॉ साहब को एक तरफ ले जाकर समझाया कि अग्रेजी परस्त बॉस  लोगों के बारे में कुछ भी मत बोलो नहीं तो प्रोग्राम के बाद हमारी चड्डी उतार लेंगे ये लोग। विषय की गंभीरता को समझते हुए माईक में आकर सोमालिया जी ने विभाग की झूठ मूठ की तारीफ की…. बिग बॉस लोगों ने तालियां पीटी, कार्यक्रम समाप्त हुआ। डॉ सोमालिया को समझ में आ गया कि हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है। जाते-जाते उन्हें कोई छोड़ने नहीं गया, हारकर बुझे मन से उन्होंने रिक्शा बुलाया और सवार हो गए घर जाने के लिए।

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जय प्रकाश पाण्डेय

जय नगर जबलपुर

9977318765