जय प्रकाश पाण्डेय
(यह व्यंग्य बेशक श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी ने इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर लिखा था किन्तु, अब भी सामयिक लगता है।)
सबसे बड़ा रुपैया
पहले कोई नहीं जानता था कि कि दुष्ट डालर का रुपए से कोई संबंध भी होता था। रुपया मस्त रहता था, कभी टेंशन में नहीं रहता था। टेंशन में रहा होता तो रुपये को कब की डायबिटीज और बी पी हो गई होती। पहले तो रुपया उछल कूद कर के खुद भी खुश रहता और सबको सुखी रखता था, तभी तो हर गली मुहल्ले के रेडियो में एक ही गाना बजता रहता था…….
“पांच रुपैया बारह आना,
मारेगा भैया ना ना न”
तब रुपैया की बारह आना से खूब पटती थी दोनों सुखी थे एकन्नी में पेट भर चाय और दुअन्नी में पेट भर पकौड़ा से काम चल जाता था कोई भूख से नहीं मरता था। घर का मुखिया परिवार के बारह लोगों को हंसी खुशी से पाल लेता था। अब तो गजबेगजब हो गया…
“बेटा भला न भैया
सबसे बड़ा रुपैया”
वाली बात सबके अंदर समा गई है बाप – महतारी को बेटे बर्फ के बांट से तौलकर अलग अलग बांट लेते हैं ये सब तभी से हुआ जबसे ये दुष्ट डालर रुपये पर बुरी नजर रखने लगा…… ये साला डालर कभी भी बेचारे रुपये का कान पकड़ कर झकझोर देता है। जैसई देखा कि आजादी के सत्तर साल का भाषण लाल किले से होने वाला है उसी दिन टंगड़ी मार के रुपये को सत्तर के चक्कर में गिरा दिया। लाल किले के भाषण की कीमत गिरा दी, डालर को पहले से पता चल गया होगा कि भाषण में लटके झटके ज्यादा होंगे, हर बात पर सत्तर साल का जिक्र आयेगा हर बार यही कहा जाएगा कि सत्तर साल में कुछ नहीं हुआ, डालर दूरदर्शी है भाषण के पहले उसी दिन रुपए को उठा के पटक दिया। जो लोग डालर पहन के भाषण सुनने आये थे उनकी अंडरवियर गीली हो गई एलास्टिक जकड़ गई। गंगू हमेशा से पट्टे वाली चड्डी पहनता है, इकहत्तर रुपये वाली डालर कभी नहीं पहनता। पट्टे वाली चड्डी में ये सुविधा रहती है कि अपनी सुविधानुसार नाड़े को कस लो, डालर में नाड़ा डालने की जगह ही नहीं बनाई गई।
बाजार में हर चीज पर एम आर पी लिख कर कीमत तय कर दी जाती है रुपये में कभी एम आर पी लिखा नहीं जाता।बड़े बाजार में रुपए को पतंग बना के उड़ाया जाता है और पतंग की डोर डालर के बाप के हाथ में होती है। डालर का बाप हाथ मटका मटका कर कभी पतंग नहीं उड़ाता और न अच्छे दिन की दुहाई देता। जो जबरदस्ती गले लगने लगता है उसकी जेब काट लेता है और समय आने पर उठा कर पटक देता है।
अगर कभी रुपये की कीमत की बात होती है तो सबसे पहले उसकी तुलना डालर से करते हैं और ये भी सच है कि जब देश आजाद हुआ था तब एक रुपया एक डालर के बराबर हुआ करता था। हमारे नेताओं की अपना घर भरने की प्रवृत्ति को जब डालर जान गया तो अट्टहास करके उछाल मारने लगा। डालर ये अच्छी तरह समझ गया कि भारत में नेताओं का संसद में सोने का शौक और भारतीय महिलाओं का सोने से प्रेम दिनों दिन बढ़ेगा और इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए वो दादागिरी पर उतारू हो गया। इसी के चलते जब रुपये को पटक कर इकहत्तर पर पहुंचा दिया तो भारत की तरफ व्यंग्य बाण चला कर वो कह रहा है कि मजबूत मुद्रा किसी भी देश की आर्थिक स्थिति की मजबूती का प्रमाण होती है तो जब रुपया लगातार गिर रहा है तो सरकार क्यों कह रही है कि हम आर्थिक रुप से मजबूत हो रहे हैं क्योंकि हमारी देशभक्ति और विकास में आस्था है।
गंगू बहुत परेशान है माथे पर हाथ टिकाए सोच रहा है अजीब बात है सरकार कह रही है कि सत्तर साल में कुछ नहीं हुआ और पुरानी सरकार की लकवाग्रस्त नीतियों से रुपये की कीमत गिरी है अब जब चार साल से विकास ही विकास हो रहा है और अच्छे दिन का डंका बज रहा है तो रुपया और तेजी से क्यों गिर रहा है और इकहत्तर पार करने की तैयारी में है। रुपए की कीमत के दिनों दिन गिरने से गंगू चिंतित है और चिंता की बात ये भी है कि अर्थव्यवस्था के बारे में सरकार द्वारा जो दावे किए जा रहे हैं उसमें जनता को झटका मारने की प्रवृत्ति क्यों झलक रही है। हालांकि रुपये की गिरावट से गंगू भी परेशान हैं घरवाली ताने मारती है और ये गाना गाती है…….
“ता थैया ता थैया,
आमदनी अठन्नी,
खर्चा रुपैया”
© जय प्रकाश पाण्डेय