श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक विचारणीय व्यंग्य  “धांधलियों से आगे धांधली तक का सफ़र.…”।) 

☆ शेष कुशल # 41 ☆

☆ व्यंग्य – “धांधलियों से आगे धांधली तक का सफ़र…” – शांतिलाल जैन 

विशाल सभागृह, अर्धवृत्ताकार मंच, श्रोताओं में शिक्षक, अभिभावक, नीट में धांधली का शिकार छात्रों का समूह, शिक्षा के व़जीर और उनके महकमे के मुलाज़िम. उपस्थित समूह की जननायक से हुई काल्पनिक चर्चा और सवाल-जवाब की संक्षिप्त रपट यहाँ प्रस्तुत है.

“जननायक के सामने सबसे कठिन प्रश्न था बच्चों को हिम्मत हारने से बचने के सुझाव देना. उन्होंने कहा कि परीक्षा में धांधली के शिकार छात्रों को निराश नहीं होना चाहिए. आपने चुनाव में धांधली के शिकार किसी नेता को आत्मघाती कदम उठाते हुए कभी देखा है? वो धांधलियों से आगे धांधली करना सीखता है. राजनीति में जो जितनी अधिक धांधलियाँ कर लेता है उसे उतनी अधिक सफलताएँ प्राप्त होती हैं. जननायक तो अपनी ही पार्टी के एक्जामपल देना चाह रहे थे कि टेलीप्रोम्प्टर पर आई सलाह ने उन्हें रोक दिया. उन्होंने छात्रों को बताया कि ये आर्यावर्त है, यहाँ धांधली कभी सहना होती है, कभी करना होती है. नीट की परीक्षा में धांधली आपके लिए एक स्टेपिंग स्टोन है. आपको धांधली सहना और धांधली करना दोनों सीख लेना चाहिए, अवसर मिले तो कर डालिए नहीं तो सहन करते हुए अवसर की प्रतीक्षा कीजिए. और, अब आर्यावर्त में ऐसा कुछ नहीं रहा कि धांधलियों से जन-विश्वास कमज़ोर हो जाते हों. ये राजनेताओं पर जन-विश्वास ही है जो व्यापम से नीट तक तमाम कारगुजारियों के बावजूद हर बार छात्रों को परीक्षा हॉल तक ले आता है. आर्यावर्त में जीवन धांधलियों से आगे धांधली तक की यात्रा है. यात्रा से याद आया, आप यात्रा करके परीक्षा देने जिस शहर में आए हैं हमने इसका मुगलकालीन नाम बदल दिया है. नाम बदलने से युवाओं का भविष्य सुरक्षित होता है, पेपर लीक रोकने से नहीं.

बैचमेट्स की सफलताओं के दबाव और दोस्तों के बीच कॉम्पिटीशन के सवाल पर जननायक ने कहा कि कॉम्पिटीशन हेल्दी होना चाहिए. एक बार फिर उन्होंने राजनीति का उदहारण सामने रखते हुए कहा कि राजनेता जेल में डालनेवाला हो या जेल में डलनेवाला दोनों के बीच टॉम एंड ज़ेर्री नुमा प्रतिस्पर्धा होती है. जब इसका समय आता है उसको जेल में डाल देता है, जब उसका समय आता है इसको जेल में डाल देता है. एक होड़ सी मची रहती है किसने किस पार्टी के कितने जेल में डाले. अपोजिशन का गला काट लेना लोकतंत्र स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की निशानी है. सिमिलरली, कॉम्पिटीशन मेडिकल कॉलेजों की मंडी में भी कम नहीं है. बारह हज़ार करोड़ रूपये सालाना का बाज़ार है. सीटें भरती नहीं हैं, नीलाम होती हैं. सरकार का काम है मार्किट को सपोर्ट करना. बिग कार्पोरेट्स को इंसेंटिव चाहिए, सरकार देती है. नीट में चहेतों को ग्रेस मार्क्स चाहिए, सरकार देती है. मेडिकल सीट्स के ओपन मार्किट में सर्वाईवल ऑफ़ दी फिटेस्ट का प्रिंसिपल समझ लेंगे तो कभी आत्मघाती कदम नहीं उठाएँगे.

