हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – ☆ हेलो व्हाट्सएप ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव “विनम्र”
☆ हेलो व्हाट्सएप ☆
(प्रस्तुत है श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी का सटीक एवं सार्थक व्यंग्य। हमारी और हमारी वरिष्ठ पीढ़ी ने पत्र ,टेलीग्राम और टेलीफ़ोन से कैसे दिन गुजारे होंगे इसका एहसास, कष्ट और मजा नई पीढ़ी को क्या मालूम। उन्होने तो ऑर्कुट या इससे मिले जुले डिजिटल सोशल मीडिया मंच से लेकर व्हाट्सएप तक की ही यात्रा तय की है। अभी भी हमारी वरिष्ठ पीढ़ी इन डिजिटल सोशल मीडिया मंचों से सहज नहीं है। जिन्होने स्वयं को अपडेट नहीं किया है इसका कष्ट वे ही जानते हैं।)
स्टेटस सिंबल के चक्कर में लांच के साथ ही लेटेस्ट माडेल महंगी कीमत पर स्मार्ट फोन खरीदा गया है. पत्नी से मोबाईल खरीदी का बजट स्वीकृत करवाने में उनका तर्क बहुत वजनदार था, “महिलाओ के पास तो ज्वेलरी, कभी जभी ही पहने जाने वाली साड़ियां, इंटरनेशनल ब्रांड के बैग और परफ्यूम, लाइटवेट ब्रांडेड फुटवियर और तो और किसी और को न दिखने वाले इनर वियर हर कुछ कीमती होता है” जबकि बेचारे पुरुष के पास स्टेटस सिंबल के नाम पर एक मोबाईल ही तो होता है. श्रीमती जी ने तर्क दिया कि कहने को तो आप १० पैसे मिनट टाक वैल्यू का प्लान रिचार्ज करते हैं पर आपकी बातें १० रु मिनट से कम की नही पड़ती. उन्होने चौंकते हुये पूछा आखिर कैसे ? प्लान तो दस पैसे मिनिट वाला ही है. पत्नी ने जबाब दिया, आप किसी से भी मेरी तरह लम्बी बातें नहीं करते इसलिये आपकी मोबाईल का टोटल यूज टाइम बहुत कम है, मुश्किल से साल भर में या तो मोबाईल गुमा देते हैं या मोबाईल टूट जाता है या फिर माडल बदल लेते हैं, तो मोबाईल की मंहगी कीमत में जितनी देर बातें हुई उससे तुलना करें तो आप की प्रति मिनिट बातचीत दस रु मिनिट से ज्यादा ही पड़ेगी. पत्नी के जबाब में दम था . फिर भी पत्नी ने थोड़ा तरस खाते और थोड़ा प्यार जताते हुये, मंहगा लेटेस्ट एप्पल लांच के साथ ही दिलवा ही दिया था. भले ही वे वन एप्पल ए डे न खाते हो पर अपना न्यू लेटेस्ट माडेल का एप्पल मोबाईल सदैव हाथो में गर्व से थामे रहते हैं, सारे दिन दो पांच मिनिट के अंतर से उस पर दृष्टि बनाये रखते हैं, प्ले स्टोर से डाउनलोडेड अनेकानेक एप्स पर निरंतर सर्फिंग करते रहते हैं.
युग व्हाट्सअप का है. वे सोकर उठते ही वे पाखाना जाने से पहले व्हाट्सअप मैसेजेज चैक करते हैं. हाजमा ठीक रहा और हाजत तेज हुई तो मोबाईल सहित स्वच्छ कमोट पर भीतरी तन से फिजकली आउटगोईंग और मस्तिष्क में व्हाट्सएप से वर्चुएल वैचारिक इनकमिंग साथ साथ जारी रहती है. आखिर इतने मंहगे मोबाईल और घोटाला मुक्त सस्ती दरो पर सुलभ फोर जी स्पीड का क्या फायदा यदि समय पर दूर बैठे आत्मीय जनो को सचलितचित्र गुड मार्निग ही नही की . ये और बात है कि छै बाई छै के सुकोमल बैड पर बाजू में ही पसरी सात जनमो की साथिन की ओर मुस्कान भरी निगाहें तक डालने का ध्यान इस व्हाट्सअप अपडेट के चक्कर में नही जाता. वैसे भी अब कौन सी नई नवेली शादी है. एप्पल का मोबाईल जरूर बीबी से बहुत नया है.
