हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – जीडीपी आगे नागरिक पीछे – श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन 

जीडीपी आगे नागरिक पीछे
(प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का व्यंग्य  जीडीपी आगे नागरिक पीछे आपको जीडीपी की सांख्यिकीय  बाजीगरी के खेल और साधारण नागरिक की व्यथा पर विचार करने के लिए अवश्य मजबूर कर देगा।)
अश्विन एक नंबर से फेल हो गया. आधे नंबर का सवाल गलत हुआ और आधा नंबर माइनस मार्किंग में चला गया. नौकरी में भर्ती की प्रतियोगितात्मक परीक्षा. सीधा, सिंपल, स्ट्रेट जीके का सवाल. तीसरी तिमाही में भारत की जीडीपी दर कितनी थी ?सुबह के अखबारों में 6.8  प्रतिशत थी. परीक्षा देकर बाहर निकला तब तक दोपहर के अख़बारों में 7.2 प्रतिशत बताई गई थी. कॉपी चेक हुई उस दिन 9.7 प्रतिशत का आंकड़ा सामने आया. वही समयकाल, वही सांख्यिकी संस्थान, वही अर्थशास्त्री.मीडिया भी वही, श्रेय लेने वाला जननायक भी वही मगर आंकड़ा बदल गया. जीडीपी की गुगली से अश्विन अकेला आउट नहीं है – आप भी तो हैं. देश चीन से आगे निकल गया और आप हैं कि पान की गुमटी से आगे नहीं जा पा रहे. आंकड़े आप पढ़ नहीं पाते, पढ़ लें तो जान नहीं पाते, जान लें तो समझ नहीं पाते कि जैसे जैसे जीडीपी बढ़ती जाती है वैसे वैसे आप पीछे क्यों होते जाते हैं. आंकड़ों में ग्रोथ तो है जॉब नहीं है. उत्पादन है, सामान है खरीदने के पैसे नहीं हैं. स्कूल है, कॉलेज है, दवा है,डॉक्टर है, पाँच सितारा अस्पताल है, बस आपकी पहुँच में नहीं हैं. इतना पढ़कर ही खुश हो लेते हैं कि हम पीछे रह गए तो क्या देश तो आगे बढ़ा. अंगुली काली कराने और मशीन का खटका दबाने के बीच के तीस सेकण्ड में जीडीपी याद नहीं रहती,जाति याद रहती है.
जाति के ख्याल ने अश्विन को इष्टदेव का स्मरण कराया. साष्टांग प्रणाम करके उसने पूछा – हे संकटमोचन, मेरा उत्तर कहाँ गलत हुआ. आप ही बताइये तीसरी तिमाही में वृद्धि  की वास्तविक दर कितनी थी ? पवनपुत्र बोले– चीर के अपना सीना दिखाना आसान है सही सही जीडीपी बता पाना मुश्किल है. हमारे युग में न जीडीपी हुआ करे थी ना चुनाव. होते तो एक-दो चुनाव तो इसी मुद्दे पर निपट जाते कि चौदह साल के भरत भाई सा. के कार्यकाल में जीडीपी ज्यादा बढ़ी कि बड़े भैया के अयोध्या वापस आने के बाद विकास तेज़ हुआ. तुलसीदासजी ने दस हज़ार से ज्यादा दोहे, सोरठे लिखे मानस में मगर एक चौपाई में भी जीडीपी का उल्लेख नहीं करा. वरना आर्यावर्त के जननायकों में होड़ लग जाती कि हमने त्रेतायुग से ज्यादा विकास करा. बहरहाल, सांख्यिकी के बाज़ीगरों से पता करके अगलीबार बता पाउँगा.
अश्विन ने कहा – कोई बात नहीं प्रभु, इतना तो समझ ही गया हूँ कि आंकड़े महज़ आंकड़े नहीं होते. वे जादुई मिट्टी होते हैं. हार्वर्ड ग्रेजुएटेड दरबारी वित्तीय जादूगर उनसे वैसी आकृति बनाकर दिखा सकते हैं जैसी जननायक को पसंद आती है. जितनी देर में आप समंदर लाँघ पाते हैं उससे कम देर में वे पिछले दस पंद्रह साल की जीडीपी ग्रोथ रेट बदल लेते हैं. वे वन-टू-का-फोर, फोर-टू-का-सिक्स-इलेवन करने में निष्णात हैं. मौका-ए-जरूरत उसी कच्ची गीली मिट्टी से कीचड़ बनाकर जननायक को हेंडओवर कर देते हैं कि लो महाराज चुनाव आ गया है – फैंको इसे सामनेवाले पे.
तीन परिक्रमा देकर निकल गया अश्विन, उसके साथ उसकी पूरी पीढ़ी है,जॉब पोर्टल्स हैं, उन पर सबके सीवी हैं, बस साक्षात्कार के बुलावे बाकी हैं. आयेंगे, घबराईये मत,जननायक कह रहा है जीडीपी बढ़ रही है.
© श्री शांतिलाल जैन 

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