श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।”

आज प्रस्तुत है संस्मरणात्मक आलेख – “मोबाइल है, या मुसीबत” की अगली कड़ी। )

☆ आलेख ☆ मोबाइल है, या मुसीबत  – भाग – 3 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

दिल्ली से वापसी के लिए हम स्टेशन पर स्थित आरक्षण काउंटर पर पहुंचे वहां एक दम pin drop silent जैसा माहौल था। जब फार्म मांगा तो उसने ऐसे देखा जैसे बैंक में आज कोई ड्राफ्ट बनवाने का फार्म मांगता है। काउंटर वाले बाबूजी भी कान से डोरी निकालते हुए बोले, क्यों मोबाइल नहीं है क्या ? जब पूरी दुनिया नेट से टिकट निकाल रही है, आप तो बाबा आदम के जमाने के लगते हो। हमने उससे झूठ बोलते हुए कहा अभी ट्रेन में चोरी हो गया है। फॉर्म के साथ हमने पांच सौ का नया कड़क नोट भी दिया, बोला छुट्टे 485 दो, अभी बोहनी कर रहा हूं। दिन के बारह बज रहे थे, चार घंटे से काउंटर चालू है। खैर हमने भी उसको सौ के चार और दस के नौ नोट दिए और बोला पांच आप दे दो। वो तुरंत बोला बैंक में कैशियर थे, भुगतान हमेशा सौ और दस के नोट से करने की आदत रही होगी। टिकट लेकर और बिना पांच वापिस लिए हम ऑटो स्टैंड पहुंच गए।              

कुछ वर्ष पूर्व तो ऑटो वाले लपक कर सूटकेस आदि झपट कर ऑटो तक ले जाते थे। उस समय रईस टाइप की फीलिंग आती थी। इस बार ऑटो वाला अपने ऑटो में शांत और कान में डोरी डाल कर बैठे है, कहीं हड़ताल तो नही है ना ? पेट्रोल के बढ़ते दामों के कारण। एक ऑटो वाले को हमने अपने गंतव्य स्थान के लिए कहा तो कान से डोरी निकाल कर सुस्ताते हुए गुस्से से उसने कहा पीछे बैठ जाओ। फिर उसने हमारे ब्रीफकेस को चेन से बांध कर lock लगा दिया। हमने जिज्ञासा से पूछा ये ताला क्यो तो वो बोला अभी आप भी अपने मोबाइल में मग्न हो जायेंगे तो उठाईगीर कई बार सामान उठा कर भाग जाते है, और कभी कभी सवारी भी ट्रैफिक जाम में तेजी से बढ़ते मीटर को देखकर भी ऑटो धीरे होने पर बिना पैसे दिए नो दो ग्यारह हो जाती है। इसलिए अपनी पेमेंट को भी सुरक्षित कर लेते है।

जब अपने रिश्तेदार के यहां पहुंचे तो वहां  अकेला पुत्र  ही था। तीन चार बार घंटी बजाने पर भी दरवाज़े नहीं खुला तो हमने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा कर, बंद मोबाइल को चालू किया और उसको घंटी दी, तब दरवाज़ा खुला तो बोला अंकल मैं मोबाइल पर music सुन रहा था, एकदम latest है, ” Amy winehouse – Back to Black”। लाइए, आप के मोबाइल में भी down load कर देता हूं। ना कोई दुआ ना सलाम, सच में मोबाइल है या मुसीबत ❓ 📱

© श्री राकेश कुमार

संपर्क –  B  508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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