हिन्दी साहित्य – शिक्षक दिवस विशेष – संस्मरण – ☆ हमारे आदर्श – कक्काजी ☆ – श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी” 

शिक्षक दिवस विशेष

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी” 

 

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी”  जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है।आज प्रस्तुत है  शिक्षक दिवस पर श्रीमती हेमलता मिश्रा ‘मानवी’ जी का  अविस्मरणीय संस्मरण  “हमारे आदर्श – कक्का जी ”, जो  हम सबके लिए वास्तव में आदर्श हैं और जिस सहजता से लिखा गया है, बरबस ही उनकी छवि नेत्रों के सम्मुख आ जाती है।)

 

☆  संस्मरण – हमारे आदर्श – कक्काजी  ☆

 

मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री मोहनलाल जी शुक्ला, ईश्वर के वरदान की तरह प्रदत्त, बड़े गुरुजी के नाम से आज भी सुविख्यात हैं मेरे कस्बे पुलगांव और आसपास! – – – – और देश के अनेक क्षेत्रों में भी जहाँ उनके विद्यार्थी हों।

लेकिन आप को जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया के लिये आदरणीय, आदर्श, अतुलनीय मेरे पिताजी आजकी दुनिया के लिये सही गुरु नहीं थे। सतयुग के उस प्रणेता ने हमें कलयुग में जीने की शिक्षा नहीं दी। उनके सतयुगी सिद्धांतों ने इस कलियुग में सबसे ज्यादा जरूरी– छल कपट द्वेष ईर्ष्या नहीं सिखाई। दूसरों के अधिकारों को लड़कर छीनना नहीं सिखाया। लोगों को सीढियाँ बनाकर ऊंचाईयों पर पहुँचना नहीं सिखाया। यहाँ तक कि रिश्तों को भी  अपने परिप्रेक्ष्य में नहीं दूसरों के संदर्भ में जीना सिखाया।

जी हाँ – – – होश सँभालते ही पिताजी को” कक्का “कह कर पुकारा। तीन बडे़ ताऊजी जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से थे, उनके बच्चे बरसों तक सदैव पिताजी के पास रहकर पढे लिखे – – इसीलिए वही संबोधन हम भाई बहन भी देते रहे। माँ को भी “काकी “कहा। आदर्शवादिता की इंतेहा कि बच्चों में अलगाव की भावना ना आये अतः पिताजी ने कभी नहीं सिखाया कि मुझे पिताजी कहो।

दुनिया में अच्छा इंसान बनना सिखाया परंतु दुर्जनों के साथ कैसा बर्ताव करें ये नहीं सिखाया। गुरु को तो चाणक्य की भांति होना चाहिए जो साम दाम दंड भेद की नीतियां सिखाये। गुरु द्रोणाचार्य की तरह होना चाहिए जो अपने शिष्य के लिए एकलव्य से अंगूठा माँगने में भी संकोच ना करे।। गुरु को तो कर्ण अर्जुन और दुर्योधन तीनों से निपटने की कला अपने छात्रों को सिखाना चाहिए। आदर्श शिक्षक का तमगा आपके लिए आशीष बन सकता है लेकिन दुनिया की भीड़ में छात्रों का सहारा नहीं बन सकता।

तात्पर्य यही कि आजके युग के शिक्षकों की तरह हाड़मांस के रोबोट तैयार करना चाहिए – – – संवेदनाहीन राग विराग अनुराग– भाव विभाव अनुभाव से परे।

निःसंदेह चौंकानेवाला लगा होगा  यह प्रलाप। अरे ये तो बस व्यवस्था के प्रति और स्वार्थी दुनिया के प्रति मन की भड़ास निकाल ली जितनी उबल रही थी भीतर।—-

लेकिन सच कहूँ तो मेरे पिताजी मेरे कक्का स्वयं तो बहुत अच्छे शिक्षक थे ही – – – शिक्षकों के शिल्पी भी थे। वे खुद तो अच्छे शिक्षक थे ही अपने अंतर्गत शिक्षकों को भी उत्तम शिक्षक बनाया। वे लगभग बीस वर्ष प्रधानाचार्य रहे। तिवारी गुरुजी, पेशवे गुरुजी, जोशी गुरुजी सारे मेरे पिताजी की प्रतिकृति ही थे मानो। मजाल है कोई शिक्षक ट्यूशन को पैसे से तोल ले। कमजोर बच्चों को अलग से ध्यान दो मगर सहयोग स्वरूप सक्षम अमीर माता-पिता दूध, दही-मही, सब्जियाँ, ऋतुफल, कपड़ा लत्ता भिजवाते। पैसे से शिक्षा दान नहीं। इसी सिद्धांत पर चले पिताजी सारी जिंदगी। इसलिए बडे़ मजे भी रहे। राशनिंग के दौर में भी जीवनावश्यक वस्तुओं का अभाव कभी नहीं देखा। मिल मालिक से लेकर बड़े व्यवसायियों के बिगडैल, पढाई में कमजोर बच्चों को पिताजी अलग से पढाते और कमाल कि आज भी वे बड़े व्यवसायिक व्यक्ति  गुरु बहन का आशीष लेते हैं मेरे चरणस्पर्श करके।

इससे बड़ा क्या सबूत चाहिए एक शिक्षक की पुत्री को अपने शिक्षक पिता की महिमा का महत्ता का? हाँ महान थे मेरे गुरु मेरे पिता जिनके कारण इस देश में आज भी मानवता की सेवा में विश्वास करने वाले व्यवसायी हैं। स्कूल में आज भी वे उसूल चल रहे हैं जो मेरे आदर्श गुरु पिता के जमाने में चलते थे। आज भी वे चंद लोग मौजूद हैं जो गुरुजी के रामायण मंडल को लेकर चल रहे हैं। होली के होलियारे, महीना पहले से एक एक घर मे फाग गाते हैं—-“सदा अनंद रहे यह द्वारा मोहन खेलैं होरी हो” इस आशीष के साथ। और क्या चाहिए एक शिक्षक को युगों तक लोगों के जेहन में जीवित रहने के लिए। संस्मरण और अभिनंदनंदनीय क्षणों का तो विपुल भंडार है मेरे परम गुरु पिता के व्यक्तित्व को परिभाषित करने के लिए। लेकिन शेष फिर कभी—-

गौरवान्वित हूँ मैं एक शिक्षक की बेटी कहलाकर। प्रेमचंद की कहानियों के पात्र से आदर्श शिक्षक – – – आज के इस भ्रष्टाचारी युग के पचास साल पहले के शिक्षक शिल्पी की बेटी का शत शत नमन है समस्त शिक्षकों को शिक्षक दिवस पर।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” ✍

नागपुर, महाराष्ट्र