हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – कचरा बड़े काम की चीज – श्री जय प्रकाश पाण्डेय
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
कचरा बड़े काम की चीज
एक समय गंगा तीरे व्यंग्य – कुम्भ की एक मढ़ैया के पास कचरे का ढेर लग गया। मढ़ैयाधारी संत पुराण पढ़ रहे थे और सूत जी सुन रहे थे, अचानक कचरे में बम की खबर से सब भागने लगे और चारों तरफ हवा में अफवाह फैल गई….” कचरे में बम बम…. । खबर सुनकर कुछ नागा बाबा गा – गा कर नाचने लगे…………
” सिर्फ़ तुम्हारे हैं हम,
सह लेंगे सारे गम,
चाहे कचरे का बम, ”
श्री सूत जी बाहर धूनी जमाकर बैठ गए। कचरे की लकड़ियों को धो-पौंछकर धूनी जलने लगी। कचरे में बम बम करते अघोरी बाबा लोग कचरे में बैठकर चिलम का मजा लेने लगे, कुछ अघोरी उसी कचरे को जलाकर मांस भूनने लगे जब मांस मदिरा पेट में चली गई तो धूनी की राख तन में मली गई शरीर के बाल कचरे में बम बम करते दिखे तो राम रहीम और आशा बापू याद आ गये।
सब मस्ती से बैठ गए तो सूत जी बोले – एक समय ऊंघते – अनमने सतपुड़ा के जंगल के किनारे बसे गांव का गंगू बेरोजगारी, गरीबी से परेशान भूख एवं प्यास से बेचैन होकर पास के शहर की तरफ भटकने लगा। कचरे में भूख शांत करने की चीजें ढ़ूडने लगा, खाने का तो कुछ नहीं मिला पर अमीर और सुंदरियों द्वारा फेंके परफ्यूम के एल्युमीनियम के खोके और अन्य ऐसे समान मिले जिससे गंगू के अंदर न्यूटन जैसी सोच सवार हो गई उसके अंदर जुनून पैदा हो गया, सब जगह के कचरों के ढेर से उसने एल्युमिनियम के टुकड़े बटोरना चालू किया फिर उस कचरे से सुंदर करैहा (कढ़ाई) बनाना चालू कर दिया। चारों तरफ उसकी करैहा (कढ़ाई) की मांग होने लगी। खूब बिक्री बढ गई।मुंबई जैसे महानगरों में पांच सितारा होटलों में रेस्टोरेंट में कचरे से बनी करैहा सजावट के काम आने लगी। जब गंगू खाने कमाने लगा तो सेल्स टैक्स वाले तंग करने लगे, कहने लगे – कच्चा माल यदि कचरे से उठाया तो कचरा तो सरकार का है इसलिए कचरे की चोरी का केस बन गया। प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी बोले – भट्टी जलाने से प्रदूषण फैलता है आसपास के सतपुड़ा के जंगल अनमने हो रहे हैं, गंगू बोला – साब उस तरफ की बड़ी फैक्ट्री की चिमनी से उगलते धुंए से ऐसा हो शायद।प्रदूषण अधिकारी बोला – मंत्री जी की फैक्ट्री से तो प्रदूषण कभी नहीं होता।। अनेक विभाग के अधिकारी बाबू रोज रोज, तरह तरह से गंगू को तंग करने लगे तो गंगू ने परेशान होकर फांसी लगा ली इस तरह गंगू की बेरोजगारी गरीबी दूर हो गई। कचरे में उसका तन जल गया और हवा उस राख को उड़ा कर मंत्री के बेटे की फैक्ट्री तरफ ले गई।
सूत जी बोले – इस प्रकार कोई गरीब बेरोजगार यदि सब विभागों को प्रसाद चढ़ाए बिना अपनी गरीबी बेरोजगारी दूर करता पाया जायेगा तो उसकी दुर्गति गंगू जैसी होना निश्चित है।गंगू के भाई और बहुत से बेरोजगारों ने अब एक नया काम चालू किया है बेरोजगार तालाबों में में कचरा फेंक कर कीचड़ पैदा करते हैं फिर कीचड़ में उच्चकोटि के कमल पैदा कर नेताओं को बेचे जाते हैं सरकार बेरोजगारी दूर करने का इसे अच्छा उपाय बता रही है। सूत जी को बोलते बोलते प्यास लग गई अतः…….
