श्री अजीत सिंह
(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते रहते हैं। इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है अविस्मरणीय संस्मरण ‘27 साल पहले की 26 जनवरी की यादें…’। हम आपसे आपके अनुभवी कलम से ऐसे ही आलेख समय समय पर साझा करते रहेंगे।)
☆ संस्मरण ☆ 27 साल पहले की 26 जनवरी की यादें… ☆
(श्री अजीत सिंह हिसार स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं । उन्होंने 19 वर्षों तक जम्मू और कश्मीर में ऑल इंडिया रेडियो के संवाददाता के रूप में काम किया । बाद में वह 2006 में समाचार दूरदर्शन केंद्र हिसार के निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए । )
वर्ष 1995 में जम्मू के मौलाना आज़ाद स्टेडियम में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल, जनरल केवी कृष्णराव को मारने के उद्देश्य से आतंकवादियों द्वारा किए गए धमाकों ने भारतीय मानस को बुरी तरह हिला दिया था ।
राज्यपाल बाल बाल बच गए लेकिन आठ अन्य व्यक्तियों की मौत हो गई और 40 से अधिक घायल हो गए। तीन टाइम बम एक के बाद एक निर्धारित स्थानों पर फटे थे।
पहला ब्लास्ट राज्यपाल के भाषण खत्म होने से कुछ मिनट पहले मुख्य गेट के पास हुआ । दूसरा पब्लिक ब्लॉक के पास हुआ, जहां राज्य सूचना विभाग के कर्मचारी पब्लिक एड्रेस सिस्टम को संभाल रहे थे। मारे गए लोगों में मेरे मित्र फील्ड पब्लिसिटी ऑफिसर अनिल अबरोल और उनके दो साथी कर्मचारी शामिल थे।
उनके पीछे मीडिया के लोग बैठे थे, पर वे सभी सुरक्षित बच गए। तीसरा ब्लास्ट उस मंच के करीब था जहां राज्यपाल भाषण दे रहे थे ।
जम्मू कश्मीर में ऑल इंडिया रेडियो के वरिष्ठ संवाददाता होने के नाते मुझे वहां होना चाहिए था लेकिन मैं वहां नहीं पहुंच सका।
मुझे लेने के लिए सरकारी गाड़ी समय पर मेरे पास नहीं पहुंची। सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए सरकारी गाड़ी ही ठीक रहती है। जब तक मैं कर सकता था, तब तक इंतजार करने के बाद, मैंने अपनी कार निकाली और अपने निजी सुरक्षा अधिकारी को अपने साथ लेकर गणतंत्र दिवस समारोह स्थल के लिए रवाना हो गया ।
सुरक्षाकर्मियों ने मुझे ज्यूल चौक पर यह कहते हुए रोका कि राज्यपाल पहले ही आ चुके हैं और इसके बाद किसी को भी आने की अनुमति नहीं दी जानी थी । मैंने उन्हें बताया कि मैं कौन था और मेरा वहां होना कितना महत्वपूर्ण था । मेरा प्रेस कार्ड, कार पास और स्टेनगन के साथ मेरे पीएसओ की उपस्थिति का भी उन पर कोई असर नहीं पड़ा।
इसी दौरान वहां एक वरिष्ठ अधिकारी आए और कहने लगे कि वे मुझे पहचानते हैं पर किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती । यदि अनुमति दी जाती है, तो यह उनकी नौकरी का सवाल हो सकता है, उन्होंने तर्क दिया । मुझे पहले ही देर हो चुकी थी ।
अधिकारी ने स्टेडियम तक पहुंचने के लिए मुझे एक और रास्ता बताया। उन्होंने मुझे सलाह दी कि साइड रोड लेकर सामान्य पार्किंग के लिए निर्धारित गांधी मेमोरियल कॉलेज से होकर थोड़ा पैदल चल स्टेडियम के गेट पर पहुंचा जा सकता है। मैंने अपनी कार कालिज में छोडी़ और स्टेडियम के मुख्य द्वार तक पहुंचने के लिए एक छोटे से लकड़ी के पैदल पुल को पार करने वाला था, कि एक बड़ा विस्फोट सुनाई पड़ा और धुआं उठता देखाई दिया। मैंने सोचा कि यह कलाकारों द्वारा किसी नाटक प्रस्तुति का हिस्सा हो सकता है। लेकिन जल्द ही बड़ी संख्या में लोग स्टेडियम से बाहर भागते दिेखाई दिए । दो और धमाके हुए और फिर हर तरफ भागमभाग की अराजकता थी ।
पी एस ओ ने कहा तुरन्त वापिस चलिए और हम कार को दूसरे रास्ते से लेते हुए रेडियो कालोनी लौट आए। कुछ और जानकारी जुटा घर से ही आकाशवाणी दिल्ली को समाचार फाइल कर दिया। विस्तृत ब्यौरा बाद में दिया।
राज्यपाल ने दोपहर बाद 4 बजे राजभवन में प्रेस कांफ्रेंस बुलाई। उन्होंने जानकारी दी कि आतंकवादियों ने उन स्थानों पर टाईम बम दबा दिए थे जहां से राज्यपाल को गुज़रना था। गणतंत्र दिवस समारोह की हर गतिविधि का निर्धारित समय निमंत्रण कार्ड से ले लिया गया होगा।
1990 के बाद से राज्य में भड़की आतंकवादी हिंसा में टाईम बम से विस्फोट का यह पहला मामला था। आतंकवाद की टैक्नोलॉजी ने ख़तरनाक रुप
ले लिया था। इसके पीछे निश्चित रूप से पाकिस्तान का हाथ था। ऐसी योजना पर अमल पाकिस्तान की आईएसआई गुप्तचर संस्था की भागीदारी के बिना नहीं किया जा सकता था।
एक पत्रकार ने राज्यपाल से पूछा कि क्या वह विस्फोटों से घबरा नहीं गए थे क्योंकि एक के बाद एक तीन बम फटे थे ।
सेना के पूर्व प्रमुख रहे जनरल कृष्णाराव शांत मुद्रा में थोड़ा मुस्कुराए और कहा, “सैनिक के रूप में, हम एक अलग ही मिट्टी से बने होते हैं ।”
अब मैं कभी कभी सोचता हूं कि क्या मैं सरकारी गाड़ी समय पर न आने और पुलिसकर्मियों द्वारा मुझे लम्बे रास्ते पर डाल कर और ज्यादा लेट करने से ही शायद एक सम्भावित बड़ी दुर्घटना से बच गया? लेट होते समय मुझे गुस्सा आ रहा था और मैं कुछ चिड़चिड़ा भी हो रहा था। पर बचाव हो गया तो ये कारक अच्छे भी लगे। एक राहत सी महसूस हुई।
यह सब क्यों हुआ, कैसे हुआ, इसे शायद कोई नहीं जानता। भाग्य और किस्मत की बातों में भी मेरा यकीन नहीं। जो कुछ होता है, बाई चांस ही होता है। अच्छे बुरे कर्मों का सिद्धान्त भी सही नहीं बैठता। सावधानी से एक हद तक बचाव होता है पर हमेशा नहीं। बस सावधानी रखें, बाकी चांस पर छोड़ दें। चांस का सिद्धान्त क्या है, इसे अल्गोरिदम ढूंढने की कोशिश कर रहा है। फिलहाल इसे भगवान ही जानता है या फिर वह भी नहीं हो जानता है ।
© श्री अजीत सिंह
पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन
(लेखक श्री अजीत सिंह हिसार स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं । वे 2006 में दूरदर्शन केंद्र हिसार के समाचार निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए।)
संपर्क: 9466647037
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