व्हाट्सएप उन्हें मोबाईल मय बनाये रखने में सर्वाधिक मदद करता है. हर थोड़े अंतराल पर व्हाट्स अप नोटिफिकेशन उनके वैश्विक संबंधो की पुष्टि करता है. कहीं गलती से कुछ घंटे वे मोबाईल न देख पायें तो विभिन्न ग्रुप्स से प्राप्त पेंडिग मैसेजेज की गिनती हजारो में पहुंच जाती है. वो तो भला हो मैसेजेज का कि वे वर्चुएल होते हैं, वरना होली, दीवाली, ईद, न्यूईयर जैसे मौको पर तो व्हाट्सएप मैसेजेज से मोबाईल ऐसा भर जाता है कि यदि ये मैसेज वर्चुएल न होते तो शायद उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता. दरअसल ये मैसेज अनेकता में एकता के राष्ट्रीय चरित्र के परिचायक होते हैं. गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस का अंतर भले ही पता न हो पर इन राष्ट्रीय त्यौहारो पर भी बड़े प्रेम से हर मोबाईल धारक अपनी डी पी बदलने से लेकर हर कांटेक्ट को मैसेज करना नही भूलता. स्कूल के, कालेज के, साहित्य के, कार्यालय के, शहर के स्वजातीय बंधुओ के ग्रुप्स ने कनेक्टिविटी ऐसी बढ़ा दी है कि पास के लोग दूर और दूर के लोग पास हो गये हैं. ससुराल के ग्रुप, परिवार के ग्रुप और बच्चों के ग्रुप की नोटीफिकेशन टोन ही उन्होने बिल्कुल अलग रख ली है, जिससे वे सदैव सबके निकट बने रहें.
यदि व्हाट्सअप को मालूम हो जावे कि उनका कार्यालय ही व्हाट्सअप पर चल रहा है तो निश्चित ही इसके एवज में व्हाट्सअप कुछ रायल्टी क्लेम कर सकता है. आजकल आफिस में मीटिंग की सूचना से लेकर फोटो सहित कम्पलाइंस रिपोर्ट व्हाट्सअप पर ही ली दी जा रही हैं. इधर मैसेज में दो नीली टिक हुई नहीं कि दूसरे छोर से अपेक्षा की जाती है कि साइट से फोटो सहित रिपोर्ट आ जावे. ग्रुप में परिपत्र डालकर यह मान लिया जाता है कि सभी को सूचना मिल चुकी है. वे जमाने यादें बनकर रह गये हैं, जब डाकिया लिफाफा लाता था, रिसीप्ट क्लर्क शाम को सारी डाक खोलकर तरीके से सील ठप्पे लगाकर डाक पैड में बांधकर करीने से टेबिल के कोने में रखा करता था, फिर हम इत्मिनान से एक एक पत्र पढ़ते और उसके मार्जिन में सबार्डिनेट्स को इंस्ट्रक्शन्स लिखा करते थे.
पहले लोग सामूहिक ठहाके लगाते थे, एक जोक सुनाता था सब हंसते थे, अब जमाना व्हाट्सअप युगीन है, मैसेज पढ़कर मैं मंद मंद मुस्करा रहा था, मित्र ने देखा तो कहा मुझे भी फारवर्ड कर दे मैं भी हंसू. तो व्हाट्सअप युग के साक्षी बने रहिये जब तक कोई और इसे धक्का मारने न आ जावे, मौलिकता छोड़िये, फारवर्ड करिये, डाउनलोड करिये अपलोड करिये बस दिल पर लोड मत लीजिये.
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव “विनम्र”
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