हिन्दी साहित्य- व्यंग्य – ☆ एक्जिट पोल में खोल ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(प्रस्तुत है  श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  का एक सामयिक व्यंग्य।  एक्ज़िट पोल और इस व्यंग्य की समय सीमा आज तक ही है ।  इसलिए सामयिक हुआ न।  तो फिर पढ़िये और शेयर करिए। )

 

☆ एक्जिट पोल में खोल ☆

 

बेचारा गंगू बकरियां और भेड़ चराकर जंगल से लौट रहा था और ये चुनावी सर्वे का बहाना करके गनपत नाहक में गंगू को परेशान कर रहा है, जब गंगू ने वोट नहीं डाला तो इतने सारे सवाल करके उसे क्यों डराया जा रहा है? गंगू की ऊंगली पकड़ कर बार बार देखी जा रही है कि स्याही क्यों नहीं लगी? परेशान होकर गंगू कह देता है लिख लो जिसको तुम चाहो। गंगू को नहीं मालुम कि कौन खड़ा हुआ और कौन बैठ गया। गंगू से मिलकर सर्वे वाला भी खुश हुआ कि पहली बोहनी बढ़िया हुई है।

सर्वे वाला भैया आगे बढ़ा।  एक पार्टी के सज्जन मिले, गनपत भैया ने उनसे भी पूछ लिया। काए भाई किसको जिता रहे हो? सबने एक स्वर में कहा – वोई आ रहा है क्योंकि कोई आने लायक नहीं है। इस बार ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, एक साथ हजारों की संख्या में एक ही जगह सर्वे का मसाला मिल गया।

तब तक फुल्की वाला वहीं से निकला, बोला -कौन जीत रहा है हम क्यों बताएं, हमने जिताने का ठेका लिया है क्या?  पिछली बार तुम जीएसटी का मतलब पूछे थे तब भी हमने यही कहा था कि आपको क्या मतलब   …..! गोलगप्पे खाना हो तो बताओ… नहीं तो हम ये चले।

अब गनपत को प्यास लगी तो एक घर में पानी मांगने पहुँचे तो मालकिन बोली –  फ्रिज वाला पानी, कि ओपन मटके वाला …….

खैर, उनसे पूछा तो ऊंगली दिखा के बोलीं – वोट डालने गए हते तो एक हट्टे-कट्टे आदमी ने ऊंगली पकड़ लई, हमें शर्म लगी तो ऊंगली छुड़ान लगे तो पूरी ऊंगली में स्याही रगड़ दई। ऐसी स्याही कि छूटबे को नाम नहीं ले रही है। सर्वे वाले गनपत ने झट पूछो – ये तो बताओ कि कौन जीत रहो है। हमने कही जो स्याही मिटा दे, वोईई जीत जैहै।

पानी पीकर आगे बढ़े तो पुलिस वाला खड़ा मिल गया, पूछा – “कयूं भाई, कौन जीत रहा है ……?”

वो भाई बोला – “किसको जिता दें आप ही बोल दो।” गनपत समझदार है कुछ नोट सिपाही की जेब में डाल कर जैसा चाहिए था बुलवा लिया। पुलिस वाले से बात करके गनपत दिक्कत में पड़ गया। पुलिस वाले ने डंडा पटक दिया बोला – “हेलमेट भी नहीं लगाए हो, गाड़ी के कागजात दिखाओ और चालान कटवाओ।”

कुछ लोग और मिल गए हाथ में ताजे फूल लिए थे, गनपत ने उनसे पूछा “ये ताजे फूल कहां से मिल गए ……उनमें से एक रंगदारी से बोला – “चुरा के लाए है बोलो क्या कर लोगे …….. सुनिए तो थोड़ा चुनाव के बारे में बता दीजिये ……?”

बोले – “तू कौन होता बे…. पूछने वाला। सबको मालूम है हमारा कमाल, बसूलने का हमारा हक है, सब की ऐसी तैसी कर के रहेगें।”

नेता जी नाराज नहीं होईये हम लोग आम आदमी से चुनाव की बात कर एक्जिट पोल बना रहे हैं।“

“सुन बे आम आदमी का नाम नहीं लेना।”

आगे बढ़े तो कालेज वाले लड़के  मिल गए, जब पूछा कि – “चुनाव …..मतलब ?”

कई लड़के हंसते हुए बोले – “फेंकू के चान्स ज्यादा हैं बाकि इस बार लफड़ा है।“

थक गए तो घर पहुंचे, पत्नी पानी लेकर आयी, तो पूछा – “काए  किसको जिता रही हो …..?” पत्नी बड़बड़ाती हुई बोली – “तुम तो पगलाई गए हो  …! पैसा वैसा कुछ कमाते नहीं और राजनीति की बात करते रहते हो। कोई जीते कोई हारे  तुम्हें का मतलब …………..”

फोन आ गया, “हां हलो ,हलो ……कौन बोल रहे हैं ? अरे भाई बताओ न कौन बोल रहे हैं “

आवाज आयी – “साले तुमको चुनाव का सर्वे करने भेजा था  और तुम घर में पत्नी के साथ ऐश कर रहे हो ………..”

“नहीं साब, प्यास लगी थी पानी पीने आया था, बहुत लोगों से बात हो गई है,”

“निकलो जल्दी … बहस लड़ा रहे हो, बहाना कर रहे हो ……….”

काम वाली बाई आ गई, उससे पूछा तो उसने पत्नी से शिकायत कर दी कि “साहब छेड़छाड़ कर रहे हैं …….”

घर से निकले तो पान की दुकान वाले गज्जू से चुनाव के रिजल्ट पर चर्चा छेड़ दी,  गज्जू गाली देने में तेज था.  मां-बहन से लेकर भोपाली गालियों की बौछार करने लगा, आजू बाजू वाले बोले   “बढ़ लेओ भाई, काहे दिमाग खराब कर रहे हो ………..”

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

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