जननायक ने अल्टरनेटिव् कॅरियर के बारे में भी सलाह दी. अभिभावकों से आग्रह किया कि अगर वे डॉक्टरी की सीट अफोर्ड नहीं कर सकते तो बच्चों को पानी-पतासी बेचने जैसे कामों में लगाएँ. उन्हें समझाएँ कि कोई कितना भी बड़ा डॉक्टर क्यों न बन जाए एक दिन वो आपके बच्चे के सामने हाथ में दोना लेकर हींग के पानीवाली पतासी जरूर मांगेगा. पतासी बेचनेवाले युवा की उपलब्धि नीट से परीक्षा पास डॉक्टर की उपलब्धि से कमतर नहीं है. कुछ लोग जो आज संसद में और विधानसभाओं में हैं कभी वे भी पानी-पतासी ही बेचा करते थे. नीट में चूक जाने पर नकारात्मकता का संचार होता है, पानी-पतासी बेचने से सकारात्मकता आती है. आई ऑलवेज सी ए लुकरेटिव कॅरियर इन सेलिंग ऑफ़ पानी पतासी.

परीक्षा के तनाव से मुकाबला करने के लिए उन्होंने रील बनाने की जरूरत पर जोर दिया. रील बनाते रहने में छात्रों के तनाव दूर करने की क्षमता है. सरकार ने डाटा सस्ता रखा है. आप रील बनाएँ और भूल जाएँ कि आपके साथ धोखा हो रहा है. फनी रील बनानेवाले – ‘पापा, मुझे माफ़ कर देना. मैं आपका सपना पूरा नहीं कर सका. आई लव यू पापा’ लिखकर आत्महत्या करना कायरता है, रील बनाते रहना वीरता है.

छात्रों को प्रेरित करने में शिक्षकों की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षकों को आदिवासी युवा और राजकुमारों में फर्क करना आना चाहिए. राजशाही हो कि लोकशाही, अंगूठा किसका लेना है और धनुर्धर किसको बनाना है यह हैसियत से तय होता आया है. अपना आकलन आप स्वयं करें – पाँच सितारा निजी मेडिकल कॉलेज में जाने की हैसियत रखते हैं कि गांधीज में से किसी के नाम पर धरे गए सरकारी कॉलेज में. सर्वाईवल ऑफ़ दी फिटेस्ट. यहाँ फिट नहीं हो पा रहे तो डॉक्टरी पढ़ने यूक्रेन, बेलारूस या चीन निकल जाएँ. वहाँ के वार की चिंता न करें. हम निकाल लाएंगे आपको.

जाँच पर एक अभिभावक के प्रश्न के उत्तर में जननायक ने कहा कि सरकार को सब ज्ञात होता है, मगर वो मामले अज्ञात पर दर्ज करती है. अज्ञात को कब ज्ञात कराना है और ज्ञात को कब अज्ञात करा देना है वो आप हम पर छोड़ दीजिए. आप लोग ज्ञात-अज्ञात के फेर में न रहें, दूरदर्शन पर टी-20 फ्री टेलीकास्ट हो रहा है, एन्जॉय करें.

अंत में, शिक्षा के वज़ीर ने आश्वस्त करते हुए कहा कि सरकार पेपर लीक करने और सॉल्व करने के कारोबार को इंडस्ट्री का दर्जा देने पर गंभीरता से विचार कर रही है. हम चाहते हैं सॉल्वर-गैंग में प्रतिभाशाली बेरोजगार युवा जुड़े और ‘पेपर-लीक एंड सॉल्विंग इंडस्ट्रीज (प्रा.) लिमिटेड’ जैसे स्टार्ट-अप लगा सकें. उन्होंने जननायक और श्रोताओं का धन्यवाद अदा किया और सभी को शुभकामनाएं देकर विदा ली.”

-x-x-x-

© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments