मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना
श्री अशोक कुमार धमेंनियाँ ‘अशोक’
( ई- अभिव्यक्ति में श्री अशोक कुमार धमेंनियाँ ‘अशोक’जी का हार्दिक स्वागत है।साहित्य की सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर। प्रकाशन – 4 पुस्तकें प्रकाशित 2 पुस्तकें प्रकाशनाधीन 3 सांझा प्रकाशन। विभिन्न मासिक साहित्यिक पत्रिकाओं में लघु कथाएं, कविता, कहानी, व्यंग्य, यात्रा वृतांत आदि प्रकाशित होते रहते हैं । कवि सम्मेलनों, चैनलों, नियमित गोष्ठियों में कविता आदि का पाठन तथा काव्य कृतियों पर समीक्षा लेखन। कई सामाजिक कार्यक्रमों में सहभागिता। भोपाल की प्राचीनतम साहित्यिक संस्था ‘कला मंदिर’ के उपाध्यक्ष। प्रादेशिक / राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत। आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक प्रेरक लघुकथा ‘लॉकडाउन ‘. )
☆ लघुकथा – लॉकडाउन ☆
सीमा ने अपना पर्स उठाया और बच्ची सानू से कहा:-
” सानू, खाना खा लेना। मुझे देर हो रही है। आज चार बत्ती चौराहे पर मेरी ड्यूटी है। वहां कुछ लोग इकट्ठे हो रहे हैं। लाकडाउन टूटने की पूरी- पूरी संभावना है। यदि एक भी संक्रमित व्यक्ति वहां पहुंच गया तो कोरोना के फैलने का 100% खतरा है।”
सीमा स्वास्थ्य विभाग की कर्मचारी थी तथा हमीदिया अस्पताल में सीनियर नर्स के रूप में काम करती थी। सेवा क्षेत्र में उसका बड़ा नाम था। उसकी वरिष्ठता और कार्य के प्रति समर्पण के कारण आज संवेदनशील स्थान पर ड्यूटी लगाई गई थी।
“पर मम्मी! लाकडाउन चल रहा है। लाकडाउन में किसी को भी घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है। यह कोरोना वायरस किसी को भी चपेट में ले सकता है। मम्मी! प्लीज , तुम ड्यूटी पर मत जाओ। अपनी तबीयत खराब की सूचना अस्पताल में दूरभाष पर दे दो। विभाग कोई और व्यवस्था कर लेगा।”-सानू ने स्कूटी बाहर निकालती हुई मम्मी से कहा।
” बेटा, ऐसा ही सब करने लगें तो फिर शासन-प्रशासन का काम कैसे चलेगा? जब देश पर शत्रु देश आक्रमण करता है तो सभी फौजियों की छुट्टियां निरस्त हो जाती हैं। सारे फौजी देश की रक्षा के लिए स्वयं उपस्थित हो जाते हैं। आजकल तो जो यह महामारी फैली है , यह युद्ध से भी ज्यादा खतरनाक है। कोई देश एक दूसरे की सहायता नहीं कर पा रहा है। जब देश को हमारी आवश्यकता हो और उसी समय हम छुट्टी ले लें। इससे बड़ा पाप और देश के प्रति गद्दारी का कार्य और कुछ नहीं हो सकता।”- सीमा ने अपनी बेटी सानू को समझाया।
“लेकिन मम्मी, टीवी पर जो खबर आ रही है, वह बहुत ही खतरनाक है। जिन बीमारों को बचाने के लिए आप लोग जाते हैं, वही आप लोगों पर थूकते हैं, मारने के लिए दौड़ते हैं, इस तरह से तो आप सभी लोग भी संक्रमित हो जाएंगे। दूसरों को बचाने के लिए जानबूझकर संकट क्यों बुलायें? मम्मी कुछ लोग बहुत खतरनाक हैं। आप लोग इनकी जान बचायें और ये आप लोगों की जान लेने पर आमादा हो जाएं। नहीं ! नहीं !! मम्मी प्लीज, आप ऐसे लोगों के बीच मत जाइए।”
“बेटा, आदमी कैसे भी हों , हैं तो अपने ही देश के नागरिक। उन्हें कोई गलतफहमी हो गई है। धीरे-धीरे सब समझ जाएंगे और फिर बेटा ऐसा ही फौज में युद्ध के समय होता है। यह तय होता है कि किसी ना किसी दुश्मन की गोली से सैनिक को मरना है। अब यह सोचकर सैनिक मोर्चे पर ना जाए , क्या यह संभव और उचित है ? युद्ध के समय तो सैनिक के अंदर देश की रक्षा के लिए दोहरी ताकत काम करने लगती है। वह खुशी-खुशी मोर्चे पर जाने के लिए उपस्थित हो जाता है। ना …..ना ……..बेटा ! तुम पाप कर्म के लिए मुझे प्रेरित मत करो। अपना ध्यान रखना। घर से बाहर मत निकलना और खाना समय पर खा लेना।”– यह कहते-कहते सीमा ने अपनी स्कूटी स्टार्ट कर ली।
“मम्मी, एक मिनट रुकना। मैं अभी आई। यह कह कर सानू ने घर के अंदर दौड़ लगा दी और घर से कुछ फूल हाथों में लाकर उसने मम्मी के ऊपर बरसा दिये। अब वह मुस्कुराते हुए मम्मी को ड्यूटी के लिए विदा कर रही थी।
© अशोक कुमार धमेंनियाँ ‘अशोक’
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