हिन्दी साहित्य- लघुकथा – * “गम” ले * – डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

“गम” ले 
सिर पर रखी बड़ी टोकरी में तीन -चार गमले लिये एक  वृद्ध महिला कालोनी में ” ले गमले …. ले गमले ” की आवाज लगाती  हुई  आ रही थी ।
श्रीमती जी ने उसे आवाज देकर बुलाया ,उसके सर पर रखी टोकरी को अपने हाथों का सहारा देकर नीचे उतरवाया और उससे पूछा – “कितने के दिये ये गमले ?”
उसने कहा- “ले लो बहन जी , 100 रुपये में एक गमला है ।” श्रीमतीजी ने महिला सुलभ स्वभाव वश मोलभाव करते हुए एक गमला 60 रुपये में मांगा ।
“बहिन जी , नही पड़ेगा । हम बहुत दूर से सिर पर ढोकर ला रहे हैं , धूप भी तेज हो रही है । जितनी जल्दी ये गमले बिक जाते तो हम घर चले जाते । आदमी बीमार पड़ा है घर पर ,उसके लिए दवाई भी लेकर जाना है । ऐसा करो बहिनजी ये तीनों गमले 250 रुपये में रख लो ।”
श्रीमती जी ने कहा –“3 गमले रखकर क्या करेंगे।”
“ले लो बहिनजी, दो गमले लिये हम और कितनी देर भटकेंगे ।” कहते हुए उसके चेहरे पर उदासी छा गई ।
श्रीमती जी ने उसके चेहरे पर छाये गम के बादलों को हटाते हुए उससे तीनों गमले खरीद लिये ।
250 रुपये अपने बटुए में रखते हुए उसके चेहरे पर जो खुशी एवं सन्तोष के भाव झलक रहे थे ,उसे देखकर श्रीमती जी को भी यह अहसास हो गया था कि 250 रुपये में किसी के गम ले कर यदि उसे थोड़ी खुशी दे दी तो सौदा बुरा नही है ।
© डॉ . प्रदीप शशांक 
जबलपुर (म . प्र .)