श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। आज प्रस्तुत है उनका आलेख  “शरद पूर्णिमा  – एक तथ्यात्मक विवेचना”।  यह आलेख उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक  का एक महत्वपूर्ण  अंश है। इस आलेख में आप  नवरात्रि के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।  आप पाएंगे  कि  कई जानकारियां ऐसी भी हैं जिनसे हम अनभिज्ञ हैं।  श्री आशीष कुमार जी ने धार्मिक एवं वैज्ञानिक रूप से शोध कर इस आलेख एवं पुस्तक की रचना की है तथा हमारे पाठको से  जानकारी साझा  जिसके लिए हम उनके ह्रदय से आभारी हैं। )

 

Amazon Link – Purn Vinashak

 

☆ “शरद पूर्णिमा   – एक तथ्यात्मक विवेचना”।

 

आज शरद पूर्णिमा है मेरी पुस्तक पूर्ण विनाशक में से शरद पूर्णिमा पर एक लेख :

क्या आप जानते हैं कि एक पूर्णिमा या पूर्णिमा की रात्रि है जो दशहरा और दिवाली के बीच आती है, जिसमें चंद्रमा पुरे वर्ष में पृथ्वी के सबसे नज़दीक और सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस दिन लोग चंद्रमा की रोशनी की पूर्णता प्राप्त करने के लिए कई अनुष्ठान करते हैं क्योंकि इसमें उपचार गुण होते हैं । इसे शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा (शब्द ‘ कोजागरी’ का अर्थ है ‘जागृत कौन है’ अर्थात ‘कौन जाग रहा है?’) या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात्रि भर चाँदनी में रखने का विधान है । कुछ लोग मानते हैं कि इस रात्रि देवी लक्ष्मी लोगों के घर का दौरा करने के लिए जाती है, और उन लोगों पर खुशी दिखाती है जो उन्हें इस रात्रि जाग कर देवी लक्ष्मी की पूजा करते हुए मिलते हैं । इसके पीछे एक लोकप्रिय कथा भी है। एक बार एक राजा एक महान वित्तीय संकट में था। तो रानी, अपने पति की सहायता करने के लिए, पूरी रात्रि जागकर देवी लक्ष्मी की पूजा करती है ।जिससे देवी लक्ष्मी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और राजा फिर से धन धन्य से पूर्ण हो जाता है ।

इसे कौमुदी (अर्थ : चन्द्रमा का प्रकाश) उत्सव भी कहा जाता है और इसे दैवीय रास लीला की रात्रि माना जाता है । शब्द, रास का अर्थ “सौंदर्यशास्त्र” और लीला का अर्थ “अधिनियम” या “खेल” या “नृत्य” है । यह हिंदू धर्म की एक अवधारणा है, जिसके अनुसार गोपियों के साथ भगवान कृष्ण के “दिव्य प्रेम” का खेल दर्शया जाता है ।

गोपी शब्द गोपाला शब्द से उत्पन्न एक शब्द है जो गायों के झुंड के प्रभारी व्यक्ति को निरूपित करता है । हिंदू धर्म में भगवत पुराण और अन्य पुराणिक कहानियों में वर्णित विशेष रूप से नाम गोपीका (गोपी का स्त्री रूप) का प्रयोग आमतौर पर भगवान कृष्ण की बिना शर्त भक्ति (भक्ति) अपनाने वाली गाय चराने वाली लड़कियों के समूह के संदर्भ में किया जाता है । इस समूह की एक गोपी को हम सभी राधा (या राधिका) के रूप में जानते हैं। वृंदावन में भगवान कृष्ण के साथ रास करने वाली 108 गोपीका बताई गयी हैं । भगवान कृष्ण ने राधा और वृंदावन की अन्य गोपियों के साथ दिव्य रास लीला इस शरद पूर्णिमा की रात्रि ही की थी । भगवान कृष्ण ने खुद को उनमें से प्रत्येक गोपी के साथ नृत्य करने के लिए अपनी प्रतिलिपियाँ बनायीं और इसी रात्रि भगवान कृष्ण ने अपने भक्ति रस का प्रदर्शन राधा और अन्य गोपियों के साथ रास-लीला करके किया । यह दिन प्रेमियों द्वारा भी मनाया जाता है। प्रेमी जोड़े पूर्णिमा की इस रात्रि को एक-दूसरे के लिए अपना प्यार व्यक्त करते हैं । आज भी अगर कोई वृंदावन के निधिवन जाता है, और शरद पूर्णिमा की रात्रि वहाँ पर रहता है, तो प्रेम का विशेष रस निधिवन के अंदर उपस्थित वृक्षों से बहने लगता हैं जो किसी भी व्यक्ति के भाव को तुरंत प्रेम के दिव्य रस में बदल देता है। यदि वह व्यक्ति शुद्ध है और खुद को दूसरे के लिए समर्पित करता है। एवं वह जीवन में दूसरों के प्रति घृणा नहीं करता है। तो निधिवन में रात्रि को प्यार की एक सकारात्मक ऊर्जा उसके शरीर से चारों ओर बहने लगती है। लेकिन अगर कोई रात्रि में बुरे इरादे से जो शारीरिक रूप से या मानसिक रूप से शुद्ध नहीं है, वह निधिवन में जाता है तो वह मर जाता है या पागल हो जाता है”

‘निधि’ का अर्थ है खजाना और ‘वन’ का अर्थ ‘वन या जंगल’ है, इसलिए ‘निधिवन’ का अर्थ है वन का खजाना ऐसे ही ‘वृंदा’ का अर्थ फूलों का समूह है, इसलिए ‘वृंदावन’ का अर्थ कई प्रकार के फूलों से भरा वन है”.

 

© आशीष कुमार  

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments