हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – ☆ यूज़ एंड थ्रो ☆ – श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(श्रीमती छाया सक्सेना जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत है. आज प्रस्तुत है उनका व्यंग्य “यूज एंड थ्रो”. हम भविष्य में भी उनकी चुनिंदा रचनाएँ अपने पाठकों से साझा करते रहेंगे.)
☆ यूज़ एन्ड थ्रो ☆
आजकल हर चीजों की दो केटेगरी है- यूज़ या अनयूज़ । कीमती लाल के तो मापदंड ही निराले हैं वो अपने अनुसार किसी की भी उपयोगिता को निर्धारित कर देते हैं । यदि कोई आगे बढ़ता हुआ दिखता है तो झट से उसे घसीट कर बाहर कर देना और फिर उसकी जगह किसी की भी ताजपोशी कर देना उनका प्रिय शगल है, ये बात अलग है कि सामने वाले को रोने व अपनी बात कहने की खुली छूट होती है, यदि वो वापस आना चाहे तो उसका भी स्वागत धूम धाम से किया जाता है बस शर्त यही कि भविष्य में वो सच्चे सेवक का धर्म निभायेगा ।
इधर कई दिनों से निरंतर सेवकों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है और शीर्ष पर आज्ञाकारी लोगों को दो दिनों की चाँदनी का ताज दिखा कर धम से जमीन पर पटका जाता है। कोई भाग्यशाली हुआ तो आसमान से गिर कर खजूर में अटक जाता है और इतराते हुए सेल्फी लेकर फेसबुक में अपलोड कर देता है ।
चने के झाड़ पर चढ़े हुए लोग भी अपनी सेल्फी लेकर सबको टैग करते हुए लाइक की उम्मीद में पलके बिछाए बैठे हुए ऐसे प्रतीत होते हैं मानो यदि आपने पोस्ट पर ध्यान नहीं दिया तो आपको व्हाट्सएप में संदेश भेजकर कहेंगे जागो मोहन प्यारे मुझे लाइक करो या न करो पोस्ट अवश्य लाइक करो ।
सही भी है यदि फेसबुक पर ही दोस्ती नहीं निभ सकी तो ऐसे फेसबुक फ्रेंड्स का क्या फायदा , भेजो इनको कीमती लाल के पास जो एक झटके में पटका लगा कर सबक सिखा देने की क्षमता रखते हैं ।
आजकल तो उत्सवों में भी थर्माकोल , प्लास्टिक आदि की प्लेट, कटोरी, चम्मच , काँटे व गिलास उपयोग में आते हैं । जिन्हें इस्तेमाल किया और फेका । पानी भी बोतलों में मिलता है । जितनी भी जरूरत की चीजें हैं वो सब केवल एक ही बार उपयोग में आने हेतु बनायीं जातीं हैं । सिरिंज का एक प्रयोग तो जायज है सुरक्षा की दृष्टि से पर और वस्तुएँ कैसे और कब तक बर्दाश्त हों ।
वस्तुएँ रिसायकल हों ये जरूर आज के समय की माँग है । बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट की दिशा में तो आजकल बहुत कार्य हो रहा है । नगर निगम द्वारा भी जगह- जगह सूखा कचरा व गीला कचरा एकत्र करने हेतु अलग- अलग डिब्बे रखे गए हैं । दुकानों में भी हरे रिसायकल निशान वाले कागज के बैग मिल रहे हैं । पर स्थिति जस की तस बनी हुयी है आखिर हमें आदत हो चुकी है इस्तेमाल के बाद फेंकने की ।
ये आदतें कोई आज की देन नहीं है पुरातन काल से यही सब चल रहा जब तक किसी से कार्य हो उसे पुरस्कार से नवाजो जैसे ही वो बेकार हुआ फेक दो । यही सब आज प्रायवेट कंपनी कर रहीं हैं असम्भव टारगेट देकर नवयुवकों का मनोबल तोड़ना, बात- बात पर धमकी देना और जब वो अपने को कमजोर मान लें तो अपने अनुसार काम लेना क्योंकि मन तो उनका टूट चुका जिससे वो भी किसी योग्य हैं इस बात को भूल कर स्वामिभक्ति का राग अलापते हैं ।
आखिर कब तक ये रीति चलेगी , कभी तो इस पर विचार होना चाहिए या फिर एक अवधि तय होनी चाहिए किसी भी चीज के उपयोग करने की जैसे खाद्य पदार्थों व दवाइयों की पैकिंग में लिखा रहता है एक्सपाइरी डेट । रिश्तों में तो ये चलन इस कदर बढ़ गया है कि पुत्र का विवाह होते ही माता पिता की उपस्थिति अनुपयोगी हो जाती है जिसकी वैधता समाप्ति की ओर अग्रसर होकर दम तोड़ती हुयी दिखायी देती है ।
रोजमर्रा की चीजें भी स्टेटस सिंबल बन कर रोज बदली जा रहीं हैं गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रेंड बदलना तो मामूली बात है । किन- किन चीजों में बदलाव देखना होगा ये अभी तक विवादित है पर यूज़ एन्ड थ्रो तो जीवन का अमिट हिस्सा बन शान से इतरा रहा है ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘ प्रभु ‘
जबलपुर (म.प्र.)
मो.- 7024285788