हिन्दी साहित्य- व्यंग्य – ☆ नेताजी लौट कर घर आए ☆ – श्री रमेश सैनी

श्री रमेश सैनी

☆ नेताजी लौट कर घर आए ☆

(प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध लेखक/व्यंग्यकार श्री रमेश सैनी जी का  व्यंग्य – “नेताजी लौट कर घर आए”।)

नेताजी वापिस घर आ गए, उनको वापिस आना ही था। यह पहले से तय था, नहीं वे तय कर के गये थे कि वे वापिस आएंगे। नेताजी जाते ही हैं वापिस आने के लिए। उनसे अपना खूंटा छोड़कर जाया नहीं जाता, वे जाते हैं, लाभ के लिए और वापिस आते हैं लाभ के लिए। लाभ उनके जीवन का मर्म है और यह मर्म उन्होंने जल्दी समझ लिया था। अतः नेताजी इस कार्य में कभी गलती नहीं करते हैं। वे जाते हैं, अर्थात् भागते हैं, बाहरी दीन-दुनिया की खबर लेते हैं, अनेक प्रकार के व्यंजनों का रसास्वाद लेते हैं, थोड़ा बहुत ठोकर खाते हैं, भागते-भागते भी अनेक ठौर बदल लेते हैं। वे कभी ध्यानस्थ भी हो जाते हैं। जब वे ध्यान की स्थिति में होते हैं, तब नेताजी के चेला-चपाटी कहते हैं – जीवन के मर्म का संधान करने हेतु भजन कर रहे हैं और भजन के लिए ध्यान जरूरी है। नेताजी ध्यानस्थ मुद्रा में जरूर होते हैं मगर अपनी आँखें खुली रखते हैं। सी.सी.टी.वी. कैमरे की तरह दुनिया पर नज़्ार रखते हैं। जब भी मौसम उनके अनुकूल दिखा वे पल्टी मारकर वापिस आ जाते हैं। पल्टी मारना उनका विषेष गुण है। यह गुण उन्होंने सांप से सीखा है। वे सीखने से परहेज नहीं करते हैं। जो चीज उनके काम की होती है उससे वे सीख लेते हैं। गिरगिटान से रंग बदलना। पहले उनके सिर पर गाढ़े चटक लाल रंग की टोपी होती थी, पर अब भगवा मिक्स पहनते हैं। उन्हें किसी रंग से परहेज नहीं। परहेज प्रतिबंध लगाता है। वे सब चीजें खुली रखते हैं। इससे रंग बदलने में आसानी होती है। वे सिर्फ ऊपरी चोला बदल लेते हैं, पर अंदर सत्ता प्रेम बरकार रहता है और वे प्रेम में कभी धोखा नहीं देते। इससे उनकी सत्ता प्रेम की विश्वसनीयता बनी रहती है। इस प्रेम की खातिर वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। प्रेम बरकार रहे अतः उसमें कोई दखलंदाजी नहीं होती। मच्छर की तरह वे काटते हैं जिससे आदमी मरता नहीं है, वरन् बुखार जन्य हो जाता है। उनका कहना है – भागदौड़ करते रहो। शांत बैठ गये तो लोग भूल जाएंगे। इस कारण वे भागते रहते हैं।

वे अभी ताज़ातरीन मात्र चैबीस घंटे के लिए भागे थे। इसके पहले वे अनेक बार भागे और लम्बे समय के लिए भागे। इस बार सदल भागे थे। उनका कहना है – सबका साथ सबका विकास। उन्हें अपनी चिन्ता के साथ सबकी चिन्ता सताती है और जो बूढ़े हो गए उनसे कहते हैं – तुम धीरे-धीरे चलो मैं वापिस यही मिलूंगा। उन्हें पता है, उन्हें वापिस आना है। इस बार जल्दी वे नये अवतार में वापिस आ गए। उनका रंग बदला हुआ था। उनके रंग बदलने से कुछ लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगे, मगर वे इसकी परवाह नहीं करते हैं। वे संस्कृति और साहित्य में भी विष्वास करते हैं, अतः वे भागने को कला कहते हैं और इस कला में वे पारंगत हो गए हैं। लोग अब उन्हें कलाबाज कहने लगे हैं। अतः वे समय-समय पर कलाबाजी दिखाते रहते हैं।

