डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव
(आज प्रस्तुत है डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी की एक सार्थक लघुकथा माँ की सीख। )
☆ लघुकथा – माँ की सीख ☆
दुल्हन बनी कविता को दूसरे शहर विदा करते माँ ने कहा था…” बेटा अब ससुराल ही तुम्हारा परिवार है।”
लेकिन कविता ने आते ही अलग घर बसा लिया।
पति के टूर पर जाते ही वो पास पड़ोस की सहेलियों के साथ पार्टियों में मस्त हो जाती क्योंकि उसे सहेलियां बनाने का बड़ा क्रेज था ।
लॉक डाऊन की एक शाम सीढ़ियों से पैर फिसला होश अगले दिन हॉस्पिटल में आया ।
नर्स बोली..” बहुत खून निकला सिर से, कई टांके आए हैं तुम्हारे सास ससुर ननद देवर कल से यही है तुम्हारे पास है।”
सास बोली…”यह तो अच्छा हुआ बेटा तुम्हारी बाजू वाली सहेली ने अपने छत से तुम्हे गिरते देख लिया था तो हम लोगों को फोन कर दिया।
कविता ने आंखें बंद कर ली और सोचा माँ की जिस सीख पर मैंने ध्यान नहीं दिया था।
कोरॉना ने एहसास दिला दिया कि अपना परिवार हर हाल में अपना होता है।
© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव
मो 9479774486
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