श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।”
आज प्रस्तुत है स्मृतियों के झरोखे से संस्मरणों की कड़ी में अगला संस्मरण – “जीवन की Balance Sheet”.)
☆ संस्मरण ☆ जीवन की Balance Sheet ☆ श्री राकेश कुमार ☆
(इतिहास के झरोखों से)
हमारे प्रिय मित्र ने आदेश दिया की आइना के सामने जाकर आज अपनी जिंदगी का लेखा जोखा पेश करो।आजकल समय कुछ नेगेटिव बातो का है तो हमे भी लगने लगा कहीं चित्रगुप्त के सामने पेश होने की ट्रेनिंग तो नहीं हो रही। अभी तो जिंदगी शुरू की है रिटायरमेंट के बाद से।
खैर, हमने इंटरव्यू की तैयारी शुरू कर दी और अपनी सबसे अच्छी वाली कमीज़ (जिससे हमने स्केल 3 से लेकर 5 के interview दिए थे वो मेरा lucky charm थी) पहन, जूते पोलिश कर आइना खोजने लगे। अरे ये क्या? आइना कहां है? मिल नहीं रहा था, मिलता भी कैसे आज एक वर्ष से अधिक हो गया जरूरत ही नहीं पड़ी।
श्रीमती जी से पूछा तो बोली क्या बात है, अब Covid की दूसरी घातक लहर चल पड़ी है तो आपको सजने संवरने की पड़ी है, अपने उस मोबाइल में ही लगे रहो। एक साल से सब्जी की दुकान तक तो गए नहीं। अब जब सारी दुनिया दुबक के पड़ी है और आपको जुल्फें संवारने की याद आ रही है।
हमने उलझना ठीक नहीं समझा और बैठ गए मोबाइल लेकर, दोपहरी को जैसे ही श्रीमतीजी नींद लेने लगी हम भी अपने मिशन में लग गए और आइना खोज लिया। एक निगाह अपनी नख से शिखा तक डाली और थोड़ी से चीनी खाकर चल पड़े।अम्माजी की याद आ गई जब भी घर से किसी अच्छे काम के लिए जाते थे तो वो मुंह मीठा करवा कर ही बाहर जाने देती थी और आशीर्वाद देकर कहती थी जाओ सफलता तुम्हारा इंतजार कर रही है। हमने भी मन ही मन अपनी सफलता की कामना कर ली।
जैसे ही आईने के सामने पहुंचे मुंह से निकल ही रहा था May I come in, sir लेकिन फिर दिल से आवाज़ आई अब तुम स्वतंत्र हो, डरो मत,आगे बढ़ो।आईने में जब अपने को देखा तो लगा ये कौन है लंबी सफेद दाढ़ी वाला पूरे चेहरे पर दूध सी सफेदी देख कर निरमा Washing Powder के विज्ञापन की याद आ गई ।
अपने आप को संभाल कर हमने अपने कुल देवता का नमन किया।
पर ये क्या मन बहुत ही चंचल होता है विद्युत की तीव्र गति से भी तेज चलता है हम भी पहुंच गए कॉलेज के दिनों में स्वर्गीय प्रोफ सुशील दिवाकर की वो बात जहन में थी जब हमारी बढ़ी हुई दाढ़ी पर उन्होंने कहा था “Not shaving” तो हमने एकदम कहा था ” No sir Saving” वो खिल खिला कर हंसने लगे।बहुत ही खुश मिजाज़ व्यक्ति थे।
अब कॉलेज के प्रांगण में थे तो प्रो दुबे एस एन की याद ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता, Economics को सरल और सहज भाव में समझा देते थे आज भी उनकी बाते ज़ुबान पर ही रहती है।
एक दिन कक्षा में Demand और Supply पर चर्चा हो रही थी।उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितियों का वर्णन करते हुए बतलाया कि सरकार जब अपने स्तर पर मज़दूर को रोज़गार देती है तो उससे Demand निकलती है, मजदूर पेट भरने के बाद कुछ अपने पर खर्च करने की सोचता है,अपनी Shave करने के लिए बाज़ार से एक Blade खरीदता है,और शुरू हो जाती है Demand, दुकानदार, होलसेलर को ऑर्डर भेजता है और होलसेलर फैक्ट्री को ऑर्डर भेजता है, फैक्ट्री जो बंद हो गई थी मजदूर लगा कर फैक्ट्री चालू कर देता है और रोज़गार देने लगता है।कैसे एक Blade से रोज़गार शुरू होता है।
अपनी लंबी दाढ़ी देख कर हम भी आपको कहां से कहां ले गए, इसलिए आइना नही देख रहे थे हम आजकल।
Note: हमने किसी दाढ़ी बढ़ाए हुए को भी आइना दिखाने की कोशिश नहीं की।?
© श्री राकेश कुमार
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