श्री शांतिलाल जैन 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई पुरस्कारों / अलंकरणों से  पुरस्कृत /अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। आज  प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का सार्थक  एवं सटीक  व्यंग्य   “ईमानदार होने की उलझन ।  इस व्यंग्य को पढ़कर निःशब्द हूँ। मैं श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य पर टिप्पणी करने के जिम्मेवारी पाठकों पर ही छोड़ता हूँ। अतः आप स्वयं  पढ़ें, विचारें एवं विवेचना करें। हम भविष्य में श्री शांतिलाल  जैन जी से  ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाओं की अपेक्षा रखते हैं। ) 

☆☆ ईमानदार होने की उलझन ☆☆

 

एक उलझन में पड़ गया हूँ मैं.

एक छोटी सी बेईमानी करने से एक बड़ा लाभ मिलने का अवसर सामने है. उलझन ये कि बचपन में स्कूल में बालसभा में ‘ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी’ पर जो भाषण मैंने दिया था वो बार बार प्रतिध्वनित होकर मेरे विवेक से टकरा रहा है.

ऐसे में मेरी मदद को सिन्हा सर आगे आये. बोले – ‘यार शांति, ऑनेस्टी एक बेस्ट पॉलिसी है, मगर तुम्हारे लिये है ऐसा तो किसी ने नहीं कहा. जो कहा गया है उससे कहीं ज्यादा अनकहा है. कहा गया है – ‘द बेस्ट पॉलिसी’, अनकहा है – ‘फॉर अदर्स’. इसे एक साथ पढ़ो यार. जो नीति वाक्य मंच से कहे जाते हैं वे सुननेवालों के लिये हुआ करते हैं, वक्ताओं के लिये नहीं. होते तो ये नायक, जननायक, संत, कथावाचक, जीवन-प्रबंधन गुरु, उपदेशक, तकरीर करनेवाले धनसंचय के उस मक़ाम पर नहीं पहुँच पाते जहाँ वे आज हैं.’

‘लेकिन सर मैं तो हमेशा ही ईमानदार…’ – मैंने टोका.

‘हमेशा के लिये किसने बोला है तुम्हें ? कहाँ लिखा है ‘ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी फॉर एवर’. स्कूल में हम भी पढ़े हैं यार और ठीक-ठाक ही पढ़े हैं. हमने तो ऐसा कहीं नहीं पढ़ा. ईमानदारी हर पल बदलनेवाली शै है. जब तक आप आम नागरिक हैं तब तक ये बेस्ट पॉलिसी है, जब अफसर हैं तब नहीं है. जब तक आप मंच के ऊपर हैं तब तक है, नीचे उतर आये तब नहीं है. जब आप विपक्ष में हैं तब है, जब आप सत्ता में हैं तब नहीं है. जब तक आप ग्राहक हैं तब तक है, जब आप विक्रेता हैं तब नहीं है. जब आप वादी के वकील हैं तो ईमानदार तकरीरें अलग है जब आप प्रतिवादी के हैं तब की ईमानदार तकरीरें अलग हैं.’

‘बट सर,  बेस्ट से मेरा मतलब है कि…’

‘यार तुम भोत भोंठ आदमी हो, कसम से.’ – झुंझला गये वे. – ‘ये ना बेस्ट-वेस्ट कुछ नहीं होता, हर समय बेस्ट से बेटर कुछ तो होता ही है. प्रेक्टिकल बनो लाईफ में. अपने मेहरा साब से सीखो. ईमानदारी का डंका बजता है उनका. जब वे टेन परसेंट का कट बेस्ट मान कर लेते थे तब भी उनके पास फिफ़्टीन परसेंट का बेटर ऑफर तो रहता ही था. इन्फ़्लेशन बढ़ा. फिफ़्टीन परसेंट बेस्ट हुआ, एट्टीन बेटर. अनु बिटिया की शादी है सो ईमानदारी का फुट्टा एट्टीन परसेंट पर ले जाने का मन बना लिया बॉस ने. ऑनेस्ट इस कदर कि अपनी बेस्ट लिमिट को उन्होने कभी क्रॉस नहीं किया. और, हेड ऑफिसवाले रामामूर्ति सर! उनका बेस्ट वन लेक प्लस से शुरू होता है. उससे कम रिश्वत की संभावनाओं वाले केसेस में जबरजस्त ईमानदार और कड़क अफसर माने जाते हैं. ए बेटर इज आल्वेज बेटर देन द बेस्ट माय डियर शांति.’

‘और जो बचपन में पढ़ा वो ?”

‘तुमने बालसभा में भाषण दिया, शील्ड मिली, प्रमाणपत्र मिला, फोटू खिंचा, ऑनस्टी ओवर. अब भूल जाओ उसको. नैतिक शिक्षाएँ ऑप्शनल सब्जेक्ट में पढ़ाई जातीं हैं, उनके सबक भी जीवन में ऑप्शनल होते हैं. एक छोटे स्टेप से बड़े फायदे की मंज़िल तक पहुँचने का ऑप्शन अभी है तुम्हारे पास. ये राह तुम नहीं चुनोगे तो कोई और चुनेगा.’ – उन्होने कंधा थपथपाया और बोले – ‘उठो, जागो और तब तक चलते रहो जब तक तुम अपनी मंज़िल पर न पहुँच जाओ. जब तुम वहाँ पहुँचोगे तो दुनियादारी में सफल बहुत सारे लोग मिलेंगे तुम्हें. ऑल द बेस्ट.’

