श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “
(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती हेमलता मिश्रा जी की आत्मीय लघुकथाएं – दो रंग:करुणा के। समाज के अनगढ़ त्याज्य अंग पर इन आत्मीय एवं मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत रचनाओं के लिए आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन।)
☆ आत्मीय लघुकथाएं – दो रंग:करुणा के ☆
(कोरोना की विडम्बना के चलते कुछ अनगढ़ त्याज्य जगहों पर सहायता पहुंचाने हेतु पाले पडे़—सामाजिक साहित्यिक अंतर्राष्ट्रीय अग्नि शिखा मंच संस्था,नागपुर इकाई अध्यक्ष होने के नाते मुझे भी— स्वाभाविक करुणा ने छू लिया और लेखनी ने रच दीं कुछ करुण कथा पटल पर जिन पर आपकी सच्ची आस्था की प्रतिक्रियाएं अपेक्षित हैं ।)
☆ एक – मूर्तिमान आस्था ☆
लाॅक डाउन के चलते उस बदनाम “लाल गली” का सूनापन भयानक लगता–आमने-सामने मिलाकर कुल बीस छोटे-छोटे घरों की वह गली – – हर दरवाजे पर अधमैले से पर्दे के भीतर टिमटिमाते बल्ब की रोशनी उस गली की बेबसी की कहानी बयां करती रहती।
गली के मुहाने पर ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल 59 वर्षीय माँगीलालजी बडे़ भावुक और दुःखी हो जाते वहां रहने वालों की स्थिति पर। सबसे ज्यादा बुरा लगता वहां गली में खेलते सात-आठ बच्चों को देखकर। अधनंगे से पेट पीठ से चिपके कुपोषित चार-पांच लड़के और तीन चार लड़कियाँ।
हर पंद्रह बीस मिनट में एक ना एक कोठरी से पुकार आती जिसमें लडकों के नाम के साथ ही एक बड़ी ही वर्जित गाली भी होती। मैल गंदगी से भरा वह चेहरा आतंकित हो जाता और उस वर्जित शब्द से शर्मिंदा भी।
माँगीलालजी उन बच्चों से दूर – दूर से बतियाते रहते। उनकी भोली-भाली बातों, तमन्नाओं और पढ़ने-लिखने की इच्छा से वे तहेदिल से आप्लावित हो जाते—।
– – – और एक दिन— पुनर्वास कार्यालय में एक आवेदन ने सबकी आँखे नम कर दीं जब उस बदनाम गली के बच्चों को गोद लेने की इच्छा के साथ उन सबको अपना नाम देने की इच्छा और अपने दस बारह कमरों के पैतृक घर को बच्चों के लिए आश्रम बनाने की मंशा जाहिर की थी निःसंतान माँगीलालजी दंपत्ति ने। समाज के ठेकेदारों की भौंहे तनें इससे पहले ही अनेक समाज सेवी संस्थाओं ने भी सहमति की मुहर लगा दी और मूर्तिमान आस्था का प्रतीक बन गया गांव और शहर सीमा पर बसा वह “नीड़ “!!
☆ दो – अनचीन्हे रिश्ते ☆
आओ ना–आओ ना ओ बाबूजी देखो तो अभी बहुत जलवे बाकी हैं मेरे पास। डांस करूंगी गाना गाऊंगी-। आओ ना बाबू।
बीस पच्चीस छोटी छोटी कोठरियों के दरवाजे, छज्जे या खिड़कियों से उठती आवाजें मुनीश को विचलित कर देतीं। वह चिल्ला-चिल्ला कर कह देना चाहता कि मैं कोई बाबू नहीं हूँ। तुम जैसा ही एक मजदूर हूँ। तुम अपना हुनर बेचती हो और मैं दिमाग बेचकर पेट भरने का एक जरिया तलाश करता हूँ।
उस गली के शाॅर्टकट से स्टेशन रोड पर निकलते हुए रोज मुनीश सौ सौ लानते भेजता खुद पर मगर पाँच मिनट के रास्ते के लिए पच्चीस मिनट गँवाना उसे गवारा नहीं था।अतः वह वहीं से उसी गली से निकल जाया करता।
छः महीने पहले ही वह अपने गाँव से काफी दूर इस मँझोले से शहर में आया था। यहां स्टेशन के पास एक कंप्यूटर सेंटर में बैठकर लोगों की टिकिट निकालना, शहर में घूमने आने वालों को टैक्सी वाहन गाईड दिलवाना , होटल रूम दिलवाना आदि कार्य करता रहता।
अलबत्ता आधी रात के बाद वह बरबस उस मोगरा गली से ही होकर घर जाता। भीनी भीनी महक से महकती वह सुनसान गली उसे किसी मंदिर का सा आभास देती। साथ ही एक कोठरी के सामने रोज खिड़की पर बैठी वह तीन वर्षीय छोटी सी गुड़िया मानों उसकी ही राह देखती बैठी मिलती। उसकी प्यारी मुस्कान और चमकीली आँखें उसे मानों पूरे समय पुकारती रहतीं।
एक बार लगातार तीन चार दिन वह बच्ची नहीं दिखाई दी तो मुनीश की चिंता और बेचैनी बहुत बढ़ गई। पूरा साहस बटोर कर उसने द्वार खटका दिया। द्वार सहज ही खुल गया। भीतर के टिमटिमाते बल्ब में देखा कि एक अत्यंत क्षीण काया मटमैले बिस्तर पर बेहोश सी पड़ी है और उसके सिरहाने वही बच्ची रो रही है। एक अनजानी करुणा से मुनीश का दिल सिहर गया। बच्ची के प्यार से बँधे उसके फर्ज ने उसे साहस दिया। पुलिस को फोन लगाकर उसने पूरी स्थिति बतायी।पुलिस ने वहां पहुंच कर उस बच्ची की माँ को अस्पताल पहुंचाया और बच्ची को अनाथाश्रम भेजने की कार्रवाई करने लगे। लेकिन मुनीश की करुणा – – – बीच में आ गई और बच्ची को अपनी भानजी बताकर उसने बच्ची को अपने पास रखने की प्रार्थना की। न जाने क्या सोचकर बच्ची की माँ ने भी इस रिश्ते की हामी भर दी। पुलिस वालों ने भी मानवता की पुकार पर परिस्थितियों की गंभीरता को समझते हुए बच्ची को उसकी तथाकथित नानी और मामा को सौंप दिया कुछ डाक्यूमेंट्स पर हस्ताक्षर करवाके।
– – – और करुणा का मूर्तिमंत रूप बने वे अनचीन्हे रिश्ते खुद पर ही गौरवान्वित हो उठे।
© हेमलता मिश्र “मानवी ”
नागपुर, महाराष्ट्र 440010
बहुत ही सुन्दर अर्थपूर्ण, भावपूर्ण, मार्मिक रचना