डॉ मधुकांत
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ मधुकांत जी हरियाणा साहित्य अकादमी से बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सम्मान तथा महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान (पांच लाख) महामहिम राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री हरियाणा द्वारा पुरस्कृत। आपकी लगभग 175पुस्तकें प्रकाशित एवं रचनाओं पर शोध कार्य हो चूका है। एक नाटक ‘युवा क्रांति के शोले’ महाराष्ट्र सरकार के 12वीं कक्षा की हिंदी पुस्तक युवक भारती में सम्मिलित। रचनाओं का 27 भाषाओं में अनुवाद।
संप्रति –सेवानिवृत्त अध्यापक, स्वतंत्र लेखन ,रक्तदान सेवा तथा हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंथा के नाटक अंक का संपादन। प्रज्ञा साहित्यिक मंच के संरक्षक।
☆ व्यंग्य – शिक्षामंत्री ख्यालीराम ☆ डॉ मधुकांत ☆
वर्तमान सरकार से त्रस्त होकर जनता ने विपक्ष पर अपनी नजरें टिका दी। विपक्ष की कुछ ऐसे तेज हवा चली कि इस आंधी में ख्यालीराम भी एम.एल.ए. का चुनाव जीत गए। वैसे तो ख्यालीराम ग्राम प्रधान से लेकर विधायक बनने के सभी चुनाव हारता रहे परन्तु इस आंधी में तो उसके भाग्य का ताला खुल गया ।पहले ग्राम पंचायत में … फिर निर्दलीय विधायक के रुप में… उसके बाद पार्टी कार्यकर्ता… फिर पार्टी के चुनाव चिन्ह के लिए अपना भाग्य आजमाते रहे….। पार्टी में कितना भी संकट आया परंतु दलबदलू कहलाना ख्यालीराम को कभी पसंद नहीं आया एक बार अपनी मनपसंद पार्टी के साथ चिपक गया तो निरंतर उसी के साथ चिपके रहे इसलिए धीरे-धीरे उसका नाम वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की सूची में अंकित हो गया।
वैसे ख्यालीराम कोई काम धंधा तो करता नहीं था, फिर भी गाड़ी, बंगला और हमेशा सफेद खद्दर के कपड़ों में चमकता रहता था। कुछ नजदीकी लोग बताते हैं कि ख्यालीराम के कई प्रकार की ठेकेदारी में उनका हिस्सा रहता है । समाज के लोगों में बैठकर, उनके काम करा देता है तो चुपचाप आमदनी हो जाती है। मंत्री जी का चहेता तो है तो काम करने- कराने का कमीशन स्वयं उसकी जेब में पहुंच जाता है ।
अब तक तो वह ग्राम पंच से लेकर सभी चुनाव हारता रहा और समुद्र के किनारे बैठा लहरों को ताकता रहता था परंतु इस बार लहरें स्वयं चलकर उसके पास आ गई। चुनाव जीत गया तो बड़े सपने भी लेने लगा। मंत्री, उपमुख्यमंत्री …. क्या मालूम मुख्यमंत्री की कुर्सी भी हाथ आ जाए।
जातीय समीकरण लगाए जाएं तो वह इकलौता विधायक चुनकर आया है अपनी जाति से ।इस हिसाब से तो उसका मंत्री बनना निश्चित है । प्रधानमंत्री का कोई भरोसा नहीं कब किसके लिए क्या चमत्कार कर दें, और फिर बड़े सपने लेने में हर्ज भी क्या है।
सपने सच होने की संभावना दिखाई देने लगी राजनीतिक गलियारों में उसके नाम की चर्चा होने लगी। ख्यालीराम ने भी भागदौड़ करने में दिन रात एक कर दिया।
रात को पार्टी अध्यक्ष ने ख्यालीराम को मिलने का समय दिया। बैठक में जाने से पूर्व वह पार्टी के लिए निष्ठा व सक्रियता की फाइल और अपने किए गए संघर्षों के चित्र फाइल में लगाकर अपनी बगल में दवाए पार्टी अध्यक्ष के कार्यालय में पहुंचा ।ख्यालीराम ने अपने सारी खूबियों का बखान किया तो अध्यक्ष महोदय ने कहा, ख्यालीराम जी मैं पक्का तो नहीं कह सकता परंतु यदि कोई संभावना बनती है तो आपको शिक्षा मंत्री बनाया जा सकता है…..।
क्या… शिक्षा मंत्री, क्यों उपहास करते हो? मैंने तो कभी कॉलेज का मुंह भी नहीं देखा….।
“फिर आप के बायोडाटा मैं तो स्नातक लिखा है “…।
“भाई साहब सब पर्दे में रहने दो। वह, बिना कॉलेज गए भी तो डिग्री मिल जाती हैं ..क्या कहते हैं उसे… ओपन यूनिवर्सिटी से..। यह पढ़ने- पढ़ाने का काम हमारे बस का नहीं है। पढ़ाई- वडाई से बचने के लिए तो हम राजनीति में आए थे । नहीं भाई जी… नहीं ,हमें तो कोई ऐसा काम दिलवा दो जिसमें पढ़ाई- लिखाई का काम ना हो। मेहनत- मजदूरी का काम हो ।जैसे उद्योग मंत्रालय, वित्त मंत्रालय आदि….।
