हिन्दी साहित्य – लघुकथा – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – क्रोध – ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – क्रोध

 

दोनों में बहस होने लगी थी। विवाद की तीक्ष्णता बढ़ती गई। आक्रोश में दोनों थे पर पहला मनुष्य था, दूसरा क्रोधी था। क्रोध, तर्क का पथ तज देता है, मर्म को चोट पहुँचाने की राह चलता है। इस राह के विनाशकारी मोड़ पर तिलमिलाहट टकराती है।

तिलमिलाहट में क्रोधी ने एक बड़ा पत्थर मनुष्य के सिर पर दे मारा। मनुष्य की मौत हो गई। क्रोधी को फाँसी चढ़ना पड़ा।

यश, संपदा, नेह, सम्बंध, अंतत: समूचे अस्तित्व की बलि ले लेता है क्रोध।

 

मनुष्यता बनी रहे।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]