डॉ . प्रदीप शशांक
(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा रचित एक समसामयिक विषय पर आधारित सार्थक एवं शिक्षाप्रद लघुकथा “ आस्तीन के सांप”. )
☆ लघुकथा – आस्तीन के सांप ☆
कालोनी में सन्नाटा पसरा हुआ था । हर कोई अपने घर में बंद था । तभी एक घर से शोरगुल उठा और घर के लोग बदहवास बाहर निकल कर सांप -सांप चिल्लाने लगे । कालोनी के लोग केम्पस में जमा हो गये । कुछ साहसी युवकों ने सांप को भगा दिया ।
लोग पुनः अपने घरों में दुबक गये और समाचार चैनलों से चिपक गये । संवाददाता बता रहा था कि भारत में कुछ पढे लिखे जाहिलों के द्वारा शासन के नियमों का पालन न करने से कोरोना के मरीजों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है ।
समाचार देखते हुए वह सोचने लगा – “कालोनी में घुसकर साँप तो यही जानना चाहता था कि यहां इतना सन्नाटा क्यों है? वास्तविक सांप आजकल बहुत कम दिखते हैं । अब तो चारों ओर आस्तीन के सांपों की भरमार है । डर और दहशत का माहौल इन्हीं की वजह से है । यह शासन के आदेशों की अवहेलना कर मानवता के विरुद्ध क़ानून तोड़ने का ही कार्य करते हैं ।”
यह एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है कि- “आखिर, इन आस्तीन के सांपों का क्या करना चाहिए?”
© डॉ . प्रदीप शशांक