श्री रमेश सैनी
(हम आभारी है व्यंग्य को समर्पित “व्यंग्यम संस्था, जबलपुर” के जिन्होंने 30 मई 2020 ‘ की गूगल मीटिंग तकनीक द्वारा आयोजित “व्यंग्यम मासिक गोष्ठी'”में प्रतिष्ठित व्यंग्यकारों की कृतियों को हमारे पाठकों से साझा करने का अवसर दिया है। इसी कड़ी में प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध लेखक/व्यंग्यकार श्री रमेश सैनी जी का एक समसामयिक एवं विचारणीय भावप्रवण व्यंग्य – “मैं भी पोते का दादा हूँ”। कृपया रचना में निहित मानवीय दृष्टिकोण को आत्मसात करें )
☆ मैं भी पोते का दादा हूँ ☆
कोरोना का लाकडाउन चालू है.. बाजार बंद हैं. चारों तरफ मातमी सन्नाटा है. पुलिस जगह जगह मुस्तैद है. आवाजाही पूर्णतया बंद है. कुछ बहादुर लोग नियमों को तोड़ने के लिए सड़क पर घूमते नज़र आ रहे हैं. ये लोग शेखी बघारने निकलते हैं. पुलिस के पास भी इनका इंतजाम है. कहीं पर ऊठक बैठक हो रही है, कहीं पर कान पकड़कर कसरत कराई जा रही है. कहीं पर लोग अपने पिछवाड़े पर हाथ रखकर दौड़ते नजर आ रहे हैं और जो लोग बच जाते हैं. वे फोन पर परिचितों को आँखों देखा हाल सुना रहे हैं. ये सब किस्से घरों में आम है. मै भी घर पर बैठा बैठा बोर हो रहा हूँ. बाहर घूमने की तलब बढ़ गई है. मुझे याद है, शहर में दंगे फसाद के समय दुस्साहस कर घुस जाता था. मुझे रोमांच लगता था. अभी भी मेरा मन बाहर जाने के लिए भड़भड़ा रहा है. सोचा चौराहे तक का चक्कर लगा आऊं. जैसे ही बाहर निकलने के लिए कदम बढ़ाए कि पीछे से आवाज आई.
“आप कहाँ चल दिए”-बेटे ने टोंका
” वैसे ही! थोड़ा माहौल का जायजा ले लूँ.”
“ठीक है, बाहर दुनिया ठीक चल रही है. सरकार ने जायजे के लिए पुलिस का बढ़िया इंतजाम कर रखा है. आप बिलकुल चिंता न करें. आपको अपनी उम्र का ख्याल रखना चाहिए. सरकार आप लोगों की चिंता में परेशान है. इतनी चेतावनी और एडवाइजरी जारी कर रही है पर आप लोग मानते ही नहीं.” – बेटे ने चिड़चिड़ा कर कहा.
“बेटा! अपनी उम्र का ख्याल रखता हूँ. यह इंडिया है दूसरे लोग भी हमारे बालों का ख्याल रखते हैं.” मैंने कहा.
तब उसने कहा- “आप लोग भी अपने बालों से बेज़ा फायदा उठाने में बाज नहीं आते” उसकी बात सुनकर मन खिन्न हो गया मैं वापस आकर सोफे पर बैठ गया. मुझे उदास बैठा देखकर बेटे ने फिर कहा “देखिए ! आपको मैं रोक तो नहीं पाऊंगा. अत: आप पूरी सावधानी के साथ चौराहे तक जाएं और दस मिनट में लौट के आज जाएं.” मैं खुश हो गया और जाने के लिए बाहर निकलने लगा. पीछे से आवाज आई – “दादू आप कहां जा रहे हैं. मेरे लिए कुछ फल ले आना. यह आवाज मेरे पोते कृष्णा की थी. मैं खुश था और इशारे से कहा-” हां ठीक ले आऊंगा”
मैं स्कूटी से चौराहे के पास पहुंचा है. सामने पुलिस ही पुलिस नजर आ रही थी. मुझे दूर से ही देख कर एक जवान पुलिस वाले ने इशारा किया. “रुक जाओ”. मैं उसके पास जाकर रुक गया. मुझे पास आते देख, वह पीछे हट गया. फिर उसने दूर से ही मेरा ऊपर से नीचे तक मुआयना किया. उसकी नजर मेरे सर पर गई. सिर पर पूरे सफेद बाल देखते ही उसने हाथ जोड़कर कहा -“अंकल कहां जा रहे हैं?”
“बेटा ! पोते के लिए फल लेने निकला हूँ” मैंने कहा.
“आप भी अंकल! अरे मोहल्ले में फल वाले निकलते होंगे” उसकी मिठास भरी आवाज मुझे अंदर तक ठंडा कर गई. पुलिस का यह रूप देखकर मैं चकित हो गया. मैंने सोचा यह करोना किसी से कुछ भी करवा सकता है. पुलिस वालों के सामने गरीब, अमीर ,जवान और बुड्ढे सब बराबर है. सच्चा समाजवाद यहीं है. ये लोग सिर्फ मनीपावर से डरते हैं.
“बेटा बहुत दिन से नहीं आया है. बच्चे जिद करने लगे तो निकलना पड़ा.”
