श्रीमती समीक्षा तैलंग 

 

(आज प्रस्तुत है श्रीमति समीक्षा तैलंग जी  की  एक बेहतरीन समसामयिक मौलिक व्यंग्य रचना _अंतरराष्ट्रीय_महिला_दिवस_पर_न_रोना… _करो_ना..।  शायद आपको मिल जाये  इस प्रश्न का उत्तर कि – कैसे करें बेअसर ,अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से लेकर होली तक चीन का असर ? )  

☆ व्यंग्य –  “_अंतरराष्ट्रीय_महिला_दिवस_पर_न_रोना… _करो_ना..।”  ☆ 

इतना कोरोना का रोना ले के बैठे हो यार…। जान जाने से डरते हो… सच में!! तो फिर केवल कोरोना से ही क्यों डरते हो भाई…।

महिलाओं से बलात्कार करने से पहले भी डरो…। नहीं डरोगे, पता है। तुम्हारी आत्मा तुम्हें कचोटती नहीं…।

महिलाओं की इज्ज़त का रोना हम ताउम्र गाते रहेंगे लेकिन करेंगे नहीं।

ट्रेफिक के नियम तोड़ने से भी डरो ना…। नहीं डरेंगे…। इसमें डरने वाली क्या बात है, श्शैःः।

हजारों की तादाद में लोग जान गंवा देते हैं इस चक्कर में…। और लाखों के घर उजड़ जाते हैं।

तो….। वायरस थोड़े है, हावी हुआ और हम जान गंवा बैठेंगे।

हेलमेट नहीं लगाना तो नहीं लगाना। जान जाए तो जाए।

अभी तो बस, कोरोना से डरना जरूरी है। सेनेटाइजर और मास्क के लिए मारामारी है।

बस इस बीमारी से मौत नहीं होनी चाहिए। बाकी किसी से भी हो, चलेगा। वो हमारी गलती से होगी इसलिए दुख भी कम होगा। लेकिन चीन की गलती से होगी तो न चल पाएगा।

हम चीन का विरोध करते हैं तो उसकी दी हुई बीमारी का भी विरोध करना जरूरी है।

आखिर विरोधी, विरोध करने के लिए ही होते हैं। सही, गलत कहां जान पाते।

फिर भी रंग पिचकारी हम चीन की ही खरीदेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं…।

 

©समीक्षा तैलंग, पुणे

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