हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – ☆ 150वीं गांधी जयंती विशेष-1 ☆ राजघाट का मूल्य ☆ श्री संजीव निगम

ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक-1

श्री संजीव निगम

(सुप्रसिद्ध एवं चर्चित रचनाकार श्री संजीव निगम जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है. आप अनेक सामाजिक संस्थाओं से सम्बद्ध हैं एवं सुदूरवर्ती क्षेत्रों में सामाजिक सेवाएं प्रदान करते हैं. महात्मा गांधी पर केंद्रित लेखों से चर्चित. आप  हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के निदेशक हैं.  हिंदी के चर्चित रचनाकार. कविता, कहानी,व्यंग्य लेख , नाटक आदि विधाओं में सक्रिय रूप  से  लेखन कर रहे हैं. हाल में  व्यंग्य लेखन के लिए  महाराष्ट्र राज्य  हिंदी साहित्य अकादमी का आचार्य रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार प्राप्त। कुछ टीवी धारावाहिकों का लेखन भी किया है. इसके अतिरिक्त 18  कॉर्पोरेटफिल्मों का लेखन भी। गीतों का एक एल्बम प्रेम रस नाम से जारी हुआ है.आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से 16 नाटकों का प्रसारण. एक फीचर फिल्म का लेखन भी.)

 

☆ व्यंग्य –राजघाट का मूल्य

 

बापू की समाधि पर एक मिनट मौन की मुद्रा में खड़े बाबू राम बिल्डर – सह- पार्टी पदाधिकारी ने अपनी झुकी गर्दन से टेढ़ी निगाहें चारों तरफ फेरीं और उनके कलेजे पर बोफोर्स दग गयी। करोड़ों रुपये की ज़मीन फ़ोकट में हथियाये क्या आराम से लेटे हैं बापूजी। यूँ जब तक जिए शरीर पर लंगोटी लपेटे देश की दरिद्रता का विज्ञापन बने रहे और मरने के बाद बड़े से कीमती पत्थर के नीचे लेट कर इतनी बेशकीमती ज़मीन पर पैर पसार लिए।

दिल्ली के बीचों बीच पड़ी इस भूमि का मूल्य आँकते आँकते बाबू राम जी के मुँह में मिनरल वाटर भर आया। ‘अगर ये ज़मीन हत्थे आ जाये तो क्या कहने? एक विशाल कमर्शियल सेंटर खड़ा हो जाए, स्विस बैंक में नए खाते खुल जाएँ और अरबों रुपये के करोड़ों डॉलर बन जाएँ।’

‘ पर यह सब इतना आसान कहाँ? ‘ बाबू राम जी का मौन समाप्त हो चुका था। उन्होंने मुँह ऊपर उठा कर खद्दर के कुर्ते से अपनी आँखों में उतर आयीं निराशा की बूंदों को पोंछा। उनकी इस मुद्रा पर कैमरे किलके और समाचार पत्रों में छपने के लिए एक बेहतरीन फोटो तैयार हो गया, शीर्षक ” बापू की स्मृति को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि”.

आज़ादी के तुरंत बाद बाबू राम जी के स्वर्गीय पिताश्री ने नेहरू जी की अगुवाई में देश के पुनर्निर्माण का बीड़ा उठाया था एक छोटी सी गैरकानूनी रिहायशी कॉलोनी बनाकर। उस  बस्ती के निर्माण के साथ ही उनकी जो विकास यात्रा आरम्भ हुई वह संकरी गली के एक कमरे से चलकर किराए के बंगले के चौराहे से घूमती हुई एक बड़ी किलेनुमा कोठी में जाकर समाप्त हुई।  अपनी भवन निर्माण संस्था की एक शाखा का स्वर्ग में उद्घाटन करने से पूर्व उन्होंने बाबू राम जी समेत पूरे परिवार को इस कर्मभूमि में पूरी ताकत के साथ झोंक दिया था।

उनके स्वर्गीय होने पर बाबू राम जी ने मोर्चा सम्भाला था।

बाबू राम जी ने अपने सेनापतित्व में अपने उद्योग को राजनीति  से बड़ी बारीकी से जोड़ते  हुए अपने विकास प्रवाह को अखंड सौभाग्य का गौरव प्रदान किया था।  उद्योग व राजनीति के इस गठबंधन ने बड़े बड़े विरोधी बिल्डरों के सिर घोटालों की तरह से फोड़ दिए और बाबू राम जी उन्हें रौंदते हुए आगे बढ़ते रहे।  इसी क्रम में वे हर बार सत्ता में आई पार्टी के प्रमुख व्यक्ति बने रहे और साथ साथ अन्य पार्टियों को भी समान भाव से उपकृत करते रहे।  इसलिए उनके द्वारा प्रस्तुत भवन निर्माण के प्रस्ताव हमेशा सर्व सम्मति से पास होते रहे।

इन्हीं सफलताओं की पृष्ठभूमि में बाबू राम जी की पीड़ा अधिक हो गयी। सिर पर रखी गाँधी टोपी उतार कर उससे पसीना पोंछा और टोपी वापस सिर पर रखने की बजाय जेब में डाल ली। जब गाँधी जी मरने के बाद भी इतना दुःख पहुँचा रहे  हैं तो उनके नाम वाली टोपी का बोझ ढोने का क्या मतलब है ?

एक बार उनके मन में आया भी कि  यह अनुपम योजना पास खड़े शहरी आवास मंत्री के कान में फूंक दें पर फिर यह सोच कर चुप रह गए कि आज़ादी के पचास साल और पाँच चुनाव लड़ने के बाद भी गाँधी के नाम की धुन बजाते रहने वाला यह राजनैतिक बैंडवाला अभी ज़ोर ज़ोर से ‘ पूज्य बापूजी, पूज्य बापूजी ‘ का ढोल पीटने लगेगा और सबके सामने अपने आपको चड्ढी बनियान की गहराई तक गाँधीवादी साबित करने लगेगा।  इस तरह यहाँ तो सबके सामने बेइज़्ज़त कर देगा, बाद में भले ही रात को घर आकर पैर छू लेगा तथा इतने अच्छे प्रस्ताव के लिए कुछ न कर पाने के गम में काजू के साथ दारु निगलेगा।

समाधि पर भजन चल रहे थे।  देश  के जागरूक नागरिक दरियों पर बैठे ऊँघ रहे थे पर बाबू राम जी थे कि अफ़सोस भरी आँखें फाड़े चारों तरफ बिछी इस शस्य श्यामला भूमि को निहार रहे थे।  काश यह ज़मीन उनके हाथ आ जाए तो कितना भव्य ‘ गाँधी कमर्शियल  सेंटर’ तैयार हो जाए जिसके बेसमेंट में गाँधी जी की समाधि रखी जाए।  इसी बहाने कमर्शियल सेंटर तक विदेशी पर्यटक भी  खूब आएँगे।

निकट भविष्य में तो उन्हें अपनी यह योजना सफल होती नज़र नहीं आ रही है। इसलिए राजघाट से घर वापिस लौटते समय उन्होंने सोचा कि यह योजना गोपनीय रूप से अपने बच्चों -पोतों के लिए विरासत में छोड़ जाएँगे। यदि कभी रूस से साम्यवाद की तरह से इस देश से गाँधीवाद सिमटा तो उनकी यह परिवार कल्याण योजना अवश्य सफल होगी और उनके बच्चे पोते उनकी स्मृति में सोने के पिंड दान करेंगे।

 

© संजीव निगम

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