डॉ कुंवर प्रेमिल
☆ लघुकथा – दरार ☆
एक माँ ने उसकी बच्ची को रंग बिरंगी पेंसिलें लाकर दीं तो मुन्नी फौरन चित्रकारी करने बैठ गयी. सबसे पहले उसने एक प्यारी सी नदी बनाई. नदी के दोनो ओर हरे भरे पेड़, एक हरी-भरी पहाड़ी, पहाडी़ के पीछे एक ऊगता हुआ सूरज और एक सुंदर सी झोपड़ी.
बच्ची खुशी से नाचने लगी. उसने अपनी माँ को आवाज लगाई- माँ देखिए न मैंने कितनी सुंदर सीनरी बनाई है.
चोके से ही माँ ने प्रशंसा कर बच्ची का मनोबल बढाया. कला जीवंत हो उठी.
थोड़ी देर बाद बच्ची घबराकर बोली- माँ गजब ह़ो गया. दादा दादी के लिए तो इसमें जगह ही नहीं है
माँ आवाज आई – आगे आउट हाउस बना दो, दादा दादी वहीं रह लेंगे.
बच्ची को लगा कि सीनरी बदरंग हो गई है. चित्रकारी पर स्याही फिर गयी है.
झोपड़ी के बीच से एक मोटी सी दरार पड़ गयी है.
© डॉ कुँवर प्रेमिल
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