श्री शांतिलाल जैन

 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अप्रतिम और विचारणीय व्यंग्य  क्रेडिट कार्ड के जाल में जेन ज़ेड मछली…” ।)

☆ शेष कुशल # 45 ☆

☆ व्यंग्य – “क्रेडिट कार्ड के जाल में जेन ज़ेड मछली…” – शांतिलाल जैन 

एक मछली और मर गई. – इसमें हैरत की कौनसी बात है!!

बात है श्रीमान. काया इंसान की, मगर काँटे में मछली की तरह फँस गई थी. जेन ज़ेड पीढ़ी का वय. महज़ साढ़े पच्चीस बरस की उम्र. अपने कमरे में, अपने ही पंखे से, अपनी ही बेडशीट का फंदा लगाकर, अपनी ही जान ले ली. कार्पोरेट मछुआरे के बिछाए आकर्षक लुभावने जाल में फँस गई थी वो. क्रेडिट कार्ड का जाल. प्लैटिनम एलिट कार्ड. नाम से ही अमीरी टपकाता. कार्ड प्लास्टिक का, तासीर लोहे की. मेग्नेटिक स्ट्रिप उसे खेंच रही थी. बाज़ार के समंदर की लहरें उसे जाल की तरफ धकेल रही थीं तो कैसे नहीं फँसती!!  ‘ये क्रेडिट कार्ड हम खास आपके लिए लाए हैं.’  कोमल, मधुर, मखमली आवाज़ में की गई जादुई पेशकश ठुकरा पाना मुश्किल था. वो भी मना नहीं कर सकी थी. जाल में फँस ही गई.

जेन-ज़ेड मछली जब फँसी तो दम एक-दम से तोड़ा नहीं था. छटपटाती रही, तड़पती रही, पछताती रही मगर बच नहीं सकती थी. उसकी नींद काफूर हो चुकी थी और चैन सिरे से गायब. खरीदी का पहला महीना ख़त्म हुआ, मिनिमम ड्यूज चुकाया और बचे बेलेंस के साथ दन्न से आ धंसी कर्ज के दलदल में, फिर और धंसी, थोड़ा और धंसी. दलदल शनै-शनै गहराता जाता था. पहले अठारह, फिर चौबीस, फिर छत्तीस परसेंट ब्याज की गहराई में वो उतरती-धंसती चली गई. उसके आगे हाराकिरी करने की नौबत आन पड़ी.

कार्पोरेट मछुआरे ने जेन ज़ेड मछली को जादुई कालीन से उपभोग की दुनिया की सैर कराने का रोमांचक सपना दिखाया था. वो कब कालीन पर बैठ कर उड़ चली पता ही नहीं चला. आकर्षक खूबसूरत फ्रेंड के साथ सातवें आसमां की सैर पर पहुँची. यहाँ उसे आईफोन मिला, बाईक मिली, एसयूवी बुक की, होम थियेटर मिला, महंगे डिज़ाइंड अप्पैरल्स मिले, हॉलीडे होम मिला, लक्ज़री स्टे मिला, बिग बनयान मर्लोट का ड्रिंक और लज़ीज़ इंटरकॉन्टिनेंटल खाना. पूरे महीने मौज, मस्ती, फन अनलिमिटेड. मंत्रमुग्ध थी. उसे लगा कि कारूं के खजाने की चाबी उसकी ज़ेब में आ गई है. कहाँ समंदर में पड़ी रही अब तक, असली दुनिया तो यहाँ है, उपभोग के आसमान में. और, कमाल ये कि उसे कहीं कोई भुगतान नहीं करना पड़ा. बस बेचवाल की मशीन में कार्ड से चीरा लगाया और विलासिता की भव्य दुनिया में प्रवेश कर गई. महीना पूरा होने तक यहाँ एन्जॉय के सिवाय कुछ नहीं था. जो भी है बस एक यही पल है. पूरा आसमान तुम्हारा है बस ओटीपी सही से डालना. फिर एक दिन बैंक से स्टेटमेंट मिला और जादुई कालीन एक मज़बूत जाल में बदल गया. जेन-ज़ेड मछली पूरी तरह गिरफ्त में आ चुकी थी.

क्या पूछा आपने श्रीमान कि मछली के कांटे में चारा कौनसा लगाया था ? कमाल करते हैं आप. बड़े, आकर्षक, लुभावने, रंगीन, पूरे पेज के विज्ञापन नहीं देखे आपने ? कॅशबैक का चारा. नो कास्ट ईएम्आई का चारा. डिसकाउंट का चारा, रिवार्ड पॉइंट्स का चारा, लॉयल्टी पॉइंट्स का चारा. एयरपोर्ट के लक्ज़री लाऊंज़ में फ्री इंट्री का चारा. होलीडेईंग में छूट की चारा. कैशबैक, रिवार्ड, लॉयल्टी पॉइंट्स के बदले मालदीव्स की मुफ्त सैर का चारा. नए नए टाईप के चारे. चारे का चस्का. चस्के के काँटे में फंसी जेन ज़ेड के पास छुड़ाकर निकल पाने की गैल न थी.

क़र्ज़ का दलदल गीला तो था मगर उसमें मछली के लायक पानी न था. कुछ था तो वसूली का तकादा था, डेलिंक्वेंट लिस्ट में नाम था, खराब सिबिल स्कोर था और रिकवरी एजेंट के बाउन्सर्स का डर था. फ्रेंड अन-फ्रेंड हो चुके थे. रिश्तेदारों ने असमर्थता व्यक्त कर दी थी. माता-पिता ने जीवनभर की कमाई दे दी तब भी क़र्ज़ चुक नहीं पा रहा था. तो क्या करती जेन-ज़ेड मछली. फंदा लगाकर झूल गई.

कुछ लिखकर गई क्या ? नहीं. लेकिन सुना है तूती जैसी आवाज़ में कुछ बोलकर रिकार्ड कर गई है जो बाज़ार के नक्कारखाने में सुनाई नहीं दे रहा है. सुन पा रहे हैं तो बस कार्पोरेट का अट्टहास, क्रेडिट कार्ड की ग्रोथ के आंकड़े, जीडीपी में योगदान, क्रेडिट कार्ड कंपनी के विस्तार की योजनाओं के ऐलान. जाल अभी और लम्बा फिंकेगा. बाज़ार की शार्क का आसान शिकार जेन ज़ेड मछलियाँ. भूख बढ़ती जाती है और जेन ज़ेड इसके लिए तैयार भी है. तो प्रतीक्षा कीजिए, फंदे पर लटके अगले शिकार की.  हाँ, हैरानी मत जताईएगा, यह न्यू नार्मल है.  

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© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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