श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  की एक अत्यंत प्रेरक एवं शिक्षाप्रद लघुकथा डायरी के पन्ने मात्र नहीं हैं जिंदगी। निःशब्द, अतिसुन्दर लघुकथा, कथानक एवं कथाशिल्प। यह सत्य है कि यदि हम डायरी लिखते हैं ,तो वे दो डायरियां होती हैं। एक वह जो हम  कागज के पन्नों पर लिखते हैं और उसे आप पढ़ सकते हैं। दूसरी वह जो हम ह्रदय के पन्नों पर लिखते हैं जिसे सिर्फ हम ही पढ़ सकते हैं । ऐसी शख्सियत बिरली होती है जिनकी दोनों डायरियां एक सी होती हैं।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन। )

☆ लघुकथा – डायरी के पन्ने मात्र नहीं हैं जिंदगी

सामने रखी पुरानी डायरी के पन्ने फड़ फडा़ रहे थे और जबरन दबाई गयी यादें उससे भी अधिक उफन रहीं थीं।

ऐसा लगा अभी कल ही की तो बात है जब पिताजी ने कक्षा एक में नाम लिखवाया था – – कुछ दिनों पहले ही तो भैय्या ने रिजल्ट्स के पहले ही दोस्तों के पूछने पर कह दिया था कि राजी तो फ़र्स्ट क्लास पास हो गई है – कई बार ऊंचे खानदानों के रिश्ते  – -पिताजी ने लौटा दिए यह  कह कर कि “मेरी होनहार मेरिट वाली बिटिया है उसे चूल्हे चौके की भट्टी में नहीं झोंकना है उसे तो मैं बडी अफसर बनाऊंगा” – – – इतना भरोसा, इतना विश्वास, इतनी तमन्नाएं जहां जुड़ी हों वहां यकायक कैसे कह दे राजी कि वह पढाई अधूरी छोड़ कर दूसरी जाति के शिवम  के साथ सात फेरे ले चुकी है – – कि शिवम के वृद्ध बीमार माता-पिता की सेवा में उसे जीवन की रवानी मिल रही है

इसी उहापोह में एक दिन राजी ने डायरी में लिखा “भैय्या, मां और पिताजी बिस्तर पर पडे़ कराहते रहते हैं – टीनू मीनू गंदी यूनिफार्म में ही कई बार रोती हुई स्कूल चली जाती हैं। सबेरे नौ से पांच की ड्यूटी के बाद थक कर चूर भाभी बिखरे घर को समेटने में बेहाल सी लगी रहतीं हैं और रात को सोने से पहले पढीलिखी महिला की तरह डायरी लिखती हैं “आज का प्यारा दिन बीत गया – – आदि आदि। लेकिन भैया मैं ऐसा झूठा सच नहीं बनना चाहती। पढ लिख कर कामकाजी महिला की डायरी का झूठा पन्ना नहीं बनना चाहती। आप लोगों ने मुझे पढा लिखा कर बढ़िया पद पर कार्यरत महिला बनाने का सपना संजोया है लेकिन मखमली सपनों को कांटो के ताज में बदलते देखा है मैंने बुआ, भाभी और दीदी की जिंदगी में।

मैंने जीवन की डायरी का सच्चा पन्ना बनना स्वीकार किया है भैया। शिवम को उसके माता-पिता और बहन की चिंता से मुक्त करके उनके बिखरे घर को समेटने का संकल्प लिया है। आशीर्वाद दें कि मैं जिंदगी की इस परीक्षा में फर्स्ट क्लास फर्स्ट पास  होती रहूँ – – मैं डायरी का झूठा पन्ना नहीं बनना चाहती भैया आशीर्वाद दें कि जिंदगी का सच्चा प्रमाण पत्र बनूं”

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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