श्री गणेश चतुर्थी विशेष
श्री विनोद साव
(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध व्यंग्यकर श्री विनोद साव जी का श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर विशेष व्यंग्य – गणपति और गणतंत्र. )
☆ व्यंग्य – गणपति और गणतंत्र ☆
गणपति की स्थापना कर उसे उत्सव के रूप में मनाने का श्रीगणेश किया लोकमान्य तिलक ने. गणतंत्र की स्थापना – भीमराव अम्बेडकर द्वारा प्रस्तावित संविधान की संसद द्वारा स्वीकृति के बाद हुई. गणपति और गणतंत्र दोनों को राष्ट्रीय स्वरुप देने का श्रेय महाराष्ट्र को मिला. गणेशोत्सव की शुरुआत तिलक ने जनता में देशप्रेम व राष्ट्रीयता की भावना जगाने और राष्ट्रीयता का सूत्रपात करने के लिए की थी. अम्बेडकर ने देश की निरीह और वंचित जनता के लिए उन्नति के द्वार खोले संविधान को गणतांत्रिक रूप देकर. लेकिन हर साल गणपति हमारे पास आते रहे और गणतंत्र हमसे दूर होता गया. आज़ादी के बाद गणपति रह गए जनता के हिस्से और गणतंत्र के ठेकेदार बन गए गणनायक अर्थात हमारे जन-प्रतिनिधि जो संविधान द्वारा दी गयी सुविधाओं को खुद भोगते रहे और जनता को उनके मौलिक अधिकारों से भी वंचित करते रहे. जनता बेचारी गणतंत्र की आस में हर साल अपना रोना गणपति जी के पास रो लेती है.
वैसे तथाकथित गणनायकों से तो गणपति अच्छे जो हर साल आ जाते हैं. जनता पुकारती है ‘हे गणपति महराज तोर जय बोलावन जी’ और सुनकर भोले-भाले, ऊपर जनेऊ और नीचे लंगोटी धारण किए हुए मस्ती में सूंड हिलाते हुए वे अपने श्रद्धालुओं के बीच पहुँचते ही लम्बोदराय-सकलाय हो जाते हैं. उनके विराजमान होते ही सारा शहर बाग़-जाग हो उठता है. फिर ग्यारह दिनों तक गजबदन विनायक का धूम-धड़ाका. नारियल, लड्डू और ककडी का भोग है. प्रसाद भी सबके लिए ‘आरक्षित’ है– नारियल – भक्तजनों के लिए, लड्डू – गणेशजी की उदारपूर्ति में और ककडी – उनके मूसकराज को नसीब. सारे शहर की रौनक बढ़ गयी है. नौजवान और नौजवानियों का हुजूम है रिमझिम बारिश में भीगते हुए. गणेश प्ररिक्रमा के बहाने ‘वाहन-चालन और सौन्दर्य-दर्शन दोनों ही पूरे उफान पर हैं.
कई विभाग और संभाग अपने-अपने हिसाब से गणपति जी को ‘प्लीज’ करने में लगे रहते हैं. ग्यारह दिनों का चार्ज गणपति महराज के जिम्मे है. सबके ‘हेड ऑफ दी डिपार्टमेंट’ वही बन जाते हैं. भक्तजन भी अपनी-अपनी फरमाइश की लिस्ट लेकर एक साथ चीत्कार कर उठे हैं ‘हे गणनायक बुद्धिविनायक.. इस बार तो हमें कुछ देते जाओ – महंगाई बढ़ रही है महंगाई भत्ता बढाओ, ऋण मुक्त कराओ लगान माफ़ी करवाओ, बेजा कब्जे पर पट्टा दिलवाओ, धान के मूल्य से लेव्ही हटवाओ, पब्लिक सेक्टर को प्राइवेट बनवाओ, थर्ड क्लास की नौकरी लगवाओ. इस तरह हर बढे-चढ़े बजट पेश होने के बाद गणपति महाशय इंस्पेक्शन’ के लिए आते हैं और ग्यारह दिनों तक जमकर खिदमत करवाकर बजट बिगाड़कर चले जाते हैं.
हर रोज नयी समस्या का श्रीगणेश करने वाले इस देश की भार-क्षमता चमत्कृत कर देती है. हर साल आ तो जाते हैं गणपति पर कब आयेगा सचमुच पूर्ण गणतंत्र इस देश में?
© विनोद साव , छत्तीसगढ़