हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ ईकॉनोसेव मोड में खातून-ए-अव्वल ☆ – श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। आज  प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का सार्थक  एवं सटीक  व्यंग्य   “ईकॉनोसेव मोड में खातून-ए-अव्वल।  इस व्यंग्य को पढ़कर निःशब्द हूँ। मैं श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य पर टिप्पणी करने के जिम्मेवारी पाठकों पर ही छोड़ता हूँ। अतः आप स्वयं  पढ़ें, विचारें एवं विवेचना करें। हम भविष्य में श्री शांतिलाल  जैन जी से  ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाओं की अपेक्षा रखते हैं। ) 

 

☆☆ ईकॉनोसेव मोड में खातून-ए-अव्वल ☆☆

 

वाह इमरान भाई ! हमने अखबार में पढ़ा है कि हमारी नई भाभीजान बुशरा बीबी का अक्स आईने में उभरता नहीं है. कसम से भाईजान जिसकी बीवी अपने आप को आईने में निहार न सके उसका क्या तो कपड़ों पे खर्चा और क्या लाली-पौडर पे. ऐसे खाविंद का घर खर्च तो रूपये में चार आने सेई चल जाता होगा. उपर से ऐसी बीवी के पास घर के काम करने के लिये कित्ता तो समय बचता होगा!! हमें पक्का यकीन है जब आप भाभीजान के साथ अमेरिका के लिये निकले होंगे तो तैयार होने में दस मिनिट से ज्यादा तो क्या लगे होंगे. अपन के इधर तो पार्टी में बैरागढ़ जाना हो तो तिरेपन मिनिट तो येई डिसाईड करने में लग जाते हैं कि साड़ी पहननी कौनसी है ? वार्डरोब में हेंगर पर टंगी हर साड़ी अपने दूसरी बार पहने जाने की अंतहीन प्रतीक्षा में है और ख़वातीन तय नहीं कर पा रही, क्या पहनूँ ? वर्कवाली कि कॉटन, चँदेरी कि पोचमपल्ली, टसर सिल्क कि कोटा चेक, भारी वर्कवाली कि बार्डर पर सिम्पल डिझाईन भी चलेगी. अनिवार्य शर्त ये जनाब कि साड़ी रिपीट नहीं होना चाहिये. दस बीस साड़ियाँ कंधे पर लटका लटका के आईने में देखना पड़ता है भाईजान. परमाणु बम फोड़ने का डिसिजन लेना आसान है, बनिस्बत ‘साड़ी कौन सी पहनूँ?’  के.

साड़ी सिलेक्ट हो जाये तब भी बेचारे आईने को आराम कहाँ. वो ही तो है जो बताता चलता है कि चेहरे पर गुलाबी फ़ाउंडेशन थोड़ा ज्यादा हो गया है, आप प्राईमर से क्लीन करके पिंक में हल्का गोल्डन मिक्स करके फिर से लगाईये. चिक-बोन्स पर हल्का सा ब्लशर लगा लीजिये. लिपस्टिक बरगंडी कलर में फबेगी. आई-लाईनर करीने से यूज करें. इतना भी नहीं,  थिक हो गया है रामसे बंधु की फिल्मों की हिरोईन की तरह. थोड़ा नॉर्मल कीजिये. बेसिकली, ये गेस्ट की ज़िम्मेदारी है कि होस्ट के बच्चे डरें नहीं. एनिवे, चलिये आपने थोड़ा ठीक कर लिया मगर ये क्या साड़ी मेजेंटा और आई शैडो ग्रीन! कुछ जम नहीं रहा. बदलिये इसे. इस बीच खाविंद को जूते के फीते बांधे हुये बीस मिनिट हो गये हैं. कोई बात नहीं – वे तो इसके ‘यूज्ड टू’ हैं. आई शैडो बदलने का मन नहीं है इसलिए उन्होने साड़ी दूसरे कलर की निकाल ली है. फिर से पैंतालीस मिनिट लगेंगे, आठ मिनिट साड़ी लपेटने के, तेरह मिनिट पल्लू ठीक करके कॉलर बोन के पास सेफ़्टी पिन लगाने के, बीस मिनिट पटलियां जमाने के, चार मिनिट पटलियों पर साड़ी पिन लगाने के.

