हिन्दी साहित्य – लघुकथा – ☆ 150वीं गांधी जयंती विशेष -2 ☆ पूछ रहे बैकुंठ से बापू ☆ श्री मनोज जैन “मित्र”
ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक-2
श्री मनोज जैन “मित्र”
(श्री मनोज जैन “मित्र” जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है. विगत 22 वर्षों से ग्रामीण अंचलों में सद् साहित्य के प्रचार हेतु निपोरन प्लस एवं दिया बत्ती नामक पत्रिकाओं के 36अंकों का निरंतर संपादन एवं प्रकाशन. प्रस्तुत है श्री मनोज जैन “मित्र” जी की कविता “पूछ रहे बैकुंठ से बापू”.)
☆ पूछ रहे बैकुंठ से बापू ☆
सिर्फ किताबों में मिलती है,
गांधी जी की अमर कहानी
नई पीढ़ी तैयार नहीं है,
सुनने तेरी कथा पुरानी
त्याग, तपस्या,आदर्शों के,
तिथि बाह्य सब तथ्य हो गए
जिनको बापू ने त्यागा था,
आज वही सब पथ्य हो गए
किसको चिंता रही देश की,
अब आहार बन गया भारत
चाटुकारिता की स्याही में,
निष्ठा की छुप गई इबारत
जनहित पर निज हित चढ़ बैठा,
अपना उल्लू सीधा करते
मरे वतन की खातिर बापू,
ये वेतन की खातिर मरते
बढ़ते हैं अपराध दिनों दिन,
अमन-चैन है आहत,खंडित
भ्रष्टाचार हुआ सम्मानित,
सत्य हुआ निर्वासित,दंडित
सर्वोपरि राष्ट्र की सेवा,
अब ऐसे अरमान कहां हैं?
पूछ रहे बैकुंठ से बापू,
मेरा हिंदुस्तान कहां है?
© मनोज जैन “मित्र”
पता- मुख्य पथ निवास, जिला मंडला (मध्य प्रदेश)
मो.9424931962