डॉ कुंवर प्रेमिल
☆ तीन लघु कथाएं – घर ☆
☆ दिहाड़ी ☆
बेटा, पिता नहीं है पर यह घर है.
इसे चाचा-ताऊ समझना. इन सबने इसे कितनी मुश्किल से बनाया था.
इन सबके इंतकाल के बाद इसे मैं बड़ी मुश्किल से बचा पाई. मैने दिहाड़ी की पर घर नहीं बेचा. घर बेचना जमीर बेचना जैसा होता है मुन्ना.
लड़के ने मान लिया और वह भी घर बचाने में दूसरे दिन से दिहाड़ी पर चला गया.
☆ बिसूरता घर ☆
जो घर सास ससुर ने बडी आस्था से बनवाया था.रिस्तेदारों से कर्ज भी लिया था.कर्ज चुकाते-चुकाते कमर टेढ़ी हो गई थी उनकी.
वही घर बहू ने व्याहकर आते ही हथिया लिया. अब सास ससुर बिना घर के हैं. दूर से ही घर देखकर संतोष कर लेते हैं.
उन्हें घर बिसूरता सा दिखाई देता है.
☆ घर भूतों का डेरा ☆
एक आदमी गरीबी में, दवा के अभाव में स्वर्ग सिधार गया. रिस्तेदारों ने घर को मनहूस करार कर दिया. घर के अन्य सदस्य भी घर छोड़कर अन्यत्र चले गए. घर भूतों का डेरा घोषित कर दिया गया.
रिस्तेदारौं ने फिर अपना डेरा जमा लिया. घर रिस्तेदारो का हो गया है. घर वाले नये घर की तलाश में मारे-मारे फिर रहे हैं.
© डॉ कुँवर प्रेमिल
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