ख्यालीराम ने सुन रखा था शिक्षा विभाग में कुछ खास आमदनी नहीं है । उद्योग मंत्रालय, वित्त मंत्रालय में घर बैठे ही कमाई होती है।
” खैर देखते हैं क्या होता है ख्यालीराम जी मैं तो आपके विचार मुख्यमंत्री जी के सामने रख दूंगा ।आगे उनकी मर्जी,” अपनी बात समाप्त कार अध्यक्ष महोदय तुरंत उठकर अंदर चले गए ।
ख्यालीराम जी कार्यालय से बाहर आए तो उनके चुनाव कार्यालय के मुखिया बाहर प्रतीक्षा कर रहे थे।
” क्या रहा नेताजी? उन्होंने तपाक से पूछा ।
“रहना क्या है मुखिया शिक्षा मंत्रालय की कह रहे थे तो हमने टालमटोल कर दिया।भैइया शिक्षा तो हमको बचपन से ही पसंद नहीं है इसलिए बचपन में एक दिन मास्टर को पत्थर मारकर घर भाग आए थे। फिर चुनाव में हमारा उतरना, इतना धन खर्च करना, कोई आमदनी का मंत्रालय तो हो…..। मास्टरों का क्या है ₹100 रुपयों का चंदा देंगे तो लाख रुपए की बदनामी करेंगे….।
“क्या गजब करते हो नेताजी। मंत्रालय कोई भी हो सब दुधारू गाय होते हैं । सभी मंत्रालय अच्छे हैं, बस नेताजी को कमाना आना चाहिए। आपको वह कहानी याद है ना कि राजा ने एक रिश्वतखोर मंत्री को समुद्र की लहरें गिरने का काम सौंप दिया था ताकि वह कोई कमाई ना कर सके परंतु उसने तो लहरों को गिनकर ही अपनी कमाई का जरिया निकाल लिया ।कमाई तो सब जगह बिखरी पड़ी है, मंत्री में कमाने का हुनर होना चाहिए …और कहीं बिना मंत्रालय के छूट गए तो मक्खियां भी नहीं भिन्न-भिन्नाएंगी।”
” ऐसा नहीं है मुखिया, हमारी जात में केवल मैंने ही चुनाव जीता है.. पार्टी अध्यक्ष हमारी उपेक्षा नहीं कर सकते । और सोचो शिक्षा मंत्रालय मे बेकार का काम भी बहुत होता है।” ” काम की खूब कही नेताजी! आपके पास तो शिक्षाबोर्ड है सभी छात्रों- अध्यापकों को बोर्ड से भयभीत करते रहना। कभी कक्षाओं की बोर्ड परीक्षा रखवा देना। कभी बोर्ड परीक्षा को समाप्त कर देना जब सारे प्रदेश की बोर्ड परीक्षा हमारे हाथ में होगी तो सब कुछ हमारे नियंत्रण में रहेगा। हम अच्छा बुरा कुछ भी परिणाम निकाले, हमारी मर्जी । वैसे तो अंग्रेजों ने हमारी शिक्षा व्यवस्था की बहुत सुदृढ़ बना रखा है फिर भी खबरों में बने रहने के लिए अपनी सक्रियता दिखाते हुए कुछ नए नियम बनाते रहना। चल जाए तो तीर नहीं तो तुक्का ।अधिक विरोध हो जाए तो नियम को वापस ले लेना ।
इसी प्रकार धीरे-धीरे समय बीता जाएगा। फिर अगले चुनाव की दौड़- धूप आरंभ कर देना।
“मुखिया क्या बोर्ड की बात करते हो। आए दिन पेपर आउट, परीक्षा में नकल ,परिणाम में गड़बड़ी, 134a के लफड़े ,रोज कोई ना कोई खबर आती रहती है….।”
” आने दो आपको क्या चिंता। आपका मास्टर तान कर सोता है तो फिर आप भी लंबी तान कर सोओ। शिक्षा तो भगवान की कृपा से चल रही है । फिर आपका अध्यापक नहीं पढाएगा तो उसके अभिभावक पढा लेंगे ,नहीं तो ट्यूशन रखवा देंगे। सच कहते हैं यदि वर्ष भर कक्षा में एक भी अध्यापक पढ़ाई न कराए और छात्रों की परीक्षा ले ली जाए तो भी आधे छात्र अपने आप पास हो जाएंगे।
वैसे भी कौन सा अच्छा परिणाम आता है ।वर्ष भर मारामारी करो तब 60-65 परसेंट रिजल्ट आता है।
जिसका डर था वही हुआ मुख्यमंत्री के साथ ख्यालीराम को भी शिक्षा मंत्री की शपथ दिलवा दी गई। शिक्षा मंत्री बनने के बाद अनेक जाने अनजाने मित्रों, अध्यापक- अध्यापिका की बधाई आने आरंभ हो गई। शपथ ग्रहण करने के बाद जैसे ही शिक्षामंत्री ख्यालीराम बाहर आए तो अनेक कजरारे नैन उनकी राह में मस्तक झुकाए खड़े थे जो उनको आश्वस्त कर रहे थे कि अब आपका कार्यालय सदैव सुगंध से महकता रहेगा।
© डॉ मधुकांत
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