मैं अब भी उलझन में हूँ.

 

© शांतिलाल जैन 

F-13, आइवोरी ब्लॉक, प्लेटिनम पार्क, माता मंदिर के पास, TT नगर, भोपाल. 462003.

मोबाइल: 9425019837

 

 

ईमानदार होने की उलझन

एक उलझन में पड़ गया हूँ मैं.

एक छोटी सी बेईमानी करने से एक बड़ा लाभ मिलने का अवसर सामने है. उलझन ये कि बचपन में स्कूल में बालसभा में ‘ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी’ पर जो भाषण मैंने दिया था वो बार बार प्रतिध्वनित होकर मेरे विवेक से टकरा रहा है.

ऐसे में मेरी मदद को सिन्हा सर आगे आये. बोले – ‘यार शांति, ऑनेस्टी एक बेस्ट पॉलिसी है, मगर तुम्हारे लिये है ऐसा तो किसी ने नहीं कहा. जो कहा गया है उससे कहीं ज्यादा अनकहा है. कहा गया है – ‘द बेस्ट पॉलिसी’, अनकहा है – ‘फॉर अदर्स’. इसे एक साथ पढ़ो यार. जो नीति वाक्य मंच से कहे जाते हैं वे सुननेवालों के लिये हुआ करते हैं, वक्ताओं के लिये नहीं. होते तो ये नायक, जननायक, संत, कथावाचक, जीवन-प्रबंधन गुरु, उपदेशक, तकरीर करनेवाले धनसंचय के उस मक़ाम पर नहीं पहुँच पाते जहाँ वे आज हैं.’

‘लेकिन सर मैं तो हमेशा ही ईमानदार…’ – मैंने टोका.

‘हमेशा के लिये किसने बोला है तुम्हें ? कहाँ लिखा है ‘ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी फॉर एवर’. स्कूल में हम भी पढ़े हैं यार और ठीक-ठाक ही पढ़े हैं. हमने तो ऐसा कहीं नहीं पढ़ा. ईमानदारी हर पल बदलनेवाली शै है. जब तक आप आम नागरिक हैं तब तक ये बेस्ट पॉलिसी है, जब अफसर हैं तब नहीं है. जब तक आप मंच के ऊपर हैं तब तक है, नीचे उतर आये तब नहीं है. जब आप विपक्ष में हैं तब है, जब आप सत्ता में हैं तब नहीं है. जब तक आप ग्राहक हैं तब तक है, जब आप विक्रेता हैं तब नहीं है. जब आप वादी के वकील हैं तो ईमानदार तकरीरें अलग है जब आप प्रतिवादी के हैं तब की ईमानदार तकरीरें अलग हैं.’

‘बट सर,  बेस्ट से मेरा मतलब है कि…’

‘यार तुम भोत भोंठ आदमी हो, कसम से.’ – झुंझला गये वे. – ‘ये ना बेस्ट-वेस्ट कुछ नहीं होता, हर समय बेस्ट से बेटर कुछ तो होता ही है. प्रेक्टिकल बनो लाईफ में. अपने मेहरा साब से सीखो. ईमानदारी का डंका बजता है उनका. जब वे टेन परसेंट का कट बेस्ट मान कर लेते थे तब भी उनके पास फिफ़्टीन परसेंट का बेटर ऑफर तो रहता ही था. इन्फ़्लेशन बढ़ा. फिफ़्टीन परसेंट बेस्ट हुआ, एट्टीन बेटर. अनु बिटिया की शादी है सो ईमानदारी का फुट्टा एट्टीन परसेंट पर ले जाने का मन बना लिया बॉस ने. ऑनेस्ट इस कदर कि अपनी बेस्ट लिमिट को उन्होने कभी क्रॉस नहीं किया. और, हेड ऑफिसवाले रामामूर्ति सर! उनका बेस्ट वन लेक प्लस से शुरू होता है. उससे कम रिश्वत की संभावनाओं वाले केसेस में जबरजस्त ईमानदार और कड़क अफसर माने जाते हैं. ए बेटर इज आल्वेज बेटर देन द बेस्ट माय डियर शांति.’

‘और जो बचपन में पढ़ा वो ?”

‘तुमने बालसभा में भाषण दिया, शील्ड मिली, प्रमाणपत्र मिला, फोटू खिंचा, ऑनस्टी ओवर. अब भूल जाओ उसको. नैतिक शिक्षाएँ ऑप्शनल सब्जेक्ट में पढ़ाई जातीं हैं, उनके सबक भी जीवन में ऑप्शनल होते हैं. एक छोटे स्टेप से बड़े फायदे की मंज़िल तक पहुँचने का ऑप्शन अभी है तुम्हारे पास. ये राह तुम नहीं चुनोगे तो कोई और चुनेगा.’ – उन्होने कंधा थपथपाया और बोले – ‘उठो, जागो और तब तक चलते रहो जब तक तुम अपनी मंज़िल पर न पहुँच जाओ. जब तुम वहाँ पहुँचोगे तो दुनियादारी में सफल बहुत सारे लोग मिलेंगे तुम्हें. ऑल द बेस्ट.’

मैं अब भी उलझन में हूँ.

 

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