” आपको अपना ख्याल रखना चाहिए करोना सबसे ज्यादा आप बुजुर्गों को असर करता है.”
मैं शर्मिंदा होगया उसकी बात सुनकर कहा”आप ठीक कह रहे हो।“
“अच्छा ऐसा करो! अंकल आप यहां से दाएं मुड़ जाइए और आगे फलों के ठेले मिल जाएंगे
“मैंने उसे धन्यवाद कहा आगे से दायें मुड़ गया. थोड़ा आगे बढ़ने पर दो-तीन फलों के ठेले दिखने लगे. मैं पहले ही ठेले पर रुक गया. ठेले पर पहले से ही तीन-चार लोग खड़े थे. मैं थोड़ी दूरी पर सोशल डिस्टेसिंग बना कर खड़ा हो गया. मैं देखा एक ने फलों को चुनकर अलग किया और उससे पूछा-” क्या भाव है ?” भाव सुनकर वह ठिठका और फलों को छोड़कर आगे बढ़ गया. ठेले वाले ने आवाज लगाई- “कुछ कम कर दूंगा” पर वह नहीं रुका. दूसरा भी उसको देख कर आगे बढ़ गया. उसने फिर आवाज लगाई-” ले लो यह सब ताजे हैं” वे दोनों आगे बढ़ गए और अगले के पास रुक गए. इस बीच तीसरे ने कुछ फल चुन लिए थे. जैसे ही उसने भाव पूछा. उसका भी मूड बदल गया और कहा- “अभी नहीं लेना है” यह कह वह भी आगे बढ़ गया. उन सब के जाने से ठेला वाला निराश और हताश हो गया.
मैंने कुछ तरबूज और अच्छे फल चुनकर उससे कहा -“तौल दो” उसने तौलने के लिए तराजू और बांट उठाएं. उसके गले में लटका चांद तारा वाला लॉकेट दिख गया. मुझे बिजली का करंट सा लग गया. टी व्ही पर आती हुई खबरें दिमाग में घूम गई .जमाती लोग बसों में यहां वहां थूक रहे हैं. कोई ठेला वाला थूक लगाकर फल और सब्जी बेच रहा है. तो कोई दरवाजे और हैंडलों में थूक लगा रहा है. ठेले वाले को देख मुझे टी व्ही वाले चित्र नज़र आने लगे. मैं सहम गया. मन में भय व्याप्त हो गया. अनेक विचार आने लगे. और कुछ सोच कर आगे बढ़ गया. मुझे बढ़ता देख ठेले वाले ने आवाज लगाई -“बाबू जी ! क्या हो गया? बाबू जी, सब ताजे फल हैं. उसकी आवाज सुनकर, मैं रुक गया, कहां -“हां ताजे हैं, मैं अभी लौट कर आता हूँ. और आगे बढ़ गया. ठेला वाला मेरा चेहरा देखता रहा फिर कुछ पल रुक कर कहा- “कोई बात नहीं बाबू जी”, फिर हाथ जोड़कर कहा- “बाबू जी जय श्रीराम”. जय श्रीराम सुनकर मैं भीतर तक कांप गया. मुझे जय श्रीराम का जवाब देते नहीं बना. मैं अपनी गाड़ी वहीं खड़ी कर ठेले वाले के पास आया. मैं कुछ देर उसे देखता रहा. फिर उससे पूछा- “कब से यह काम कर रहे हो” व्हाट्सएप और सोशल मीडिया से खबरें आ रही थी कि कुछ लोग मजबूरी के चलते अपना धंधा बदलकर फल और सब्जियों का ठेला लगाने लगे हैं, क्योंकि लाकडाउन में इन्हीं चीजों को बेचने की अनुमति थी. उसने कहा- “बाबूजी मैं अच्छा टेलर हूँ. मेरी छोटी दुकान है. पर लाकडाउन की वजह से वह बंद है. पेट पालने के लिए कुछ काम तो करना था. यह ठेला किराए पर लेकर फल बेचने लगा. मैं कुछ कहता, उसके पहले वह फिर बोला – बाबूजी ! यह नया धंधा है. मुझे कुछ समझ में नहीं आता. टेलर हूँ. इसलिए आदमी को नाप लेता हूँ. पर आदमी को तौल नहीं पाता. मैं कुछ देर उसे देखता रहा. फिर कहा-” तुम तो मुसलमान हो, फिर जय श्रीराम. मेरी बात सुनकर उसकी आंखें पनीली हो गई. -” हां! मुसलमान हूँ और एक इंसान भी. साथ में दो छोटे बच्चों का बाप भी हूँ. मैं उनको भूखा भी नहीं देख सकता. उसकी आंखें और बातें मुझे अंदर तक गीला कर गयीं. मैंने फल उठाएं उसे दो सौ का नोट दिया और आगे बढ़ गया. उसने पीछे से आवाज लगाई -“बाबूजी बाकी पैसे” मैंने कहा -“तुम रख लो. मैं भी पोते का दादा हूँ.
© रमेश सैनी
जबलपुर
मोबा. 8319856044 9825866402
Aajkal ke mahol aur hamare dekhne ka najaria bakhubi rachna me ubharkar aaya hai.??