श्री अभिमन्यु जैन

☆ स्मृतिशेष जयप्रकाश पाण्डेय विशेष – जय प्रकाश : दिखने में आम, फिर भी खास ☆ श्री अभिमन्यु जैन 

मित्रों, जय प्रकाश विगत 40 वर्षों से भी अधिक समय से लेखन में रत हैं. जयपुर से प्रकाशित नई गुदगुदी में अपने लेख के साथ उनके लेख भी देखते मिलते रहे. सेवा निवृति पश्चात जबलपुर में निवास हुआ. पिछले 8 वर्षों से उनके सतत संपर्क में रहा. व्यंग्यम की स्थापना, बिना किसी पदाधिकारी के निर्वाचन या मनोनयन के हुई. कई आयोजन भी हुए. जय प्रकाश जी का लेखन कालजयी था. उन्होंने खूब लिखा, खूब नाम और यश कमाया. आकाशवाणी के अनेक केंद्रों से कहानी और व्यंग्य का दीर्घ कल तक प्रसारण, कई पत्र -पत्रिकाओं में कविता, कहानी, व्यंग्य का प्रकाशन, अनेक पत्रिकाओं में अतिथि सम्पादक की भूमिका भी निभाई. कबीर सम्मान, अभिव्यक्ति सम्मान, कादम्बिनी अखिल भारतीय व्यंग्य लेखन प्रतियोगिता में, एवं रविंद्र भवन भोपाल में नाट्य विधा में पुरस्कार प्राप्त.. बहुत लम्बी फेहरिस्त है. वे पुरस्कार का नहीं, पुरस्कार उनका पीछा करते रहे. पांडे जी ने जी भर के लिखा, और छपे भी जी भर के. उनका लेखन किसी भी रावण की लंका जलाने में स क्ष म है. कई जगह शब्दों का तुलनात्मक प्रयोग करके व्यंग्य को सहज और सरल बनाया. यह उनके लेखन की ताकत है. रचनाओं में फ़िल्मी गीतों का बहुत अच्छा प्रयोग किया है. कहीं कहीं तो ऐसा हुआ की सवाल और जवाब भी इन्हीं गीतों के माध्यम से हुआ. लेखन से सत्ता को जितना नंगा किया जा सकता था उन्होंने किया. उन लेखकों को आईना दिखाया है जो सत्ता का प्रवक्ता बनने के लिए अपने आपको किसी भी कीमत पर सर के बल खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं. खूब लिखने, प्रकाशन होने के बावजूद भी उनकी एक मात्र कृति डांस इंडिया डांस ही प्रकाशित हुई. इसकी प्रति समीक्षार्थ भेंट की जिस पर मैंने समीक्षा लिखी. प्रकाशित भी हुई.

 जय प्रकाशजी जिंदादिल इंसान, सहयोग को तत्पर, झूठ, फरेब उन्हें पसंद नहीं. वे पारदर्शिता को बहुत महत्त्व देते थे. और इसी व्यवहार की अपेक्षा वे दूसरों से करते थे. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है उनकी कैंसर की बीमारी. मैंने कई घरों में देखा है परिवार के किसी सदस्य के कैंसरग्रस्त हों जाने से पूरा परिवार ताकत लगाता है कि इस बीमारी की भनक बाहर किसी को न लगे किन्तु जय प्रकाश का कलेजा देखो कि उन्होंने डंके कि चोट अनेक ग्रुप में इस बीमारी से पीड़ित होने का खुलासा कर दिया. इस बीमारी कि जानकारी के बाद भी अपने घर पर व्यंग्यम कि मासिक गोष्ठी आयोजित की. ज़ब मिले हँसते, मुस्कराते रहे. पीड़ा को पीते रहे. वे अपनी पीड़ा से दूसरे को पीड़ित नहीं करना चाहते थे. दूसरों के मान सम्मान का बहुत ध्यान रखते थे. बार बार उनके निधन के समाचार अनेक ग्रुप में चल जाते, बाद में ज्ञात होता कि, सही नहीं है. तब अचानक से ऐसा लगता कि शायद कोई ईश्वरी चमत्कार होना है जो जय प्रकाश जो को स्वस्थ कर देगा, ऐसा हुआ नहीं.

वो रूठा इस अदा से कि मौसम बदल गया.

इक शख्श सारे शहर को वीरान कर गया.

श्री अभिमन्यु जैन 

 M. 9425885294

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments