श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
अब हम सब रिजर्व
(प्रस्तुत है श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी का एक सामयिक , सटीक एवं सार्थक व्यंग्य।)
रिजर्वेशन से अपना पहला परिचय तब हुआ था जब हम बहुत छोटे थे और ट्रेन की टिकिट पुट्ठे की, सच्ची की टिकिट की तरह की छोटी सी टिकिट ही होती थी. मेरे जैसे सहेजू बच्चे सफर के बाद उसका संग्रह किया करते थे. यात्रा की तारीख उस टिकिट पर पंच करके बिना स्याही के केवल इंप्रेशन से अंकित की जाती थी. पहले टिकिट विंडो से खरीदी गई फिर काले कोट वाले टी सी साहब को वह दिखाकर पापा ने बर्थ रिजर्व करवाई थी. और हम लोग बड़े ठाठ से आरक्षित डब्बे में अपनी आरक्षित सीट पर सफर के लिये बैठे थे. वैसे जब मेरी बड़ी भांजी छोटी सी थी तो, उसे हर बच्चे की तरह नानी मामा के पास बहुत अच्छा लगता था, जब भी वह कोई शैतानी करती तो मेरी माँ उसे डराने के लिये मुझसे कहती कि इसका रिजर्वेशन करवाओ, वापसी का स्वगत अर्थ समझ कर वह नन्ही परी सी बच्ची तुरंत हमारा कहना मान जाती थी.
अब इसका यह अर्थ कतई न लगाया जावे कि कहना मनवाने के लिये रिजर्वेशन का प्रयोग देश के प्रबुद्ध मतदाताओ के साथ भी किया जा सकता है. गाड़ी में पैट्रोल रिजर्व में आ जाता है तो लाल बत्ती का इंडीकेटर ब्लिंक होने लगता है, या बहुत अधिक रिजर्व व्यक्तित्व के लोग आत्मकेंद्रित होते हैं, इस दृष्टि से भले ही रिजर्व का भावार्थ सकारात्मक न हो पर रिजर्व सीट पर बैठने के ठाठ ही अलग हैं. मूवी जाने से पहले आनलाइन सीट रिजर्व करके कार्नर सीट पर पत्नी के साथ बैठ कर भुट्टे की लाई को पाप कार्न के रूप में मंहगें दामो पर खरीद कर खाने से फिल्म का आनंद बढ़ जाता है. जिसके प्रभाव से अगले दिन फिल्म के विषय में मित्रो के साथ बात करते हुये एक गंभीर क्रिटिक नजरिया अपने आप पैदा हो जाता है. डिनर के लिये रेस्ट्रां जाने से पहले यदि टेबिल बुक कर ली जाती है तो ए सी डायनिंग हाल में पहुंचने पर जिस अदा से सफेद वर्दी में सजा हुआ, कलगी वाला वेटर आपको इज्जत से बैठाता है, सर्विस चार्ज अपने आप वसूल हो जाता है. सीट रिजर्व होने की ही महिमा होती है कि हवाई जहाज में सुंदर परिचारिकायें मुस्करा कर दरवाजा छेंककर आपका ऐसा स्वागत करती हैं, जो शादी के बाद जूता चुराई के समय हसीन साली मण्डली द्वारा मनुहार भरे स्वागत की याद दिला देता है.
अपार्टमेंट के पार्किंग लाउंज में यदि आपके फ्लैट का नम्बर आपकी कार के लिये लिखा हो या आफिस की पार्किंग में डेजिगनेशन से पार्किंग स्पेस आरक्षित हो तो कभी भी आओ कार पार्क करने का ठाठ ही निराला होता है. कहने का अर्थ है कि रिजर्वेशन मनोबल बढ़ाता है, बड़प्पन का अहसास करवाता है, भीड़ से अलग कुछ विशिष्ट बनाता है.अतः जो लोग समानता के नाम पर रिजर्वेशन के खिलाफ हैं, मैं उनके खिलाफ खड़े लोगो का पुरजोर समर्थन करता हूं. रिजर्वेशन के मजे हर भारतवासी तक पहुंचे यह चुनी हुई सरकार की नैतिक जिम्मेवारी होनी ही चाहिये.
मेरे जैसे जितने टैक्स पेयर अपनी मेहनत से कमाये गये रुपयो के बल पर अपने लिये इस तरह के रिजर्वेशन के ये ठाठ खरीद सकते हैं , वे तो स्वतः धन्य हैं. उन्हें फिर से धन्यवाद. जो बेचारे जन्मना पिछड़ी जाति में, या संविधान की अनुसूची में दर्ज जातियो में पैदा हो गये हैं, उन्हें भी
धन्यवाद कि उन्हें रिजर्वेशन के ठाठ दिलवाने के लिये कम से कम आज की सरकार को कुछ नही करना पड़ रहा. पर मैं हृदय से आभारी हूं पक्ष विपक्ष के नेताओ का जिनके समर्थन से राज्य सभा, लोकसभा, चुनाव सभा हर जगह दस प्रतिशत ही सही पर हर पिछड़े हुये भारतवासी को जिसे और किसी जुगाड़ से रिजर्वेशन का स्वाद नही मिल पा रहा था, उन्हें भी यह सर्वाधिक आर्कषक फल चखने को मिलने की जुगत बन सकी है. अब जो विघ्न संतोषी यह तर्क कर रहे हैं कि भाई दस ही क्यो ? ग्यारह , बारह या बीस क्यो नही ? उनसे मेरा प्रतिसवाल है कि दशमलव पद्धति है, दस के दम से शुरुवात हुई है, भविष्य में चुनावो के लिये मांगें करने तोड़ फोड़ करने के स्कोप भी तो बाकी रहने
चाहिये.
इसलिये बिना सवाल किये खुश होने का समय है, आज हम सब आरक्षित हैं. रिजर्वेशन के मजे लूटिये हर भारत वासी के माथे पर गर्व के वे भाव आ जाने चाहिये जो रिजर्व सीट पर बैठते हुये आते हैं , जब वेटर आपके लिये कुर्सी खींचकर आपको उस पर पदासीन करता है.
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
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