हिन्दी साहित्य- लघुकथा ☆ रसहीन ☆ डॉ . प्रदीप शशांक

डॉ . प्रदीप शशांक 

 

(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा रचित जीवन दर्शन पर आधारित एक सार्थक लघुकथा   “संगमरमर ”.)

☆ लघुकथा – रसहीन  

प्रकृति से दूर कांक्रीट के जंगल में भटकती हुई एक तितली गिफ्ट सेंटर पर लटके सजावटी रंगबिरंगे फूलों की माला पर आकर्षित होकर , कभी इस फूल पर , कभी उस फूल पर बैठती एवं कुछ देर पश्चात पुनः उड़कर दूसरे फूल पर जा बैठती । यह प्रक्रिया कुछ देर चलती रही और फिर तितली निढाल अवस्था में वहीं शो केस के कांच पर बैठ गई ।

उसे क्या पता था कि इन फूलों में रस नही है , ये केवल दिखावटी हैं । इन्हीं प्लास्टिक के फूलों की तरह मनुष्य भी प्राकृतिक सौंदर्य से दूर केवल बनावटी जीवन में ही रस ढूंढ़ते हुए रसहीन हो चुका है ।

 

© डॉ . प्रदीप शशांक 

37/9 श्रीकृष्णपुरम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,मध्य प्रदेश – 482002