हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – * बापू बड़े काम की चीज * – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
गणतंत्रता दिवस विशेष
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
बापू बड़े काम की चीज
(गणतन्त्र दिवस पर सब बापू के भोंपू बजाने की तैयारी में हैं। प्रख्यात व्यंग्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी इसे कैसे देखते हैं बांचिये)
शहर के मुख्य चौराहे पर बापू का बुत है, उसके ठीक सामने, मूगंफली, उबले चने, अंडे वालों के ठेले लगते हैं और इन ठेलों के सामने सड़क के दूसरे किनारे पर, लोहे की सलाखों में बंद एक दुकान है, दुकान में रंग-बिरंगी शीशीयां सजी हैं. लाइट का डेकोरम है,अर्धनग्न तस्वीरों के पोस्टर लगे है, दुकान के ऊपर आधा लाल आधा हरा एक साइन बोर्ड लगा है- “विदेशी शराब की सरकारी दुकान”। इस बोर्ड को आजादी के बाद से हर बरस, नया ठेका मिलते ही, नया ठेकेदार नये रंग-पेंट में लिखवाकर, तरीके से लगवा देता है। आम नागरिकों को विदेशी शराब की सरकारी दूकान से निखालिस मेड इन इंडिया, देसी माल भारी टैक्स वगैरह के साथ सरे आम देर रात तक पूरी तरह नगद लेनदेन से बेचा जाता है. यह दुकान सरकारी राजस्व कोष की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। प्रतिवर्ष जन कल्याण के बजट के लिये जो मदद सरकार जुटाती है, उसका बड़ा भाग शहर-शहर फैली ऐसी ही दुकानों से एकत्रित होता है। सरकार में एक अदद आबकारी विभाग इन विदेशी शराब की देसी दुकानों के लिये चलाया जा रहा लोकप्रिय विभाग है। विभाग के मंत्री जी हैं, जिला अधिकारी हैं, सचिव है और इंस्पेक्टर वगैरह भी है। शराब के ठेकेदार है। शराब के अभिजात्य माननीय उपभोक्ता आदि हैं। गांधी जी का बुत गवाह है, देर रात तक, सप्ताह में सातों दिन, दुकान में रौनक बनी रहती है। सारा व्यवसाय नगद गांधी जी की फोटू वाले नोटो से ही होता है। शासन को अन्य कार्यक्रम ऋण बांटकर, सब्सडी देकर चलाने पड़ते है। सर्वहारा वर्ग के मूंगफली, अंडे और चने के ठेले भी इस दुकान के सहारे ही चलते है। “मंदिर-मस्जिद बैर कराते, मेल कराती मधुशाला” हरिवंशराय बच्चन जी की मधुशाला के प्याले का मधुरस यही है। इस मधुरस पर क्या टैक्स होगा, यह राजनैतिक पार्टियों का चंदा तय करने का प्रमुख सूत्र है। गांधी जी ने जाने क्यों इतने लाभदायक व्यवसाय को कभी समझा नहीं, और शराबबंदी, जैसी हरकतें करते रहे। आज उनके अनुयायियी कितनी विद्वता से हर गांव, हर चौराहे पर, विदेशी शराब का देसी धंधा कर रहे हैं। गांधी जी का बुत अनजान राहगीर को पता बताने के काम भी आता है , गुगल मैप और हर हाथ में एंड्राइड फोन आ जाने से यह प्रवृत्ति कुछ कम हुई है, पर अब गांधी जी गूगल का डूडल बन रहे हैं।
राष्ट्रपिता को कोई कभी भी न भूले इसलिये हर लेन देन की हरी नीली, गुलाबी मुद्रा पर उनके चित्र छपवा दिये गये हैं. ये और बात है कि प्रायः ये हरी नीली गुलाबी मुद्रा बड़े लोगो के पास पहुंचते पहुंचते जाने कैसे बिना रंग बदले काली हो जाती है. हर भला बुरा काम रुपयो के बगैर संभव नही, तो रुपयो में प्रिंटेड बापू देश के विकास में इस जेब से उस जेब का निरंतर अनथक सफर कर रहे हैं। वो तो भला हो मोदी जी का जिसने बापू की इस भागम भाग को किंचित विश्राम दिया, रातो रात बापू के करोड़ो को बंडलो के बंडल बंद कर दिया. फिर डिजिटल ट्रांस्फर की ऐसी जुगत निकाली कि अब कौन बनेगा करोड़पति में हर रात अमिताभ बच्चन पल भर में करोड़ो डिजिटली ट्रांस्फर करते दिखते हैं, बिना गांधी जी को दौड़ाये गांधी जी इस खाते से उस खाते में दौड़ रहे हैं।
