श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक विचारणीय व्यंग्य “समस्याएँ कम नहीं हैं मैकदा घर में बनाने में”।)
☆ शेष कुशल # 35 ☆
☆ व्यंग्य – “समस्याएँ कम नहीं हैं मैकदा घर में बनाने में” – शांतिलाल जैन ☆
कागजों में वे शिद्दत से कुछ ढूंढ रहे थे. पूछा तो बोले – पुराने इनकम टैक्स रिटर्न्स की कॉपी ढूंढ रहा हूँ. वजह ये कि कुछ दिनों पहले उत्तराखंड सरकार ने ‘होम मिनी बार’ योजना के अंतर्गत के लायसेंस देने की जो शर्तें रखीं हैं उनमें पहली शर्त यही रही कि पाँच साल के इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल किए हुए होने चाहिए. वे आशावान हैं कि अपनी छत के नीचे आसवपान की जो योजना देवभूमि में लागू होने जा रही है वो एक दिन मध्यप्रदेश में भी लागू की जा सकती है. घर में मधुशाला उनका ड्रीम था, जल्द ही सच होता दीख रहा है. ये तो आचार संहिता लग गई श्रीमान वरना इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कॉलोनी में कोई आगंतुक पूछ रहा होता – भाईसाहब, ये श्रीवास्तवजी कहाँ रहते हैं ?
कौनसे वाले श्रीवास्तवजी ? वोई जिनके घर में एक मैकदा है ? आप ऐसे करें आगे से बायीं ओर की दूसरी गली में मुड़ जाईए. जैसे ही मुड़ेंगे मदहोश बयार आने लगेगी, राईट साईड में जिस मकान के बाहर जोर का भभका आने लगे बस वहीं रहते हैं श्रीवास्तवजी.’ बहादुरशाह ज़फर होते तो ग़ज़ल का मिसरा बदल लेते – ‘जिस तरफ उसका घर उसी तरफ मैकदा.’
खैर यह जब होगा तब होगा, फ़िलहाल समस्या ये भी है कि घर के किस हिस्से में बनाई जाए मधुशाला. वास्तुवाले कह रहे हैं ईशान कोण ठीक रहेगा, दारू में बरकत रहती है. पूर्व दिशा की ओर बैठकर पीने से सुरूर अच्छा चढ़ता है. बीम के नीचे नहीं पीना चाहिए, अटैक आने का खतरा रहता है. सो उत्तर-पूर्व का कमरा तय रहा. किचन लगा हुआ ही है, एक इंट्री इधर से भी दे देते हैं – आईस, चखना वगैरह लाने में ठीक रहेगा.
मैंने पूछा – ‘उल्टियाँ कहाँ करोगे ?’
वे बोले – ‘उस कार्नर में, दो तीन बड़े और गहरे आकार के वाश-बेसिन लगवाने से हो जाएगा.’ मैंने धीरे से मुआयना किया, इसी रूम के पीछे जो गली पड़ती है गिरने के लिए उसकी नाली मुफीद पड़ेगी. वे बोले – ‘पूजा घर पीछे माँ के रूम में शिफ्ट कर देते हैं और गेट पर बायोमेट्रिक्स लॉक भी लगवा लेते हैं.’
‘वो किसलिए ?’ – मैंने पूछा.
बोले – रूल है गौरमिंट का. होम मिनी बार में 21 वर्ष से कम के फेमेली मेम्बर्स की पहुँच नहीं रहनी चाहिए. चुन्नू, चिंकी और चिंटू के थम्ब इम्प्रैशन से खुलेगा नहीं – ‘द हाउस ऑफ़ वाईंस’. विक्की के इक्कीस बरस में चार महीने कम पड़ रहे हैं. लायसेंस आने तक वह भी पीने योग्य हो जाएगा.
मैंने पूछा –‘एट ए टाईम, कित्ता माल रख सकोगे?’
वे बोले – उत्तराखंड सरकार ने तो अधिकतम नौ लीटर इंडियन फॉरेन लिकर, 18 लीटर फॉरेन लिकर, 9 लीटर वाइन और 15.6 लीटर बीयर स्टोर करने की परमिशन दी है. एम.पी. में इससे तो कुछ बढ़कर ही समझो. ओवरऑल लिमिट हंड्रेड लीटर्स की हो जाए तो सोने में सुहागा. संयुक्त परिवार है, रिश्तेदारी है, यारी दोस्ती है इतना स्टॉक रखना तो बनता है. कल को आप ही मिलने आए तो पूछना तो पड़ेगा कि ट्वंटी एमएल चलेगी शांतिबाबू. मैंने कहा – आपको पता है मैं पीता नहीं हूँ. बोले – वो मैंने एक बात कही. हम नहीं पूछते तो आप कहते – लो साब श्रीवास्तव के घर गए और उनने दो घूँट का पूछा तक नहीं. बहरहाल, कंपोजिट लायसेंस मिल गया तो थोड़ी देसी भी रख लेंगे – घर में नौकर-चाकर भी तो हैं.
मैंने कहा – ‘आबकारी नीति के अनुसार ड्राई-डे पर मिनी होम बार बंद रखना पड़ेगा.’
वे बोले – मना तो ट्रेन में भी होती है. तो क्या कोल्ड्रिंक में लेकर गए नहीं कभी ? श्रीवास्तव को आप जानते नहीं हो शांतिबाबू, सरकार डाल-डाल तो श्रीवास्तव पात-पात. उनके चेहरे पर किला फतह करने के भाव आए.
इस बीच खबर आई कि उत्तराखंड सरकार ने कुछ दिनों के लिए अपना निर्णय स्थगित कर दिया है. श्रीवास्तवजी आशावान हैं निरस्त तो नहीं किया ना! अच्छा है तब तक पुराने आईटीआर भी ढूंढ लेंगे और बाकी तैयारियाँ पूरी करके रख लेंगे. मुझे मेराज फैजाबादी याद आए – ‘मैकदे में किसने कितनी पी, खुदा जाने. मयकदा तो मेरी बस्ती के कई घर पी गया..’
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