हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ प्राईम-टाईम के बिजनेस में पेलवान का परवेस ☆ – श्री शांतिलाल जैन
श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। आज प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का सार्थक एवं सटीक व्यंग्य मालवी भाषा की मिठास के साथ “प्राईम-टाईम के बिजनेस में पेलवान का परवेस”। मैं श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य पर टिप्पणी करने के जिम्मेवारी पाठकों पर ही छोड़ता हूँ। अतः आप स्वयं पढ़ें, विचारें एवं विवेचना करें। हम भविष्य में श्री शांतिलाल जैन जी से ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाओं की अपेक्षा रखते हैं। )
☆☆ प्राईम-टाईम के बिजनेस में पेलवान का परवेस ☆☆
मालगंज चौराहे पे धन्ना पेलवान से मुलाक़ात हुई. बोले – ‘अच्छा हुआ सांतिभिया यहीं पे मिल गिये आप. कार्ड देना था आपको. क्या है कि अपन ने पेली तारीख से अखाड़ा बंद कर दिया है. उसी जगह पे न्यूज़ चैनल डाल रिये हेंगे. उसकी ओपनिंग में आना है आपको.’
‘जरूर पेलवान, पन ये क्या नई सूझी है आपको? दंगल कराने में मज़ा नहीं आ रहा क्या?’
‘बात क्या है भिया कि आजकल मिट्टी के अखाड़े में लड़ना कोई पसंद नी करता है. सो दंगल अपन प्राईम-टाइम के पेलवानों में करा लेंगे. आपको तो मालम हे के बब्बू को अपन ने एमबीए करई है. तो वो बोला कि पापा मैं तो माडर्न ऐरेना डालूँगा. तो ठीक है अपन पुराना बंद कर देते हेंगे….बब्बूई कर रिया है सब, नी तो अपने को क्या समझे ये चैनल, एंकर, प्राईम-टाइम, पेनलिस्ट, एडिटर जने क्या क्या?’
‘डिसीजन सई है पेलवान.’
‘सांतिभिया, एयर-कंडीसन स्टूडिओ में कुश्ती कराने का एक अलग मजा है. एक मसला रोज़ फैंक के सेट के पीछे चप्पल उल्टी कर दो. झमाझम दंगल की फुल ग्यारंटी. इनका घोटाला बड़ा कि उनका स्कैम बड़ा. इनकी पाल्टी में बलात्कारी ज्यादा कि उनकी पाल्टी में. हिन्दू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान, ये ई चल रिया हेगा आजकल. लोग दंगल देखते हैं, सुनता कौन है? इत्ते पेलवान एक साथ दांव लगायेंगे तो सुनाई थोड़ी देगा कुछ. पेलवान भी एक बार में कम-से-कम बीस. स्क्रीन पे अखाड़ा दिखे तो पूरा भरा-भरा दिखे. बोलें तो लगे कि तोपें चलरी हैं. पेनल में औरतें भी रखेंगे. पेले तो वो जम के रोये, फिर किसी को सेट पेई तमाचा मार दे तब तो दंगल सक्सेज़, नी तो फेल है सांतिभिया, नी क्या?‘
‘सई है पेलवान.’
‘सांतिभिया, अपन ने जो चीफ एडिटर रखा है उससे मिलवऊंगा आपको. क्या गला है उसका!! ऐसा ज़ोर से चिल्लाता है कि कान के पर्दे फाड़ डालता है. आप बिस्वास नी मानोगे भिया, ट्रायलवाले दिन ही इत्ती ज़ोर से चिल्लाया कि इम्मिजेटली इस्लामाबाद से फोन आ गिया. बोले – वज़ीर-ए-आज़म जनाब इमरान खान साब डर के मारे थरथरा रिये हैं और के रिये हैं कि आप जो बोलोगे वो मान लेंगे बस चिल्लाओ थोड़ा धीमे. ऐसेई चीखने-चिल्लाने वाले दस जूनियर एडिटर और भी रखे हैं.’
‘बधाई का आपको हक बनता है पेलवान.’
‘बधई वांपे आके देना भिया. बने तो ओपनिंग से पेले एक चक्कर लगाओ स्टूडिओ का. कोई कमी हो तो बताओ. वैसे अपन ने वेवस्था पूरी रखी है, मौलाना की, संतों की, पादरी की, मिलेट्री की, सब तरह की ड्रेसें रखी है. बुर्के रखे हैं, कभी तलाक-वलाक पे कराना हो दंगल. बंकर के, टैंक के, मिसाईल के, सेटेलाईट के सेट बनवा रिये हैं. आपकी सोगन सांतिभिया, फुल पैसा लगा रिये हैं पास से. मौका-जरूरत चलाने के लिये घूँसे के ग्लव्स, पुराने जूते-चप्पल, तेल पिलाये लट्ठ भी रखे हेंगे. बब्बू बोल रिया था कि पापा कांप्टीशन भोत है, चीखने-चिल्लाने, तमाचा मारने भर से आगे काम चलेगा नी. बहस में एक-दो का घायल होना जरूरी है. सो अपन ने टिंचर, सोफ्रामाईसिन, मल्लम-पट्टी का इंतजाम भी रखा है. सांतिभिया आना जरूर, भाभी के साथ.’
‘जरूर पेलवान, बब्बू को बेस्ट-ऑफ-लक बोलना.’ – मैंने विदा ली.
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