हिन्दी साहित्य- लघुकथा – कार की वधू-परीक्षा – श्री सदानंद आंबेकर
श्री सदानंद आंबेकर
कार की वधू-परीक्षा
इस वर्ष दीपावली के अवसर पर घर के द्वार पर कार खड़ी होगी, जिससे मेरी शान बढ़ेगी, इसलिये अब कार लेना ही होगी, ऐसा संकल्प हमारे मित्र रामबाबू ने कर ही लिया। उनकी इस प्रतिज्ञा में ऐसी ध्वनि सुनाई दी मानो वे कह रहे हों- ‘बस, इस सहालग में घर में बहू लानी ही है’।
रामबाबू और हम तीन मित्र, दीपावली पूर्व के उजास से चमचमाते बाजार में एक कार के शोरूम में प्रवेश कर गये। द्वार पर ही एक षोडशी ने चमकते दांत दिखा कर हमारा स्वागत किया जिसे देखकर मुझे लगा कि अब तो कार खरीद कर ही जाना पड़ेगा। शोरूम के अन्दर का वातावरण एकदम स्वयंवर जैसा दिख रहा था जहां एक वधू का वरण करने कई-कई राजा उपस्थित थे। देखकर भ्रम होता था मानो भारत से गरीबी हट गई है।
हम एक ओर खड़े होकर यहां-वहां देख ही रहे थे कि अचानक एक और मेकअप-रंजित बाला हमारे सामने प्रकट हुई और पूछा- कौन सा मॉडेल देखेंगे सर ? हमारे एक रसिक मित्र के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा ‘आप जैसा’ ! सेल्सगर्ल की झेंप को मिटाने के लिये तीसरे ने कहा- हमारा मतलब, एकदम लेटेस्ट तकनीक, कम ईंधन खपत, ज्यादा जगह, मजबूत और बजट कीमत वाली दिखाईये प्लीज। यह कथन कुछ यों लगा मानो लडके का पिता कह रहा हो, कन्या शिक्षित , सुन्दर, गृहकार्य में दक्ष, समझदार, पूरे घर को लेकर चलने वाली, सेवाभावी, सहनशील, संगीत में निपुण आदि-आदि वाली हो।
खैर, हमें एक चमचमाती कार के सामने ले जाकर खडा कर दिया गया और वो कन्या उसके गुणों को ऐसे बताने लगी जैसे वधू का पिता अपनी बेटी की झूठी विशेषताओं को बखानता है।
सब कुछ सुनकर रामबाबू के कंठ से खुर्राट बाप जैसी लम्बी हूँ निकली और उसने कार की एक प्रदक्षिणा की और कहा- इसकी कीमत कितनी है? सेल्सगर्ल ने कन्यापक्ष की सी विनम्रता से कहा- सर, आप गाडी पसंद तो कीजिये, कीमत तो वाजिब लग जायेगी। हम तो आज आपको इस गाड़ी में बिठा कर ही विदा करेंगे।
अब तो दोनों पक्षों में दहेज के सेटलमेंट-सी चर्चा आरम्भ चल पड़ी। रामबाबू कोई दाम लगाते, तो सेल्सगर्ल उसके साथ कोई ऑफर जोड़ कर कंपनी की कीमत पर टिकी रहती।
अंततः रामबाबू ने हमारी ओर गहरी नजरों से देखा और गंभीर वाणी में उस सेल्सगर्ल से कहा- ‘ठीक है मैडम, हम आपको चार दिन में जवाब देते हैं; और भी शोरूम में जरा देख लेते हैं। आखिर जिंदगी भर का मामला है ‘।
ये वातावरण वैसा ही बन गया कि जब भरपेट पोहा, समोसा, मिठाई, चाय के साथ कन्या का इंटरव्यू लेने के बाद लड़के का पिता जाते-जाते यही शब्द लड़की वालों को सुनाता है। इसे सुनकर कन्या के माता-पिता और दसियों ऐसे इंटरव्यू झेल चुकी बेचारी लडकी भी समझ जाती है कि ‘हमारे भरोसे मती रहना’ । अब सेल्सगर्ल की बारी थी- उसने चेहरे पर जमाने भर की मुस्कुराहट और स्वर में ज्यादा से ज्यादा विनम्रता लाकर रामबाबू की बजाय हम लोगों से कहा- सर लोग, आप यहां से पैदल जा रहे हैं ये हमारे लिये शर्म की बात है, हम तो सर को बेस्ट मॉडल दे रहे हैं, आप कहेंगे तो लोन भी करवा देंगे, और सर लोग, क्या आप मेरी इतनी सी बात नहीं मानेंगे? इसके बाद उसके चेहरे पर जो दीनतामिश्रित मुस्कान उभरी उसे नजर अंदाज कर पाना हम किसी के लिये सम्भव नहीं रहा।
रामबाबू ने ठाकुरों की-सी शान भरी आवाज में कहा- मैडम, मैं तो तैयार नहीं था, पर अब क्या करें, हमारे इन दोस्तों की बात को मैं टाल नहीं सकता और आपको भी नाराज नहीं कर सकता। चलिये, बिल बनवा ही दीजिये, हम यही गाड़ी लेकर घर जायेंगे।
इतना सुनकर दो समय की रोटी के लिये मेहनत कर रही उस मासूम सेल्सगर्ल के चेहरे पर आया संतोष ठीक वैसा ही था जैसा लड़की के लिये वरपक्ष की हां सुनकर वधू के माता-पिता के चेहरे पर दिखाई देता है।
© सदानंद आंबेकर