श्री अजीत सिंह

 

(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते हैं।  इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है 90 के दशक में श्रीनगर आल इण्डिया रेडिओ / दूरदर्शन केंद्र में आपके द्वारा दी गई सेवाओं के दौरान एक अविस्मरणीय संस्मरण  ‘प्याला बदल यार…..’। हम आपसे उनकी अनुभवी कलम से ऐसे ही आलेख समय समय पर साझा करते रहेंगे।)

☆ संस्मरण  ☆ प्याला बदल यार….. ☆ 

वे बड़े सीनियर अफसर रहे आकाशवाणी में 90 के दशक में और बिगड़ते हालात को संभालने के लिए अक्सर श्रीनगर आते थे जहां दशक के शुरू में ही आतंकवादी घटनाएं शुरू हो गईं थीं। आकाशवाणी व दूरदर्शन भी इनसे बच न सके। दूरदर्शन के डायरेक्टर स्व लासा कौल जी की आतंकवादियों द्वारा हत्या के बाद श्रीनगर से रेडियो के बुलेटिन दिल्ली शिफ्ट कर दिए गए और दूरदर्शन के बुलेटिन जम्मू से चालू किए गए।

श्री बी जी वर्गीज की अध्यक्षता में मीडिया की कारवाही का जायज़ा लेने के बाद प्रेस काउंसिल की टीम ने सिफारिश की थी कि रेडियो व दूरदर्शन के बुलेटिन वापिस श्रीनगर से शुरू किए जाएं। मई जून 1993 में पहले रेडियो और बाद में दूरदर्शन के बुलेटिन श्रीनगर से शुरू हो गए। काम मुश्किल हालात में चल रहा था। उसी साल दो अक्टूबर को रेडियो के एक कैजुअल न्यूजरीडर की हत्या कर दी गई। इससे पहले तब रेडियो के असिस्टेंट डायरेक्टर ग़ुलाम हसन ज़िया का अपहरण हुआ जिन्हें तीन महीने बाद आतंकवादियों ने छोड़ा। एक और असिस्टेंट डायरेक्टर सलामुद्दीन बजाड़ को टांग में गोली मारकर बुरी तरह घायल कर दिया और वे आज भी लंगड़ाकर चलते हैं। एक कैजुअल अनाउंसर क्रॉस फायरिंग में मारे गए। दूरदर्शन के स्टेशन इंजिनियर एस पी सिंह उस समय मारे गए जब जेहलम पार से फायर किया गया एक रॉकेट उनके कमरे की टिन की छत को चीरता हुआ उन पर आन गिरा।

यह मुसीबतों की लंबी लिस्ट है। ऐसी घटना जब भी होती तो स्टाफ का हौसला गिर जाता। वे आतंकित हो उठते। कोई वहां रहना नहीं चाहता था। सब बाहर ट्रांसफर चाहते थे। सुरक्षा के घेरे में रहना यूं तो सभी के लिए, पर न्यूज स्टाफ के लिए खासकर, एक अजीब ही तनाव पैदा कर देता था। श्रीनगर पोस्टिंग के कारण जम्मू में रह रहे परिवार को हमेशा हमारी सुरक्षा की चिंता लगी रहती थी। जब भी कोई बड़ी घटना होती तो मैं दिल्ली न्यूजरूम को खबर फाइल करने के तुरंत बाद घर फोन करके अपनी सुरक्षा के प्रति उन्हे तसल्ली देता था।

श्रीनगर में स्टाफ का मनोबल बढ़ाने डायरेक्टरेट और मिनिस्ट्री से सीनियर अधिकारी आते रहते थे। अक्सर अधिकारी मुझसे स्थिति की ब्रीफिंग सी लेते थे।

यह ब्रीफिंग प्राय: सरकारी गेस्ट हाउस में शाम के वक्त ड्रिंक्स व डिनर पर होती।

ऐसे ही एक दौरे में एक बड़े सीनियर अधिकारी मुझसे अनौपचारिक बात कर रहे थे। मैं अपनी मुसीबतों की बात कहना चाहता था कि मुझे कई साल श्रीनगर में हो गए हैं, अब मेरा दिल्ली ट्रांसफर कर दिया जाए। वे मुझे कहते कोई श्रीनगर आने को तैयार नहीं है, आप कुछ और समय निकालो। मेरे काम की तारीफ करके भी वे मुझे फुसलाते से लगे कि यहीं ठहरो।

बातों और ड्रिंक्स का यह सिलसिला चल ही रहा था कि इन अधिकारी महोदय ने ड्रिंक्स का अपना गिलास मुझे पीने के लिए दे दिया और मेरा गिलास आप ले लेकर कहा चीयर्स। गिलास टकरा कर हम भी पी गए और वो भी। थोड़ी देर बाद अधिकारी बोले, “मैं हमेशा आपके साथ रहूंगा, तुम भी हमेशा मेरे साथ रहना। हमने एक गिलास से ड्रिंक ली है। इसलिए एक बात रखेंगे। दोनों मिलकर श्रीनगर रेडियो स्टेशन चलाएंगे”। मैंने भी कह दिया ज़रूर सर, हालांकि यह सब मुझे कुछ अटपटा सा भी लग रहा था।

कहीं यह भी ख्याल आ रहा था कि साहिब ज़्यादा पी गया है।

मैं टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर के अपने कमरे में आकर सो गया। सुबह उठा तो रात की बात फिर याद आ गई। अधिकारी महोदय ने यह गिलास बदलने वाली बात क्यों की? अचानक खयाल आया कि यह पुराने ज़माने का पगड़ी बदल यार बनाने वाला किस्सा तो नहीं है? क्या हम प्याला बदल यार बन गए थे?

पता नहीं, पर उसके बाद मैंने अपने ट्रांसफर की बात कई साल तक नहीं उठाई। उन अधिकारी से बाद में कभी कोई बात भी नहीं हुई पर अक्सर ख्याल आता था कि श्रीनगर में आखिर किसी को तो आकाशवाणी के संवाददाता का काम करना था। फिर मैं क्यों नहीं?

शुक्रिया मेरे प्याला बदल यार, शशिकांत कपूर। आपने मुझे कठिन समय सम्बल दिया।

©  श्री अजीत सिंह

पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन

संपर्क: 9466647037

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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