हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ वे दिन हवा हुए☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
☆ वे दिन हवा हुए☆
गॉव के चौपाल में चुनाव की चर्चा जोरों पर है। बैल जोड़ी का एक जमाना था, चुनाव बैलजोड़ी के लिए होता था, तब सबके घरों में कम से कम एक बैलजोड़ी तो होती ही थी। बैलजोड़ी का एक बैल इमानदार चुस्त दुरुस्त तो था, पर दूसरा बैल बात – बात में चिंतन-मनन करने लगता था फिलासफर जैसा व्यवहार करने लगता, प्रेम – वेम के चक्कर में पड़ गया था और निकम्मा हो गया था। ऐसे में कैसे चलती बैलजोड़ी और कैसे चलती बैलगाड़ी……… निकम्मा इसलिए हो गया था कि एक गाय पर उसका दिल दरिया की तरह बह गया था, गाय से चुपके-चुपके मिलता-जुलता था।
ऐसे तो निकम्मा हर कोई होता है और चुनाव के समय निकम्मेपन पर खूब बहसें होती हैं। कुछ जन्मजात निकम्मे होते हैं और कई लोग “निकम्मा ” शब्द का राजनैतिक इस्तेमाल करने लगते हैं, जब राजनीति में इसका प्रयोग बढ़ जाता है तो शब्द नये अर्थ ग्रहण कर लेता है।जैसे अच्छे दिन बाजार में अच्छे अच्छे नामों से खूब चला, ज्यादा चलने से नये-नये शब्दों का अविष्कार हुआ। इन दिनों चौकीदार और चोर शब्दों के दिन फिरे हैं सबको समझ आ रहा है कि सब के सब चौकीदार भी हैं और चोर भी…….. यहां बैल के निकम्मे हो जाने की बात इसलिए चली कि बैलजोड़ी टूट गई, तब पहला बैल अपनी
वफादारी और इमानदारी पर धार धार रोया और रेडियो में गाना बजा……
“दो हंसों का जोड़ा
बिछड़ गयो रे,
गजब भयो रामा जुलम
भयो रे,”
गाने की आवाज पर दूसरा बैल आकर पहले बैल से लिपटकर रोया और बोला –
“इश्क ने हमको निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी बैल थे
काम के,”
खैर… जो हुआ तो हुआ, गाय बैल के इश्क में बैल जोड़ी टूट गई। कुछ दिन बाद गाय का बछड़ा हुआ, बछड़ा भी निकम्मा निकला, वह अपने निकम्मेपन को दूसरों पर देखने लगा। कुछ लोग अपने आप निकम्मे हो जाते हैं कुछ बन जाते हैं कुछ बना दिये जाते हैं कई के स्वाभाव में निकम्मापन आ जाता है।
“अजगर करे न चाकरी…. दास मलूका कह गए सबके दाता राम”
ऐसे लोगों पर लोग दया करने लगते हैं दया से कई काम बन जाते हैं चुनाव में वोट भी पड़ जाते हैं, और गरीबी हटाओ के नारे भी लगने लगते हैं। बछड़ा निकम्मा जरुर था पर निकम्मेपन को अपनी उपलब्धि मानता था एक दिन अचानक बछड़ा गायब हो गया। गाय अपना दुखड़ा प्रगट करने संतों के पास दौड़ती रही बड़े संत ने हाथ उठाकर आशीर्वाद दे दिया, हाथ सपने में आया और “हाथ “बन गया। दीपक टिमटिमाता फिर बुझने का नाटक करता, अंधेरे में आधी रात के बाद महत्वपूर्ण निर्णय होते हाहाकार मचने लगा, उन्हीं दिनों कन्याएं फिल्मी स्टार कमल हसन की फिल्में खूब देखने लगीं थीं कन्याओं और महिलाओं का कमल के के प्रति पसंद बढ़ गई थी, अचानक राजनीति में कमल की मांग बहुत बढ़ गई थी।
एक नेता ने चुनाव की सभा में कमल की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में लड़ा गया था, क्रांति हुई थी क्रांति के आयोजक अपना संदेश ‘रोटी और कमल’ का संदेश घुमाकर सुना देते थे, हिन्दू धर्म के अलावा बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म के लोगों ने उस समय कमल को महत्व दिया था। क्या करोगे कमल सुंदर होता है कोमल होता है। सुंदरी के मुखमण्डल का विकास खिले कमल जैसा होता है।
कुछ लोग कीचड़ में घुसकर कमल तोड़ लाए और चुनाव आयोग की सुंदरी को भेंट कर दिया,
“फूल लाये हैं कमल के
पसारें आप आंचल,”
कमल काम का हो गया। धीरे-धीरे फैलने लगा कमल के अच्छे दिन आ गए मांग बढ़ गई शहरों के पोखर तालाबों में जहां कमल खिलते थे वहां कमल प्रेमियों ने कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए थे।
नकली कमल खिलाने के ठेके दिये गये नकली रासायनिक कमल की सुगंध डालकर नकली कमल बाजार में छा गया बैनरों में, झण्डों में, होर्डिंग में। ऐसे में चुनाव के समय लोग कीचड़ में खिले कमल को याद करने लगे। चुनाव और उपचुनाव में सबके हाथ कमल में दबने लगे फिर कमल वाले अहंकार में चूर होकर मूर्तियां तोड़ने लगे, झटकेबाजी करने लगे, और दोनों हाथों से धन लुटा कर विदेश भगाने लगे। अटल कृष्ण ने आम लगाए थे फल नीरव मोदी जैसे लोगों ने खाए। पता नहीं क्या हो गया ये नयी पीढ़ी को चुनाव में भरोसा नहीं रहा फेसबुक से डाटा चुराकर अब चुनाव जीते जा रहे हैं, आजकल के भाई-बहन कमल शब्द से अचानक चिढ़ने लगे हैं हर बात पर अगले चुनाव में देख लेने की बात करते हैं।
© जय प्रकाश पाण्डेय