और खाविंद ! ‘दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है’. एफएम पर पंकज उधास को सुन रहा है कार में, स्टेयरिंग बैठा स्टार्ट करने की तैयारी में, तीन बार सामने के काँच पे कपड़ा लगा चुका. वो तो बॉस के घर पार्टी में जाना जरूरी है जनाब वरना ‘हम भी पागल हो जाएँगे’ वाली लाईन अब तक सच हो गई होती. आप नसीबवाले हो इमरान भाई, बुशरा भाभीजान से निकाह पढ़वाकर रोज़ रोज़ बाल नुचवाने से बच गये हो.

अब ख़वातीन चलने को ही है कि आईने ने फिर टोक दिया है – मेम साब, इयर रिंग्स और नेकलेस तो छूट ही गया. ओह माय गॉड ! ये भी ना इतनी हाय हाय मचा देते हैं कि मैं भूल ही जाती हूँ. (ज़ोर से) बोला ना – ‘आ रही हूँ अभी’. और नेकलेस भी क्या – समझ लीजिये कि नया नवलखा हार भी थोड़े दिन मेई जूना पड़ जाता है. इसी कारवांचौथ पे तुड़वाकर नया बनवाया है, जित्ते का गोल्ड है उससे ज्यादा तो मेकिंग चार्ज लग चुका. सोने से घड़ावन महंगी. बुशरा भाभीजान के साथ आसानी है – आईने में निहारना तो दूर झाँकने तक का भी टेंशन नहीं है. बस एक सफ़ेद बुर्का सर से पैर तक डाला और ‘रेडी टू गो’.

वैसे सच बताना भाईजान खातून-ए-अव्वल का भी मन तो करता होगा पंद्रह डिग्री से एक सौ पैंतीस डिग्री तक अलग अलग कोण से ट्विस्ट होकर आईने में अपने आप को निहारने का. जी करता होगा – दरवज्जा थोड़ा सा ठेल कर कैट वॉक करके देखा जाये. सरहद के इस पार तो हर घर में एक ड्रेसिंग टेबल है, उसमें एक आदमकद शीशा है, शीशे में मिनिमम सत्ताईस मिनिट निहारती एक बेटर हॉफ है, और उसे ताकते,  खीजते, खिसियाते, एक कप चाय के लिए ट्रायल सेशन खत्म होने का इंतेज़ार करते उनके खाविंद हैं. आईना थक जाता है भाईजान, खवातीनें थकतीं नहीं. परेशान हलकान आईने ख़वातीन को कभी मीना कुमारी कभी मधुबाला, कभी श्रीदेवी तो कभी कियारा आडवाणी होने का यकीन दिलाते-दिलाते हाँफ जाते हेंगे, कसम से. और भाईजान, जो ख़वातीनें कभी ललिता पँवार तक का मुकाबिला नहीं कर पाईं, आईना उनको प्रियंका चोपड़ा होने का यकीन दिला देता है. ये आईना ही है जो हर ख़वातीन को हर रोज़ एक लोकल मैट-गाला के लिये सज-संवर जाने का कांफिडेंस देता है.

इमरान भाई, आपके मुल्क में खातून-ए-अव्वल को लोग पीरनी मानते हैं, रूहानी ताकतवाली ऐसी महिला जो किसी का नसीब बदल सकती हैं. आपसे गुजारिश है भाईजान कि वे बस इतना कर दें कि अपन के इधर की खवातीनों के अक्स आईने में दिखना बंद हो जायेँ. सरहद के इस पार ईकॉनोसेव मोड में चलनेवाली बीवी की हसरत में लाईफ गुजर जाती है मगर कामियाबी मिलती नहीं, आपको मिली है तो हमारी मुबारकबाद कुबूल करें.

 

© श्री शांतिलाल जैन 

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