इति कचरे में बम बम कथा प्रथम अध्याय समाप्त।
द्वितीय अध्याय – –
श्री सूत जी ने कहा – कि … हे श्रेष्ठ अहंकारी, लोभी और मौकापरस्त लोगो.. एक शहर में एक कवि रहता था उसे अपने आप में कवि होने का बहुत घमंड था हालांकि सब उसे कचरा कवि कहते थे क्योंकि वह कचरा कविताएँ लिखता था। सुबह सुबह मुंडेर पर चाय पीते हुए कचरा बीनने आने वाली मधुमती पर बेचारा कवि मोहित हो गया और नित्य कचरा बीनती मधुमती और कचरे के ढेर पर उसने सैकड़ा भर कचरा कविताएँ लिख डालीं, जब मधुमती झुकती तो कविराज भी खड़े होकर झुकते फिर बैठते फिर खड़े होते…… पड़ोसी के पूछने पर कि आप सुबह-सुबह बालकनी में बार बार झुकते – बैठते खड़े क्यों होते हैं ? तो कविराज का जबाब होता कि जैसे सुबह – सुबह आप आंख बंद करके योग करते हो वैसे ही हम बालकनी में आंख खोलकर एक्सरसाइज करते हैं। कविराज ने कचरे और मधुमती की कविताओं का कविता संग्रह छपवाया, जुगाड़ लगाकर विमोचन में तालियां ठुकवायीं और पुरुस्कार का जुगाड़ भी कर लिया पर कचरे बीनने वाली मधुमती अभी भी कचरा बीन रही है, फटे ब्लाऊस और कचरे से उठाई साड़ी अभी भी पहन रही हैं और उस पर लिखी कविताएँ खूब धन यश बटोर रहीं हैं, कचरे के कारण कविराज बम – बम कर रहे हैं। सूत जी के लस्सी पीने का समय हो गया था अतः……
इति कचरे में बम बम कथा द्वितीयो अध्याय समाप्त भयो
तृतीय अध्याय –
सूत जी बोले – हे विरोधी पार्टी वालो स्वच्छता अभियान की फोटो और लफड़ेबाजी देखकर परेशान न हो, टीवी वाले पैसे लेकर जिन लोगों को झाड़ू पकडे़ दिखा रहे हैं उन सबके दिमाग में कचरा भरा हुआ है, भले सफेद झक पाजामा कुर्ता पहनकर कचरा साफ करने का नाटक कर रहे हों पर कचरा फैलाने में इन्हीं का अहम रोल होता है। झाडू पकड़ के कचरे तरफ देखने भर से कई दंदी – फंदियों ने करोड़ों अरबों की कमाई कर डाली। हर मोहल्ले से डोर टू डोर कचरा उठाने का बहाना बनाने वाली कंपनियां कई करोड़ का वारा-न्यारा कर चुकीं हैं। बड़ी बड़ी तोंद निकाले सेठ कचरे से बिजली बनाने के बड़े बड़े संयंत्र लगाकर सरकार को खूब उल्लू बना रहे हैं। लोगों को उल्लू बनाने आनंदम् विभाग के ये हाल है कि लोग घर के अनुपयोगी कपड़े कचरा समझकर नगर परिषदों के पिंजरे में डाल रहे हैं दो चार दिन बाद नगर परिषद् वाले रात को सारे कपड़े ट्रक पोंछने वालों को बेचकर जेब गर्म कर रहे हैं।
बड़े लोगों के लिए कचरा बड़े काम की चीज है ऐश-अय्याशी करके नवजातों को कचरे में फेंकने से कचरे घर पटे पड़े हैं। नेता लोग नदियों में कचरा फिकवाते हैं फिर फोटो खिंचवाने सफाई अभियान चलाते हैं।
नोटबंदी के समय 1000 – 500 के कचरा नोटों को काट-काट कर कचरा बनाया गया था कचरे में गांधी जी की कहीं कटी नाक पड़ी थी कहीं कटा चश्मा, तो कहीं कटा मस्तक पडा़ था, फिर इस कचरे को ईंट बनाने वाले को कचरे के भाव से बेचा गया था। सूत जी बताते बताते रोने लगे भूख – प्यास से व्याकुल हो गए थे इसलिए………
इति कचरे में बम बम कथा तृतीयो अध्याय समाप्त।
अध्याय चार –
सूत जी के कहने पर कचरे वाले बम बम बाबा ने बताया कि अस्थि – मज्जा, कफ वात पित्त के इस तन में ईर्ष्या, द्रोह क्रोध मोह का कचरा भरा पड़ा है। मूर्खता के अहंकार का कचरा इतना खतरनाक होता है कि मूर्खता भरा इंसान खुद को पूरे ब्रम्हांड का सर्वज्ञानी मान लेता है और हर बात में अपनी उल्टी टांग घुसेड़ता है जो साश्वत सत्य होता है उसमें भी अपनी टांग घुसेड़कर बल, पद धन और यश प्रतिष्ठा के अहंकार के कचरे से ढंकने का प्रयास करता है बड़ा पद मिल जाने पर कचरा फैलाना और कचरे साफ करने का दिखावा करने में अपनी शान मानता है। बम बम बाबा ने बताया कि मन को वश में नहीं करने से मन में कचरे का भण्डार लगता जाता है तरह तरह का कचरा खुद ही खुद बढ़ता जाता है ये कचरा कभी आंखों से कभी कानों से कभी मुंह से घुसता है, आजकल सोशल मीडिया के कचरे की भरमार हो गई है यदि समझदारी से काम नहीं लिया तो सोशल मीडिया का कचरा तन मन सबको बर्बाद कर देगा फिर हर जगह कचरे में बम ही बम का कचरा मिलेगा। बम के डर से बम बम बाबा को उल्टी हो गई इसलिए…………
इति कचरे में बम बम कथा बंद……… ।
© जय प्रकाश पाण्डेय