श्री घनश्याम अग्रवाल
☆ मातृ दिवस विशेष – “माँ और बच्चा” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆
(“कि मैं जिन्दा हूँ अभी :- मेरी माँ और सरस्वती माँ, दोनों माँओं ने मुझसे कहा – “बेटे, जब तूने कलम छू ही लिया है, तो सदा सच ही लिखना। खुद के खिलाफ हो तो भी और मेरे खिलाफ हो तो भी। ” मदर्स-डे के अवसर पर माँ के खिलाफ नहीं, कलम के पक्ष में। माओं को एक प्रणाम — )
टीवी देखती / किटी पार्टी में/ माँ
तीन माह के रोते बच्चे के मुँह में/
बजाय स्तन के/
थमा देती है
स्तन जैसी
रबर की एक निप्पल।
बच्चा मन ही मन बोलता है-
” मम्मी,
अब हम बच्चे नहीं रहे,
पैदा हो गए हैं।
हम सब जानते हैं,
रबर की चिपचिपाट
और स्तन की गर्माहट को
अच्छी तरह पहचानते हैं। “
दूसरे ही पल उसे
पिछले जनम में सुने हुए
मुनव्वर राणा के कुछ शेर याद आए
और बजाय ‘वाह ‘ के उसके मुँह से
ये कच्चे-पक्के शेर निकल आए।
“माँ कितनी भी मैली हो
माँ से कोई
उज्जवल हो नहीं सकता,
माँ ने दिया है
तो स्तन ही होगा
निप्पल हो नहीं सकता।”
पर मुशायरों की ‘वाह – वाह’ और तालियाँ
कुछ ही देर की होती है।
वह स्तन नहीं, निप्पल है
इस हकीकत को आखिर
बच्चा भी जान गया।
मगर बकोल-ए- ग़ालिब,
दिल के बहलाने को….,
बच्चा, निप्पल में
स्तन का ख्याल करते
उसे चूसते हुए
चुपचाप सो जाता है
इस रात वह
माँ से बड़ा हो जाता है।
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(मित्रो, रचना और रचनाकार का संबंध माँ और बच्चे सा होता है। बिना नाम के शेयर करने का पाप न करें।)
© श्री घनश्याम अग्रवाल
(हास्य-व्यंग्य कवि)
094228 60199
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