बापू की रंगीन फोटू हर मंत्री और बड़े अधिकारी की कुर्सी के पीछे दीवार पर लटकी हुई है, जाने क्यो मुझे यह बेबस फोटो ऐसी लगती है जैसे सलीब पर लटके ईसा मसीह हों, और वे कह रहे हो, हे राम ! इन्हें माफ करना ये नही जानते कि ये क्या कर रहे हैं।
बापू की समाधि केवल एक है। वह भी दिल्ली में यमुना तीरे. यह राजनेताओ के अनशन करने, शपथ लेने, रूठने मनाने, विदेशी मेहमानो को घुमाने और जलती अखण्ड ज्योति के दर्शनों के काम आती है। लाल किले की प्राचीर से भाषण देने जाने से पहले हर महान नेता अपनी आत्मा की रिचार्जिंग के लिये पूरे काफिले के साथ यहां आता है। अंजुरी भर गुलाब के फूलो की पंखुड़ियां चढ़ाता है और बदले में बापू उसे बड़ी घोषणा करने की ताकत दे देते हैं।
बापू से जुड़े सारे स्थल नये भारत के नये पर्यटन स्थल बना दिये गये हैं। सेवाग्राम, वर्धा,वगैरह स्थलो पर देसी विदेशी मेहमानो की सरकारी असरकारी मेहमान नवाजी होती है। इस पर्यटन का प्रभाव यह होता है कि कभी कोई बुलेट ट्रेन दे जाता है, तो कभी परमाणु ईधन की कोई डील हो पाये ऐसा माहौल बन जाता है।
इन दिनो बापू को हाईजैक करने के जोरदार अभियान हो रहे हैं. कांग्रेस बेबस रह गई और मोदी जी ने गांधी जी से उनकी सफाई की जिम्मेदारी ही छीन ली. वह भी उनके जन्म दिन पर, उन्होने सारे देशवासियो पर यह जिम्मेदारी ट्रांस्फर कर दी है। अब देश में मार्डन साफ सफाई दिखने लगी है। हरे नीले पीले कचरे के डिब्बे जगह जगह रखे दिखते हैं। वैक्यूम क्लीनर से हवाई अड्डो और रेल्वे स्टेशनो पर वर्दी पहने कर्मचारी साफ सफाई करते दिखते हैं। थियेटर, माल वगैरह में पेशाब घर में तीखी बद्बू की जगह डी-ओडरेंट की खुश्बू आती है। कचरा खरीदा जा रहा है और उससे महंगी बिजली बनाई जा रही है। ये और बात है कि गांधी जी के बुत पर जमी धूल नियमित रूप से हटाने और उन पर बैठे कबूतरो को उड़ाने के टेंडर अब तक किसी नगर पालिका ने नही किये हैं।
बापू का एक और शाश्वत उपयोग है, जिस पर केवल बुद्धिजीवीयो का एकाधिकार है। गांधी भाषण माला, पुरस्कार व सम्मान, गांधी जयंती, पुण्यतिथी या अन्य देश प्रेम के मौको पर गांधी पर, उनके सिद्धांतो पर किताब छापी जा सकती है, जो बिके न बिके पढ़ी जाये या नही पर उसे सरकारी खरीद कर पुस्तकालयो में भेजा जाना सुनिश्चित होता है। गांधी जी, बच्चो के निबंध लिखने के काम भी आते हैं और जो बच्चा उनके सत्य के प्रयोगो व अहिंसा के सिद्धांतो के साथ ही तीन बंदरो की कहानी सही सही समझ समझा लेता है उसे भरपूर नम्बर देने में मास्साब को कोई कठिनाई नही होती। फिल्म जगत भी जब तब गांधी जी को बाक्स आफिस पर इनकैश कर लेता है, कभी “मुन्ना भाई” बनाकर तो कभी “गांधी” बनाकर। जब जब देश के विकास के शिलान्यास, उद्घाटन होते हैं लाउडस्पीकर चिल्लाता है “साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल, दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना भाल।”
सच है ! गांधी से पहले, गांधी के बाद, पर हमेशा गांधी के साथ देश प्रगति पथ पर अग्रसर है। गुजरे हुये बापू भी देश के विकास में पूरे सवा लाख के हैं !
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
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