कुछ दिन पहले प्रेमी वापिसी संघ, बिहारी वापिसी संघ, आधुनिक विदेष सेवा वापिसी संघ आदि ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर दी कि उन्होंने वापिसी की मूल आस्था का अपमान किया है। इससे उन सबके मन में ठेस पहुँची है इसलिए उन्होंने उन पर मानहानि का दावा ठोक दिया है। प्रेमी वापिसी संघ का कहना है – हमारा मूल मंत्र है, ‘प्रेम करो भागो’ और पलटो। प्रेम में कभी-कभी जरूरत के हिसाब से पलटना पड़ता है। एक प्रेमिका ने बताया कि प्रेमी मालदार था। उसने नया मोबाइल दिया, उसे रिचार्ज कराता था। होटल, तफरीह आदि कराता था। नये-नये कपड़े आदि का खर्च वहन करता था। प्रेमिका ने बदले में उसे सिर्फ आष्वासन पर स्थिर रखा। कहीं किसी के साथ भाग न जाए और भागे तो सिर्फ मेरे साथ। उसके नेक विचार देख मैंने सोचा कि इसके साथ भागा जा सकता है। हम भाग गए मुम्बई। भागने के लिए इससे आइडियल शहर इंडिया में कोई नहीं। यह शहर भागने वालों के लिए स्वर्ग है। हम लोग स्वर्ग ही भागे थे – वापिस न आने के लिए। भला स्वर्ग से कौन वापिस आता है। दूसरे दिन प्रेमी बाथरूम में था और उसके मोबाइल पर फोन आया। मैंने उठा लिया – अगला पूछने लगा – अबे इतने दिन से तू कहाँ है? तू हमसे बचकर नहीं भाग सकता। हम तुझे पाताल से स्वर्ग तक खोज लेंगे। तू गायब हो गया या किसी को ले भागा। बता मेरा पैसा कब वापिस करेगा? वरना करूं पुलिस में रिपोर्ट। तेरा भण्डाफोड़ कर दूंगा। इस तरह दिन भर तीन चार लोगों के फोन आए। अब उसका भाण्डा फूट चुका था। मैंने सोचा यह तो फोकट, कड़का आदमी है। इसके साथ क्या जीवन बिताना। मेरी कुण्डली जाग्रत हुई और मैं वापिस आ गयी। थोड़ा हल्ला-गुल्ला हुआ और फिर शांत हो गया। हम वापिस आने का रास्ता खुला रखते हैं, अतः वापिस आने का अधिकार हमारा है, पर यह नेताजी को यह शोभ नहीं देता है।

हमारे मुहल्ले का सुन्दर, गौरवर्ण, बलिष्ठ लड़का मुम्बई भाग गया। पता लगा वह हीरो बनने गया है। उसकी माँ चिन्ता से बेहाल हो रही है। तब लड़के के बाप ने कहा – तू चिंता मत कर। थोड़े दिन बाद वापिस आ जाएगा। कुछ दिन किसी ढाबे में बरतन मांजेगा, आखिर वह हमारा बेटा है। उसकी रगों में हमारा ही खून दौड़ रहा है। हम भागे थे, हीरो बनने, फिर वापिस आ गये। यह हमारी खानदानी परम्परा है। तू बिल्कुल चिन्ता मत कर, भागते हैं वापिसी के लिए ही। वापिस आने पर हम उसे खंूटे से बांध देंगे। जैसा हमारे बाप ने किया था। खूंटा आदमी को स्थिर रखता है। सीमा बता देता है कि तू इसके आगे नहीं जा सकता है। खूंटा से बंधा आदमी भाग नहीं सकता, बस उछलकूद कर सकता है। बंदर के समान कुलाटी मार सकता है। कुलाटी मारना भी एक कला है। यह कला भागकर वापिस आने पर आती है।

तकलीफ तब होती है, जब बेटा या बेटी भाग जाती है, वापिस न आने के लिए। माँ दरवाजे पर बाट जोहती है, कि अब आ रहा/रही है। उसकी आँखें पथरा जाती हैं, पर बेटा या बेटी वापिस नहीं आते। वह अपनी पत्नी के साथ चला जाता है दूर, बहुत दूर विदेष। वापिस न आने के लिए और माँ को विष्वास दिला जाता है, वह वापिस आएगा, जरूर आएगा, पर वहाँ से वापिस आना सरल नहीं है। जैसे बचपन में मैदान में भाग जाता था और अंधेरा होने पर वापिस आ जाता था। भागो, खूब भागो, पर समय से वापिस आ जाओ। वापिस आना, साथ निभाना, या अटूट वादा है और वापिस आओ अपना वादा निभाओ।

 

© रमेश सैनी , जबलपुर 

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