हिन्दी साहित्य – व्यंग्य लघुकथा – ☆ 150वीं गांधी जयंती विशेष -2☆ महात्मा गाँधी की जय ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल
ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक-2
श्री घनश्याम अग्रवाल
(श्री घनश्याम अग्रवाल जी का ी-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है. श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है उनकी एक पुरानी लघुकथा. उनके ही शब्दों में – आज महात्मा गाँधी का जन्मदिन है। बिना लागलपेट, सियासत से दूर, केवल दिलों में समाते हुए पता ही नहीं चला वो कब राष्टपिता बन गये। मगर आज? पढिए एक व्यंग्य लघुकथा। पुरानी है, फिर भी आज ज्यादा सार्थक है.)
☆ व्यंग्य लघुकथा – महात्मा गांधी की जय ☆
‘जुरासिक पार्क इतनी अद्भुत फिल्म बनी कि उसका एक विशेष शो संसद में रखा गया। पहली बार पक्ष और विपक्ष ने बिना किसी शोरशराबे के पूरी फिल्म देखी। फिल्म समाप्त होने पर दोनों ने न केवल एक साथ तालियाँ बजाई, एक साथ चाय भी पी और फिर वे दोनों एक साथ सोचने भी लगे। सोचते-सोचते उन्हें खयाल आया कि जब करोड़ों साल पुराना डायनासोर फिर से पैदा हो सकता है तो सौ-दो सौ साल पुराने नेता क्यों नहीं पैदा हो सकते? हालांकि यह एक फिल्म है और इसमें कल्पना का सहारा लिया गया है, पर विज्ञान का सारा आधार भी तो कल्पना है। सारी पार्टियाँ अपने-अपने नेताओं को पुनः पैदा करना चाहती थी। काफी बहस के बाद महात्मा गांधी के नाम पर सहमति हुई।
महात्मा गांधी खुले बदन रहते थे सो मच्छरों के काटने की संभावना ज्यादा थी। समझौते के अनुसार पक्ष और विपक्ष दोनों गांधी का आधा-आधा बराबर उपयोग करेंगे। वैज्ञानिकों का एक दल पोरबंदर से लेकर वर्धा तक जाएगा और गांधी को काटे मच्छरों की तलाश करेगा। फिर उससे डायनासोर की तरह पुनः गांधी को पैदा करेंगे। गांधी आयेगा तो देश में रामराज्य आएगा ।
इस खुशी में दोनों ने दुबारा जुरासिक पार्क फिल्म देखी, पर इस बार दोनों के पसीने छूट गए।
दोनों सोचने लगे कि सच में गांधी पैदा हो गया, तो वह कहीं डायनासोर की तरह खतरनाक न हो जाए। गांधी का क्या भरोसा ? पैदा होने पर कहे-“सारी पार्टियाँ बंद करो। कुर्सी का मोह छोड़ो। सच बोलो। ईमानदार बनो। ” गुलाम देश के लिए गांधी ठीक है, पर आज़ाद देश में जिन्दा गांधी हमारे लिए वही तबाही लाएगा, जो जुरासिक पार्क के अंत में डायनासोर लाता है। रामराज्य के चक्कर में हम सब राजनैतिक लोग कुर्सीहरण होते ही रावण की मौत मारे जायेंगे। अतः फिर से गांधी पैदा नहीं होना चाहिए। दोनों ने हाथ मिलाकर तय किया कि समझोते के कागज फाड़े जाएँ, न केवल फाड़े जाएँ, बल्कि अभी की अभी जला दिए जाएँ ।
जब समझौते के कागज जलाए जा रहे थे तो एक दूरदर्शी पत्रकार ने ताना मारते हुए कहा-“तुम गांधी से कब तक बचोगे ? गांधी विदेशों में भी गए थे। वहाँ भी मच्छर तो होते ही हैं। कहीं विदेशों ने गांधी पैदा कर भारत भेज दिया तो….,तब तुम्हारा क्या होगा गांधीभक्तों ? कुर्सी प्रेमियों ? ”
एक पल को पक्ष और विपक्ष दोनों चौकें, एक पल सोचा, फिर उसे डाँटते हुए बोले- “गांधी फिर से पैदा हो गया, तो भी हमें डर नहीं। अरे, प्रकृति के नियम सबके लिए समान होते हैं। निपट लेंगे हम गांधी से। यह मत भूलो कि मच्छर सिर्फ गांधी को ही नहीं, गौडसे को भी तो काटे होंगे। ”
” बोलो महात्मा गांधी की जय ”
घनश्याम अग्रवाल ( हास्य-व्यंग्य कवि )
094228 60199