श्री विजय कुमार
(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी का संस्मरण “डॉ. महाराज कृष्ण जैन – मेरे गुरु मेरे पथप्रदर्शक”।)
☆ संस्मरण – डॉ. महाराज कृष्ण जैन – मेरे गुरु मेरे पथप्रदर्शक ☆
गुरु शिष्य का नाता बहुत ही गहरा होता है। गुरु को माता-पिता, ईश्वर से भी पहले स्थान दिया गया है। तभी तो कहा गया है–
गुरु गोविन्द दोउ खड़े,
काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने,
जिन गोविन्द दियो मिलाय।।
मेरे जीवन में भी गुरु जी का एक विशेष स्थान रहा है। ये गुरु स्कूल के न होकर पत्राचार पाठ्यक्रम चलाने वाले डॉ. महाराज कृष्ण जैन हैं। 31 मई 1938 को हरियाणा के एक छोटे से शहर अम्बाला छावनी में जन्म लेकर सारे देश और विदेश में लोकप्रिय हुए साहित्यकार, कहानीकार के रूप में। पांच वर्ष की आयु से ही पोलियोग्रस्त डॉ. जैन ने सन् 1964 में लेखन सिखाने के लिए ‘कहानी लेखन महाविद्यालय’ संस्थान की स्थापना की और पत्राचार द्वारा रचनात्मक लेखन सिखाने का कार्य आरम्भ किया। देश के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों में डॉ. महाराज कृष्ण जैन ने कहानी को न केवल लिखा व लिखना सिखाया बल्कि बहुत करीब से जिया भी। डॉ. जैन मासिक पत्रिका ‘शुभ तारिका’ के संस्थापक/संपादक भी थे।
उनकी शारीरिक अक्षमता उनके जीवन में कहीं भी आड़े नहीं आयी। बौद्धिक व मानसिक रूप से वे अत्यन्त स्वस्थ और सजग थे। उनका मनोबल देखते ही बनता था।
‘कहानी लेखन महाविद्यालय, में व्यवस्थापक के पद पर रहते हुए मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। किताबों का ज्ञान तो सभी गुरु अपने शिष्यों को देते हैं, किन्तु जो किताबी ज्ञान के अलावा दुनियादारी का व्यावहारिक ज्ञान भी दे, उस ज्ञान का महत्त्व बढ़ जाता है।
- मैंने अपने गुरु से व्यावहारिक ज्ञान सीखा। उन्होंने मुझे बताया कि कैसे सदा दूसरों की मदद के लिये तैयार रहना चाहिए, किस प्रकार किसी ऑफिस (बैंक, पोस्टऑफिस या अन्य) में जाकर अपना काम करवाना चाहिए।
- उन्होंने मुझे बताया कि कभी भी ऋणात्मक सोच न रखो। वे हमेशा ही सकारात्मक सोच रखते थे और दूसरों को भी ऐसी ही सलाह दिया करते थे।
- वे अनुशासन प्रिय थे। वे हर काम को साफ-सुथरा और सलीके से करने और करवाने में विश्वास रखते थे।
- उन्होंने मुझे बताया कि कैसे खास मौकों पर करने वाले कामों की लिस्ट बना ली जाए और कौन-सा काम पहले करना है और कौन सा बाद में करना है। इससे एक तो कोई काम छूटता नहीं और दूसरे काम करने में कोई दिक्कत नहीं आती।
उनके जीवन की याद आज मेरे जीवन का मार्गदर्शक बन गई है। उन्हें याद कर मैं किसी भी कार्य को करने में हार नहीं मानता। धन्य हैं ऐसे गुरु। मेरा शत-शत नमन।
© श्री विजय कुमार
सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)
संपर्क – 103-सी, अशोक नगर, अम्बाला छावनी-133001, मो.: 9813130512
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