हिन्दी साहित्य – श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – कविता – ☆ कान्हा ! एक दिन तु्मको आना ही होगा ☆ – डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष
डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव
(डॉ. प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव जी की एक भावप्रवण कविता।)
☆ कान्हा ! एक दिन तु्मको आना ही होगा ☆
कान्हा ! एक दिन तु्मको आना ही होगा,
अनंत प्रतीक्षा राधा की अंत करना होगा।
नियति का चक्र भी तुम्हे बदलना होगा,
तन मन प्राणों की पीड़ा हरना ही होगा।।
कान्हा ! एक दिन तुमको आना ही होगा।
कोटि-कोटि सावन बीते, कलियुग बीते,
मधु यौवन बीते, विरह ताप हरना होगा।
विरहणी मृगनयनी के चछु रो रोकर रीते,
प्रीति घट हुए रीते, प्रेम रस भरना होगा।।
कान्हा ! एक दिन तुमको आना ही होगा।
कान्हा ! निज प्रथम प्रेम कैसे तुम भूल गए,
गोकुल वृंदावन भूले, मधुवन हर्षाना होगा।
नियति कोई हो, प्रेमांजलि चख के चले गए !!
राधेय यौवन लौटा, मदन रस वर्षाना होगा।।
कान्हा ! एक दिन तुमको आना ही होगा।
अगर नहीं आओगे, गीता का मान घटाओगे,
नियंता तुम ही जग के अब दिखलाना होगा।
प्रथम प्रेम भुलाओगे, नारी सम्मान मिटाओगे,
मान दिला हर्षाओगे, प्रेम अमर कर जाओगे।।
कान्हा ! एक दिन तुमको आना ही होगा,
अनंत प्रतीक्षा राधा की अंत करना होगा।
नियति का चक्र भी तुम्हे बदलना होगा,
तन मन प्राणों की पीड़ा हरना ही होगा।।
कान्हा ! एक दिन तुमको आना ही होगा।
डा0.प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव