प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ संस्मरण ☆ मेरी यात्रा और वह पहला शॉल  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

इस यात्रा का वाकया आज से 45 वर्ष पुराना है।वह मेरा पहला कवि सम्मेलन था,जहाँ मुझे कुछ घंटों की यात्रा करके पहुँचना था,और रात में ही वापस लौटना था।

मैं आयोजित इस कवि सम्मेलन में भाग लेने ट्रेन से शाम पहुंच गया।देर रात तक कवि सम्मेलन चला ।मेरा काव्य पाठ अच्छा रहा था।मैं सम्मान में प्राप्त शॉल को सीने से लगाये कस्बे के स्टेशन पर पहुंच गया,जहाँ से वापिसी की ट्रेन अपने शहर को पकड़नी थी।

चूँकि ट्रेन लेट थी इसलिए मैं एक बेंच पर बैठकर इंतज़ार करने लगा।तभी मैंने देखा कि प्लेटफार्म के एक कोने में एक भिखारीनुमा वृद्ध आदमी लेटा है।उसके पास न तो गर्म कपड़े थे,और न ही उसने कुछ ओढ़ रखा था।वह कँपकँपा रहा था।मेरे मन में आया कि सम्मान में मिले शॉल को उसे उड़ा दूँ।पर दूसरे ही पल मन में आया कि वह जीवन में मिले सम्मान का पहला शॉल है।इस तरह उसे गँवा देना ठीक नहीं।मैं इसी उधेड़बुन में लगा था कि तभी ट्रेन आ गई।मैं अभी भी मानवता और स्वार्थ के बीच पशोपेश में था।तभी ट्रेन चलने लगी । मैं ट्रेन की ओर लपका,पर मेरे भीतर की करुणा ने यह सोचकर जोर मारा कि शॉल तो और मिल जाएंगे,पर वह वृद्ध सर्दी के कारण कहीं मर गया तो।यही सोचकर मैं वापस मुड़ा और शॉल उस वद्ध को उड़ाया और दौड़कर चढ़ गया।मुझे लगा कि मौसम गर्मा गया है,और मेरी सारी सर्दी फुर्र हो गई है।

उसके बाद शॉल तो मुझे अनेक मिले, यात्राएं  भी मैंने बहुत कीं,पर वह यात्रा और वह पहला शॉल मेरे भीतर एक ज़बरदस्त उत्साह बनाये रखते हैं।

💐 प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे जी को उनके जन्मदिवस पर ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से अशेष हार्दिक शुभकामनायें 💐

© प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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