डॉ . प्रदीप शशांक 

 

(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा रचित एक सार्थक एवं सटीक  लघुकथा   “सोच”.)

☆ लघुकथा – सोच

मेहता जी बदहवास से हांफते हुए आये और बोले — “सिंह साहब मेरे साथ थाने चलिये , रिपोर्ट लिखवाना है।”

सिंह साहब ने उनकी ओर आश्चर्य से देखते हुए पूछा – “रिपोर्ट किस बात की?”

“लड़के की मोटर साइकिल चोरी हो गयी है। वह कलेक्ट्रेट किसी काम से गया था , उसने मोटरसाइकिल, वाहन स्टैंड पर खड़ी न करके बाहर ही खड़ी कर दी थी । पांच मिनिट का ही काम था , बस गया और आया । इतने में ही गाड़ी चोरी हो गयी।”

मेहता जी ने अभी दो महीने पहले ही प्राविडेंट फंड से पचास हजार रुपये निकाल कर लड़के को मोटरसाइकिल खरीदकर दी थी ।

अक्सर वाहन स्टैंड वाले  के साथ पांच -दस रुपये देने के नाम पर आम लोगों से किचकिच होते सिंह साहब ने देखी है । स्टैंड के पांच -दस रुपये बचाने के चक्कर में उसने  पचास हजार रुपये की बाइक  खो दी । यह आम लोगों की  कैसी सोच है ?

सिंह साहब  इसी सोच में डूबे मेहता जी के साथ रिपोर्ट लिखवाने थाने की ओर चल दिये ।

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