श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( आज प्रस्तुत है श्रीमती छाया सक्सेना जी का एक विचारणीय व्यंग्यात्मक किन्तु सत्य के धरातल पर रचित विचारणीय आलेख “सच्चा फैसला”. हम भविष्य में भी उनकी चुनिंदा रचनाएँ अपने पाठकों से साझा करते रहेंगे.)
☆ सच्चा फैसला☆
जब भी सम्मान पत्र बँटते हैं, उथल -पुथल, गुट बाजी, किसी भी संस्था का दो खेमों में बँट जाना स्वाभाविक होता है । कई घोषणाएँ सबको विचलित करने हेतु ही की जाती हैं जिससे जो जाना चाहे चला जाए क्योंकि ये दुनिया तो कर्मशील व्यक्तियों से भरी है ऐसा कहते हुए संस्था के एक प्रतिनिधि उदास होते हुए माथे पर हाथ रखकर बैठ गए।
इस समूह में कुछ विशिष्ट जनों पर ही टिप्पणी दी जाती है, वही लोग आगे- आगे बढ़कर सहयोग करते दिखते हैं या नाटक करते हैं पता नहीं ।
क्या मेरा यह अवलोकन ग़लत है …? मुस्कुराते हुए एक सामान्य सदस्य ने पूछा ।
वर्षो से संस्था के शुभचिन्तक रहे विशिष्ट सदस्य ने गंभीर मुद्रा अपनाते हुए, आँखों का चश्मा ठीक करते हुए कहा बहुत ही अच्छा प्रश्न है ।
सामान्य से विशिष्ट बनने हेतु सभी कार्यों में तन मन धन से सहभागी बनें, सबकी सराहना करें, उन्हें सकारात्मक वचनों से प्रोत्साहित करें, ऐसा करते ही सभी उत्तर मिल जाएंगे ।
सामान्य सदस्य ने कहा मेरा कोई प्रश्न ही नहीं, आप जानते हैं, मैं तो ….
अपना काम और जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाता हूँ । आगे जो समीक्षा कर रहा है कामों की वो जाने।
एक अन्य विशिष्ट सदस्य ने कहा आप भी कहाँ की बात ले बैठे ये तो सब खेल है कभी भाग्य, कभी कर्म का, बधाई पुरस्कृत होने के लिये आपका भी तो नाम है ।
आप हमेशा ही सार्थक कार्य करते हैं, आपके कार्यों का सदैव मैं प्रशंसक हूँ ।
तभी एक अन्य सदस्य खास बनने की कोशिश करते हुए कहने लगा, कुछ लोगों को गलतफहमी है मेरे बारे में, शायद पसंद नहीं करते ……मुँह बिचकाते हुए बोले, मैं तो उनकी सोच बदलने में असमर्थ हूँ और समय भी नहीं ये सब सोचने का….।
पर कभी कभी लगता है चलिए कोई बात नहीं ।
जहाँ लोग नहीं चाहते मैं रहूँ सक्रियता कम कर देता हूँ । जोश उमंग कम हुआ बस..।
सचिव महोदय जो बड़ी देर से सबकी बात सुन रहे थे कहने लगे #इंसान की कर्तव्यनिष्ठा उसके कर्म सबको आकर्षित करते हैं। समयानुसार सोच परिवर्तित हो जाती है।
मुझे ही देखिये कितने लोग पसंद करते हैं.. …. हहहहहह ।
अब भला संस्था के दार्शनिक महोदय भी कब तक चुप रहते कह उठे #जो_व्यक्ति_स्वयं_को_पसंद_करता_है उसे ही सब पसंद करते हैं ।
सामान्य सदस्य जिसने शुरुआत की थी बात काटते हुए कहने लगा शायद यहाँ वैचारिक भिन्नता हो ।
जब सब सराहते हैं तो किये गए कार्य की समीक्षा और सही मूल्यांकन होता है तब खुद के लिये भी अक्सर पाजिटिव राय बनती है और बेहतर करने की कोशिश भी ।
दार्शनिक महोदय ने कहा दूसरे के अनुसार चलने से हमेशा दुःखी रहेंगे अतः जो उचित हो उसी अनुसार चलना चाहिए जिससे कोई खुश रहे न रहे कम से कम हम स्वयं तो खुश होंगे।
#सत्य_वचन, आज से आप हम सबके गुरुदेव हैं, सामान्य सदस्य ने कहा ।
सभी ने #हाँ_में_हाँ मिलाते हुए फीकी सी मुस्कान बिखेर दी और अपने-अपने गंतव्य की ओर चल दिए ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘ प्रभु ‘
जबलपुर (म.प्र.)
मो.- 7024285788