हिन्दी साहित्य – लघुकथा – ☆ 150वीं गांधी जयंती विशेष -2 ☆ दृष्टि ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक-2
श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। आज महात्मा गाँधी जी की 150 वीं जयंती पर प्रस्तुत है उनकी लघुकथा “दृष्टि ”। )
☆ लघुकथा— दृष्टि ☆
महात्मा गाँधी जी की मूर्ति के हाथ की लाठी टूटते ही मुँह पर अँगुली रखे हुए पहले बंदर ने अँगुली हटा कर दूसरे बंदर से कहा, “अरे भाई ! सुन. अपने कान से अँगुली हटा दे.”
उस का इशारा समझ कर दूसरे बंदर ने कान से अँगुली हटा कर कहा, “भाई मैं बुरा नहीं सुनना चाहता हूं. यह बात ध्यान रखना.”
“अरे भाई! जमाने के साथ साथ नियम भी बदल रहे हैं.” पहले बंदर ने दूसरे बंदर से कहा, “अभी-अभी मैंने डॉक्टर को कहते हुए सुना है. वह एक भाई को शाबाशी देते हुए कह रहा था आप ने यह बहुत बढ़िया काम किया. अपनी जलती हुई पड़ोसन के शरीर पर कंबल न डाल कर पानी डाल दिया. इस से वह ज्यादा जलने से बच गई. शाबाश!”
यह सुन कर तीसरे बंदर ने भी आँख खोल दी, “तब तो हमें भी बदल जाना चाहिए.” उस ने कहा तो पहला बंदर ने महात्मा गाँधी जी की लाठी देखते हुए कहा, “भाई ठीक कहते हो. अब तो महात्मा गाँधी जी की लाठी भी टूट गई है. अन्नाजी का अनशन भी काम नहीं कर रहा है. अब तो हमें भी कुछ सोचना चाहिए.”
“तो क्या करें?” दूसरा बंदर बोला.
“चलो! आज से हम तीनों अपने नियम बदल लेते हैं.”
“क्या?” तीसरे बंदर ने चौंक कर गाँधी जी की मूर्ति की ओर देखा. वह उन की बातें ध्यान से सुन रही थी.
“आज से हम— अच्छा सुनो, अच्छा देखो और अच्छा बोलो, का सिद्धांत अपना लेते हैं.” पहले बंदर ने कहा तो गाँधी जी की मूर्ति के हाथ अपने मुँह पर चला गया और आँखें आश्चर्य से फैल गई.